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शरीर की इम्‍यूनिटी बढ़ाने के लिए देवकुंड में बना था च्‍यवनप्राश, जानिए क्‍या है इस स्‍थान की कहानी

औरंगाबाद के देवकुंड में पहली बार शरीर की इम्युनिटी बढ़ाने वाला च्यवनप्राश बनाया गया था। दावा है कि यहीं पर च्‍यवन ऋषि ने इसे बनाया था। हालांकि देश में दो देवकुंड और ऋषि च्यवन के चार आश्रम हैं।

By Vyas ChandraEdited By: Published: Sat, 16 Jan 2021 07:31 AM (IST)Updated: Sat, 16 Jan 2021 07:31 AM (IST)
शरीर की इम्‍यूनिटी बढ़ाने के लिए देवकुंड में बना था च्‍यवनप्राश, जानिए क्‍या है इस स्‍थान की कहानी
औरंगाबाद के देवकुंड में स्‍थापित च्‍यवन ऋषि की प्रतिमा। जागरण

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद)। कोरोना काल में सबको इम्युनिटी बढ़ाने की गरज है। सरकार भी इम्युनिटी बढ़ाने को प्रेरित कर रही है। कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन में बाजार मंदा रहा लेकिन इम्युनिटी बढ़ाने वाली सामग्री की खूब बिक्री हुई। ऐसे में देसी उपाय हर आम से लेकर खास तक ने किए। काढ़ा, च्‍यवनप्राश जैसी देसी औषधि प्रचलन में आए।  नई पीढ़ी को जानने का अवसर मिला कि जिस इम्‍यूनिटी बूस्‍टर की बात आज की जा रही है वह हमारी सनातन संस्‍कृति का हिस्‍सा रहे हैं।

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देवकुंड में च्‍यवन ऋषि ने बनाया था च्‍यवनप्राश

बात करें च्‍यवनप्राश की। बाजार में कई कंपनियों के च्यवनप्राश उपलब्ध हैं। कुछ लोग स्वयं भी बनाते हैं। सवाल उठता है च्यवनप्राश कहां बना था। कैसे प्रचलन में आया। अनुमंडल के देवकुंड मत के महंत कन्हैयानन्द पुरी का दावा है कि पहली बार च्यवनप्राश यहीं बना था। इसे बनानेवाले च्यवन ऋषि का आश्रम यहीं है। इसमें इस्तेमाल होने वाली सभी जड़ी-बूटियां यहां के जंगल में मिलती थी। अब भी मिलती हैं। हालांकि यह भी कहा जाता है कि देश में कम से कम दो देवकुंड हैं। च्यवन ऋषि के चार आश्रम हैं। सबके दावे यही हैं कि कमजोर शरीर को ऊर्जावान बना देने की ताकत जिस च्यवनप्राश में होने का दावा किया जाता है उसका आविष्कार इन्हीं स्थानों पर हुआ है। 

बुंदेलखंड के बंट में भी च्यवन ऋषि और च्यवनप्राश

बुंदेलखंड के ललितपुर जिला के बंट में भी च्यवन ऋषि का आश्रम है। दावा वहां के बारे में भी यही किया जाता है कि च्यवन ऋषि ने यहां अपने आश्रम में च्यवनप्राश बनाकर औषधियों को विश्वभर में प्रचलित किया। च्यवन ऋषि की धरती तहसील पाली से सात किलोमीटर दूर है। बंट के घने जंगल में, खासकर गौना वन रेंज और मड़ावरा के जंगल में बहुतायत में जड़ी बूटियां पाई जाती हैं।

ढोसी की पहाड़ी पर भी च्यवन आश्रम

हरियाणा के महेंद्रगढ़ के मुख्यालय नारनौल नगर से सात किमी दूर स्थित गांव कुलताजपुर के मध्य स्थित ढोसी की पहाड़ी पर भी महर्षि च्यवन का आश्रम। इनका दावा है कि महर्षि च्यवन ने कुछ दिव्य जड़ी-बूटियों की खोजकर कायाकल्प करने वाली दवा च्यवनप्राश का निर्माण पहली बार किया था। आश्रम में सोमवती अमावस्या के मौके पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।

देवास में भी है च्यवन ऋषि का देवकुंड

मध्य प्रदेश के देवास क्षेत्र के चापड़ा में भी च्यवन ऋषि द्वारा स्थापित देव कुंड है। जहां च्यवनप्राश बनाने वाले च्यवन ऋषि ने ही श्री चंद्रकेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर के पुजारी का दावा है कि मंदिर का इतिहास च्यवन ऋषि से जुड़ा है। च्यवन ऋषि के बाद सप्त ऋषियों ने भी यहां तप किया था। यहां उनके नाम का एक कुंड भी बना हुआ है। कहते हैं इस कुंड में स्नान से पापों से मुक्ति मिल जाती है।

एक ही कहानी हर जगह

महर्षि च्यवन के तप में लीन होने, शरीर पर मिट्टी का टीला बन जाने, सूर्यवंशी राजा शर्याति की पुत्री राजकुमारी सुकन्या द्वारा तपस्या की मुद्रा में बैठे च्यवन ऋषि की मिट्टी से ढकी आकृति में सरकंडे घुसा देने, जिससे महर्षि की आंखों से रक्तस्त्राव होने की कहानी ही चारों च्यवन आश्रम से जुड़ी है। डरी हुई राजकुमारी और राजा आत्मग्लानी से जब भर गए तो सुकन्या ऋषि की पत्नी बनकर पश्चाताप करने के लिए उनकी सेवा करने लगी। बाद में देवताओं के वैद्य आश्विन कुमारों ने अपने आशीर्वाद से महर्षि को युवा बना दिया। जिस औषधि का इस्तेमाल हुआ उसे ही च्यवनप्राश कहा जाता है। युवावस्था प्राप्त कर महर्षि च्यवन ने उस क्षेत्र को अपने तप के बल पर दिव्य क्षेत्र बना दिया।


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