शून्यता व करुणा आत्मा के प्रधान तत्व : दलाईलामा
गया। ज्ञान की भूमि बोधगया के कालचक्र मैदान पर दूसरे दिन शुक्रवार को आध्यात्मिक धर्मगुरु दलाईलामा ने प्रवचन दिया।
गया। ज्ञान की भूमि बोधगया के कालचक्र मैदान पर दूसरे दिन शुक्रवार को आध्यात्मिक धर्मगुरु दलाईलामा ने अवलोकितेश्वर अभिषेक व उनकी दीक्षा के दौरान बोधिचित्त व उसके उत्पाद पर प्रवचन किया। उन्होंने कहा, चित्त की एक अवस्था है, जिसमें शून्यता व करुणा आत्मा के प्रधान तत्व बन जाते हैं। एक-दूसरे से मिलकर यह शून्यता व करुणा को क्रमश: प्रज्ञा व उपाय में बदलते हैं। शून्यता पूर्ण ज्ञान की प्रतीक है, जिसमें सासारिक दुख खत्म हो जाते हैं। करुणा से व्यक्ति दूसरे के दुख से खुद को दुखी महसूस करता है। उन्होंने कहा, नागार्जुन सहित अन्य विद्वानों ने भी कुशल कर्म से क्लेश, राग-द्वेष व तृष्णा नष्ट करने की शिक्षा दी है। अविद्या से इनका उदय होता है। अविद्या नष्ट करने के लिए बोधिचित्त को जाग्रत करने की जरूरत है। इसी का उत्पाद प्रज्ञा है, जिससे हम अविद्या सहित अन्य बुराई को दूर कर सकते हैं। इससे बोधिसत्व की साधना सफल होती है। बुद्धत्व की प्राप्ति कर सभी के कल्याण में लग जाता है। अभिषेक के दौरान कलश अभिषेक, मुकुट सहित अन्य अभिषेक कराया। उन्होंने इस क्रम में कहा कि अवलोकितेश्वर के छह लाख मंत्रों के जाप से लाभ होगा। इससे हम मिथ्या दृष्टि से बाहर निकलेंगे। अंदर के कालुष्य को नष्ट करें, तभी हम बोधिचित्त का उत्पाद लाभ कर सकते हैं।
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बांग्लादेश, म्यांमार व अफ्रीका में शरणार्थियों को करें मदद
दलाईलामा ने बाग्लादेश और म्यामार में दुखी शरणार्थियों व अफ्रीका में बाढ़ से पीड़ित लोगों के लिए मदद की अपील की। कहा, अफ्रीका में बाढ़ और आग से लोग परेशान और दुखी हैं। उनकी बेहतरी के लिए भगवान बुद्ध से दुआ मागी। दलाईलामा ने कहा, किसी भी देश में जो दुखी हैं, उनकी मदद करनी चाहिए। बाग्लादेश और म्यामार में जो अभी दुखी हैं, शरणार्थी बैठे हैं उनके लिए हम प्रार्थना कर सकते हैं। यूनेस्को मदद करने में लगा है। उन्होंने कहा, प्यार और दया के बिना मानव जिंदा नहीं रह सकता। जब भी और जहा भी मुमकिन हो, दया दिखाएं। वैसे, यह हर जगह मुमकिन है। दलाईलामा का बोधगया में इन दिनों विशेष शैक्षणिक सत्र चल रहा है। धार्मिक परंपराएं देती हैं प्रेम, दया और क्षमा का संदेश :
धर्मगुरु दलाईलामा ने कहा, सभी प्रमुख धार्मिक परंपरा प्रेम, दया और क्षमा का ही संदेश देती है। दया का भाव ही इंसान का सबसे बड़ा धर्म है। ज्ञान, दया और क्षमा इंसान को बड़ा बनाती है। खुशहाली मिलती नहीं, बल्कि उसके लिए कदम बढ़ाने पड़ते हैं। अगर हमें मानव का जन्म मिला है तो इसका उपयोग करना चाहिए। जैसा कर्म करेंगे, उसी के अनुसार हमें फल मिलेगा। अगर हम चिंतन करके अपने मन को शुद्ध कर लेंगे, तो निश्चित रूप से हमें अगले जन्म में भी मानव होने का सुख प्राप्त होगा। दलाईलामा ने सभी से शाति, दया और करुणा का संदेश फैलाने का आह्वान किया। बारिश में डटे रहे श्रद्धालु
प्रवचन के दौरान तेज बारिश भी हुई, लेकिन श्रद्धालुओं की आस्था देखते बनी। बारिश और ठिठुरन भरी ठंड में बौद्ध अनुयायी प्रवचनों को सुनने के लिए पंडाल में डटे रहे।