तंत्र विधान से भी संभव है बोधिचित्त की प्राप्ति
गया। कालचक्र मैदान पर तिब्बतियों के आध्यात्मिक धर्मगुरु दलाईलामा ने गुरुवार से चार दिवसीय यमंतक अ
गया। कालचक्र मैदान पर तिब्बतियों के आध्यात्मिक धर्मगुरु दलाईलामा ने गुरुवार से चार दिवसीय यमंतक अभिषेक का शुभारंभ किया।
यमंतक अभिषेक के लिए विविध रंगों व रेतकणों से कपड़े पर एक मंडल बनाया गया, जिसमें चार प्रवेश द्वार व चार स्तंभ दर्शाए गए थे। मंडल में सभी देवताओं को प्रतिष्ठित कर अनुत्तरयोग तंत्र के तहत धमर्गुरु ने पांच ध्यानी बुद्धों का आह्वान किया। इस दौरान अभिषेक में शामिल वितयनामी, चाईनीज, जापानी, अमेरिकन व यूरोपीय देशों के श्रद्धालुओं के बीच कुशा व लाल रंग का धागा वितरित किया गया। धागा को धर्मगुरु के कथनानुसार श्रद्धालुओं ने अपने-अपने दाएं या बाएं हाथ पर बांध लिया। वहीं, कुशा को अपने बिस्तर के नीचे रखकर सोने और रात में आने वाले स्वप्न पर चितंन करने को कहा गया। उन्होंने सभी श्रद्धालुओं को मन, वचन और कर्म से कुशल कर्म करने की शपथ दिलाई और कहा कि इससे बोधिचित्त का उत्पाद होगा। बोधिचित्त के उत्पाद से बोधिसत्व की प्राप्ति होगी। धर्मगुरु ने कहा कि साधना का आधार महाकरूणा है। वज्रपद की प्राप्ति उसका लक्ष्य होता है। उन्होंने कहा कि यमंतक तिब्बती बौद्ध परंपरा में गेलुक पंथ के अनुत्तरयोग तंत्र से जुड़े बौद्ध देव हैं। उन्होंने कहा कि बौद्ध तंत्र के तहत मंडल रहस्य का प्रतीक माना जाता है। यह बाह्य व अध्यात्म योग का केंद्र है। इसी में सभी देवताओं को प्रतिष्ठित किया जाता है। साथ ही तंत्र विधान से भी बोधिचित्त की प्राप्ति संभव है।