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बेटियां दरकिनार, चाहत में बेटे शुमार

[विकाश चन्द्र पाण्डेय] गया। बेटियां उनकी लाख फिक्र करें, लेकिन मां-बाप की चाहत में आज भी ब

By JagranEdited By: Published: Thu, 24 Jan 2019 10:00 AM (IST)Updated: Thu, 24 Jan 2019 10:00 AM (IST)
बेटियां दरकिनार, चाहत में बेटे शुमार
बेटियां दरकिनार, चाहत में बेटे शुमार

[विकाश चन्द्र पाण्डेय] गया।

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बेटियां उनकी लाख फिक्र करें, लेकिन मां-बाप की चाहत में आज भी बेटे अव्वल हैं। गरीब राज्यों में शामिल बिहार के लिए तो इसका शानदार बहाना है, कमाऊ पूत। एक के बाद एक बेटा हो, कोई गुरेज नहीं, लेकिन घर में एक से अधिक बेटी की हसरत नहीं। औलाद के मुताल्लिक बिहार की यही ख्वाहिश है।

बिहार का समाज पुरुष प्रधान है और पुत्र कामना बलवती। राज्य में केवल बेटियों वाले परिवार की संख्या तीन फीसद से भी कम है। संतोष की बात यह कि एक दशक पहले तक ऐसे परिवारों की संख्या दो फीसद थी। उसके पहले यह ढाई फीसद हुआ करती थी। डॉ. राजीव कुमार मिश्र के मुताबिक बीच के वर्षो में गिरावट की वजह रेडियोलॉजी भी है। गर्भ की जांच और भ्रूण हत्या की प्रवृत्ति से लिंगानुपात भी असंतुलित हुआ। कानून और सख्ती की बदौलत बाद के वर्षो में स्थिति कुछ सुधरी है।

बेटी की कामना महिलाओं की तुलना में पुरुष अधिक कर रहे। आधी आबादी के मन-ओ-मिजाज से संबंधित यह सर्वाधिक चिंताजनक पहलू है। अलबत्ता ढलती उम्र (40-49 वर्ष) वाले पुरुषों की इच्छा में कम से कम एक पुत्र जरूरी है। यह इच्छा वंश-बरक्कत और बुढ़ापे की लाठी का प्रतिफल है। किशोर वय से लेकर अधेड़ उम्र तक महिलाओं में ऐसी कामना कमोबेश बराबर है। ग्रामीणों की तुलना में शहरी आबादी बेटियों को कुछ ज्यादा पसंद कर रही। शहरी आबादी में भी एक बड़ा वर्ग बेटों को दरकिनार करने के लिए कतई तैयार नहीं। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पापुलेशन साइंस का निष्कर्ष है कि इसकी असली वजह शिक्षा और माली हैसियत है। निरक्षर और कम पढ़े-लिखे लोगों की इच्छा में अधिकाधिक बेटे शुमार हैं। प्रो. एनके सिंह का कहना है कि बिहार की एक बड़ी आबादी को रोजी-रोटी के लिए परदेस का आसरा है। कमाने के लिए बाहर जाएगा कौन? सवाल में ही उसका जवाब भी है। हर जाति की ख्वाहिश में बेटा : राज्य बंटवारे के बाद आदिवासियों की बड़ी आबादी झारखंड के हिस्से में चली गई। आदिवासी समाज बेटियों के मुफीद माना जाता है। गजब यह कि उनमें भी बेटों की ललक ज्यादा है। पुरुषों (1.4 प्रतिशत) के बजाय आदिवासी महिलाएं (3.7 प्रतिशत) अपेक्षाकृत अधिक बेटियों को पसंद कर रहीं। अनुसूचित जाति में यह स्थिति ठीक उलट है। उस वर्ग के 3.4 प्रतिशत पुरुष अधिकाधिक बेटियों की कामना कर रहे, जबकि महिलाएं महज 1.5 प्रतिशत। पिछड़े वर्ग की पसंद का पैमाना भी कमोबेश यही है। बाकी के तबकों की दिलचस्पी भी इससे इतर नहीं। मुसलमानों का मिजाज मामूली अलग : बिहार में ¨हदुओं की तरह मुस्लिम बिरादरी भी पुत्र प्रेम में मगन है, लेकिन अधिकाधिक पुत्री की कामना में मामूली अंतर से आगे। ¨हदुओं में 1.8 प्रतिशत महिलाएं और 3.8 प्रतिशत पुरुष पुत्रों से अधिक संख्या में पुत्री चाहते हैं। मुसलमानों में यह संख्या क्रमश: 2.0 और 4.6 प्रतिशत है। एक पुत्र होने पर एक पुत्री अलबत्ता बर्दाश्त की जा सकती है। महिला और पुरुष, दोनों की पसंद का यही पैमाना है।

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- बिहार में बतौर संतान पुत्र की कामना सर्वोपरि, केवल पुत्री की इच्छा रखने वाले परिवार बेहद कम

- पुत्र की इच्छा पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा, कम शिक्षित और गरीब तबके पर ज्यादा असर

:::::::::::::::::::::::::::::: संतान कामना (प्रतिशत में)

पुरुषों की पसंद

उम्र : पुत्रियों से अधिक पुत्र की कामना : पुत्र से अधिक पुत्रियों की कामना : कम से कम एक पुत्र की कामना : कम से कम एक पुत्री की कामना

15-19 वर्ष : 22.0: 2.5: 82.8: 79.3

20-29 वर्ष : 26.2: 2.7: 86.4: 82.8

30-39 वर्ष : 36.3: 5.4: 92.5: 88.8

40-49 वर्ष : 38.4: 5.5: 94.0: 89.5

............ महिलाओं की पसंद

उम्र : पुत्रियों से अधिक पुत्र की कामना : पुत्र से अधिक पुत्रियों की कामना : कम से कम एक पुत्र की कामना : कम से कम एक पुत्री की कामना

15-19 वर्ष : 22.8: 1.4: 85.4: 83.2

20-29 वर्ष : 37.2: 2.0: 91.4: 88.2

30-39 वर्ष : 43.6: 1.9: 90.2: 87.4

40-49 वर्ष : 44.8: 2.1: 89.5: 86.9

(स्रोत: एसआरएस, एनएफएचएस, आइआइपीएस)

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