Gaya Good News: स्वस्थ हो गया बोधगया का बोधि वृक्ष, मिलबग रोग से ग्रसित होने के बाद वैज्ञानिकों ने किया उपचार
Gaya News बोधगया गया का बोधि वृक्ष स्वस्थ हो गया है। अब इसके नीचे बैठकर श्रद्धालु ध्यान कर सकेंगे। मिलबग रोग से ग्रसित होने के बाद वैज्ञानिकों की टीम इसका उपचार कर रही थी। स्वस्थ होने का प्रमाणपत्र भी दिया है।
जेएनएन, गया। राजकुमार सिद्धार्थ ने जिस उरुवेला वन के पीपल वृक्ष की छांव में अलौकिक दिव्य ज्ञान प्राप्त किया था, आज वह संपूर्ण विश्व में बोधि वृक्ष के नाम से ख्यात है । यह बीमार हो गया था। अचानक बोधि वृक्ष के मिलबग रोग से ग्रसित होने की सूचना ने लोगों को परेशान कर दिया। राज्य सरकार ने भी संज्ञान लिया। सरकार की पहल पर बोधि वृक्ष के संरक्षण और संवर्धन का कार्य देहरादून के अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने शुरू किया। उसका असर हुआ कि आज पवित्र बोधि वृक्ष पूर्णत: स्वस्थ हो गया है। इसका प्रमाण पत्र भी वन अनुसंधान केंद्र ने महाबोधि मंदिर प्रबंधन समिति को दिया है।इतिहासकारों के अनुसार वर्तमान में यह चौथा वृक्ष है। लार्ड कनिंघम ने वर्ष 1880 में श्रीलंका के अनुराधापूरम से लाकर लगाया था।
कहा जाता है कि राजकुमार सिद्धार्थ को दिव्य अलौकिक ज्ञान प्राप्ति के साक्षी रहे प्रथम बोधि वृक्ष को कलिंग युद्ध के पश्चात सम्राट अशोक की बौद्ध धर्म के प्रति रुझान देखकर उनकी पत्नी तिस्यरक्षिता कुपित हो गई। उन्होंने ईसा पूर्व 272- 262 में इस वृक्ष को कटवा दिया। क्योंकि सम्राट अशोक का अधिकांश समय इसी की छांव में बीतता था।
सम्राट अशोक ने श्रीलंका भेजी थी वृक्ष की शाखा- सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए बोधिवृक्ष की शाखा अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा के माध्यम से श्रीलंका भेजी थी । उसे श्रीलंका के अनुराधापुरम में लगवाया गया था। दूसरे बोधिवृक्ष को बंगाल के एक शासक शशांक ने 602-620 ईसवी में बौद्ध धर्म के अस्तित्व को समाप्त करने के उद्देश्य कटवा दिया। पुनः बोधि वृक्ष की जड़ से तीसरा वृक्ष निकला। लेकिन लार्ड कनिंघम के नेतृत्व में खुदाई के दौरान प्राकृतिक आपदा का शिकार हाे गया। तब श्रीलंका के अनुराधा पुरम से बोधिवृक्ष की शाखा मंगवाकर वर्ष 1880 में यहां लगवाई गई। वह आज भी है। यहां शांति की टोह में संपूर्ण विश्व के बौद्ध श्रद्धालु ध्यान साधना के कुछ पल व्यतीत करने की चाहत रखते हैं । बोधि वृक्ष के रोग मुक्त होने के बाद भी संरक्षण और संवर्धन का कार्य वन अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा किया जा रहा है। महाबोधि मंदिर प्रबंधन समिति भी वैज्ञानिकों की सलाह का अक्षरश: पालन कर रही है।