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महिलाओं का सशक्‍त होना समाज और देशहित में भी जरूरी, सबसे पहले घर में मिले बराबरी

महिला सशक्‍तीकरण दिवस पर टिकारी के एक स्‍कूल में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें वक्‍ताओं ने कहा कि महिलाएं खुद में आत्‍मविश्‍वास बढ़ाएं। वे काबीलियत रखती हैं। बस उसे पहचानने की जरूरत है। परिवार में भी उन्‍हें बराबरी मिले।

By Vyas ChandraEdited By: Published: Fri, 05 Mar 2021 05:27 PM (IST)Updated: Fri, 05 Mar 2021 05:27 PM (IST)
महिलाओं का सशक्‍त होना समाज और देशहित में भी जरूरी, सबसे पहले घर में मिले बराबरी
कार्यक्रम में मंचासीन टिकारी की एसडीओ व अन्‍य अतिथि। जागरण
संवाद सहयोगी, टिकारी (गया)।  महिलाओं का सशक्‍तीकरण आज की आवश्यकता है। महिला सशक्‍तीकरण यानी महिलाओं की आध्यात्मिक, राजनीतिक, सामाजिक या आर्थिक शक्ति में वृद्धि करना है। भारत में महिलाएं शिक्षा, राजनीति, मीडिया, कला व संस्कृति, सेवा क्षेत्रों, विज्ञान व प्रौद्योगिकी आदि के क्षेत्र में भागीदारी करती हैं। इन सब के बीच महिला तभी सशक्‍त होंगी जब समाज की 90 फीसद महिलाओं को अपने घर में बराबरी का अधिकार मिलेगा। ये बातें विश्‍व महिला सशक्‍तीकरण दिवस के अवसर पर शहर के ज्ञान भारती सीनियर सेकेंडरी स्कूल में शुक्रवार को आयोजित कार्यक्रम में टिकारी की एसडीओ करिश्मा ने कहीं। इससे पहले उन्‍होने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
महिलाएं अपनी दृढ़ इच्‍छाशक्ति की बदौलत बढ़ेंगी आगे
बीडीओ वेद प्रकाश ने कहा कि भारत का संविधान सभी  महिलाओं की समानता की गारंटी देता है। भारत सरकार ने 2001 को महिला सशक्तिकरण वर्ष (स्वशक्ति) घोषित किया। सन 2001 में महिलाओं के सशक्‍तीकरण की नीति पारित की गई। देश में ना तो महिलाओं को सशक्‍त बनाने वाली सरकारी योजनाओं की कमी है और ना ही स्त्री विमर्श करने वालों की। महिलाएं अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बदौलत हमेशा आगे बढ़ रही हैं और अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं।
विचारों का परिवर्तन व्‍यवहार में लाना जरूरी
ज्ञान भारती वल्ड स्कूल के निदेशक मधु प्रिया ने कार्यक्रम में कहा कि कुछ योजनाएं और जागरूक करने वाले विज्ञापन समाज में महिलाओं की स्थिति ना तो बदल पाए हैं और ना ही बदल पाएंगे। अगर सामाजिक-पारिवारिक और वैचारिक बदलाव आएं तो शायद महिलाओं की समस्याएं कुछ कम हों। उन्होंने विचारों के इस परिवर्तन को व्यव्हार में लाने पर जोर दिया। मधु प्रिया ने कहा कि महिलाएं पंच- सरपंच बन भी जाए तो क्या? अगर उन्हें निर्णय लेने का अधिकार ही ना मिले। या फिर उनके इन अधिकारों को घर के लोग ही छीन लें। ऐसे में सरकारी नीतियां कहां तक सफल हो पाएंगीं? सरकार महिलाओं को हक तो दे सकती हैं पर जब तक उनके अपनों की सोच में परिवर्तन नहीं आता, उनका चौखट से चौपाल तक आने का सफर आसान नहीं है।  महिलाएं कामकाजी तो बन रही हैं पर सुरक्षित घर लौट आने की गारंटी नहीं है। एक पढ़ी-लिखी मां भी बेटी को जन्म देने का निर्णय खुद नहीं कर सकती। ज्ञान भारती सीनियर सेकेंडरी स्कूल टिकारी के निदेशक अरविंद कुमार ने कहा कि अगर महिलाएं खुद में छिपी ताकत को पहचान करना सीख लें तो वह पुरुषों से ज्यादा बेहतर निर्णय लेने की भी काबिलियत रखती हैं। आयोजित कार्यक्रम को रिषु कुमारी, पूजा पाठक, अमृता साव, मणिकांत कुमार, प्रीति कुमारी, गरिमा कुमारी आदि कई छात्र-छात्राओं ने संबोधित किया। 

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