सनातनधर्मियों की भी यादों को संजोए हैं बोधगया मठ, समाजसेवा में भी हमेशा से रहा है अग्रणी
बोधगया को बौद्ध धर्मावलंबियों का महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। इसके साथ ही यह सनातन धर्मावलंबियों का भी अहम केंद्र है। निरंजना नदी के तट पर बना मठ श्रद्धालुओं के आस्था केंद्र है। यह मठ समाजसेवा में भी अहम स्थान रखता है।
जेएनएन, गया। बुद्ध की तपोभूमि बोधगया केवल बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए ही नहीं अपितु सनातन धर्मावलंबियों के लिए भी एक अलग ही महत्व रखता है। बोधगया के ऐतिहासिक निरंजना नदी के तट पर स्थित आदि शंकराचार्य के दशनामी संप्रदाय के गिरी नामा सन्यासियों का मठ आज पुरानी यादों को अपने में समेटे वर्तमान की ओर देखता नजर आता है ।
ब्रिटिश शासन काल के जिला कलेक्टर द्वारा वर्णित अभिलेख के कुछ पृष्ठ आज भी मठ में सुरक्षित है । मठ का बाहरी और अंदर का भाग दर्शनीय है। 1828 में महंत शिव गिरी के काल में अंग्रेजी शासकों के विरुद्ध कार्यकलापों में लिप्त होने के संदेह में मठ को सील कर दिया गया था । एक वर्ष के पश्चात महारानी विक्टोरिया ने शिव गिरी को माफ कर दिया था। मठ की जप्त की गई संपत्ति भी लौटा दी थी। 1857 के सैनिक विद्रोह के समय स्त्री-बूढ़े को इस मठ की ओर से संरक्षण दिया गया था। इससे ब्रिटिश सरकार मठ प्रबंधन पर नाराज भी हुआ था। 1867 में बोधगया मठ की एक शाखा बनारस में भी खोली गई। मान्यता है कि मठ के प्रांगण में भगवती अन्नपूर्णा अवतरित हुई थीं। यहां के तत्कालीन पीठासीन को अलौकिक धातु से निर्मित एक कटोरा दिया था। 1966 के अकाल में तो सैकड़ों मन अन्न वितरित किया जाता था। जिस शिलाखंड पर यहां के तत्कालीन पीठासीन साधना करते थे वह उत्तर भारत का एक सिद्ध पीठ माना जाता है। मठ प्रांगण के बीच में भगवती अन्नपूर्णा एवं महादेव नाथ का चेताया हुआ स्थल आज भी दर्शनीय है। हवन मंडप के पूर्वी तरफ बनी ठाकुरबारी में आज भी अनवरत रूप से अखंड दीप जलता चला रहता है । पठन-पाठन की सुविधा के लिए और शंकर मत के प्रचार प्रसार के लिए श्री महंत शतानंद गिरी संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना की गई। समाज सेवा की भावना से मगध विश्व विद्यालय की स्थापना के लिए 157 एकड़ जमीन दान में दी गई। इसके अलावा कॉलेज की स्थापना और फतेहपुर में हाई स्कूल हाई स्कूल, गया कॉलेज के लिए भी मठ की ओर से जमीन दी गई। मठ ने लंबे समय तक महाबोधि मंदिर को भी संरक्षित रखने का काम किया ।महाबोधि मंदिर के ठीक सामने पूरब दिशा में आज भी समाधि स्थल है जहां कई शिव मंदिर और मां सरस्वती का मंदिर भी स्थापित है। समय-समय पर बोधगया मठ को टिकारी और इचाक के राजाओं ने जमीने भेंट की थी ।आज भी छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में दान में मिली परिसंपत्तियां हैं जिसकी देख रहे मठ के सेवक करते हैं।