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आदि शंकराचार्य मठ में जीवंत है ढेकी प्रथा

जागरण संवाददाता, बोधगया : भौतिकवादी युग में मशीनरी के हावी होने के हावी होने के का

By JagranEdited By: Published: Tue, 16 Oct 2018 07:06 PM (IST)Updated: Tue, 16 Oct 2018 10:55 PM (IST)
आदि शंकराचार्य मठ में जीवंत है ढेकी प्रथा
आदि शंकराचार्य मठ में जीवंत है ढेकी प्रथा

जागरण संवाददाता, बोधगया : भौतिकवादी युग में मशीनरी के हावी होने के हावी होने के कारण घरेलू प्राचीन उपयोग उपकरण कारण ढेकी, जाता, खल-मुसल इतिहास बन गए हैं। आज के बच्चे इस घरेलू उपकरणों को फोटो में दिखते हैं। जैसे उक्त उपकरण वर्षो पहले के हो। वस्तुत: ऐसा है नहीं। दो-तीन दशक पहले की बात है। ग्रामीण क्षेत्रों में उक्त उपकरण हर घर में होते थे और घर की महिलाएं इसका इस्तेमाल कर खाद्य सामग्री तैयार करती थी। गिने-चुने आटा चक्की की दुकानें हुआ करती थी। आज आस्था के महान पर्व छठ में जाता की महत्ता बरकरार है। खरना का प्रसाद तैयार करने के लिए जाता में पीसे आटा का उपयोग किया जाता है।

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बोधगया का आदि शंकराचार्य मठ, जहां आज भी ढेकी, जाता और खल-मुसल का उपयोग किया जाता है। इस प्राचीन उपकरण का उपयोग आंवला, हरे, बहेरा, बड़ा नीबू आदि कूटने-पीसने के लिए किया जाता है। जिससे पेट की समस्या से निवारण के लिए आयुर्वेदिक दवा बनाया जाता है। इसे मठ की भाषा में आशीर्वादी नींबू (शंखद्राव) कहा जाता है। इसे पेट की समस्या के लिए रामवाण माना जाता है। उपरोक्त सामग्री को कूटने का काम वर्षो से टीकाबिगहा की महिलाएं अनिता देवी, फूलवंती देवी, निर्मला देवी और धानो देवी कर रही हैं। काम की देखरेख करने वाले रघुनंदन पासवान कहते हैं कि आशीर्वादी नींबू मठ में बनाने की प्राचीन परंपरा है। पहले इस काम की जिम्मेवारी हमारे दादा की थी। उसके बाद मेरे पिताजी और अब हम कर रहे हैं। वे कहते हैं कि पहले जरूरत के हिसाब से मठ के बागीचे में आंवला, हरे, बहेरा, बड़ा नींबू हो जाता था। लेकिन अब उक्त सामग्री को कभी-कभी बाजार से क्रय करना पड़ता है। आशीर्वादी नींबू तैयार करने में लागत लगने के कारण अब इसे मठ द्वारा बेचा जाता है।


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