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स्टेट के ध्यानार्थ..ब्राह्माणीघाट सूर्यमंदिर में विरंची रूप में विराजमान हैं भगवान भुवन भास्कर

विनय कुमार मिश्र, बोधगया उदीच्य वेशधारी भगवान भुवन भास्कर विरंची रूप में गया के ब्राह्माण

By JagranEdited By: Published: Tue, 13 Nov 2018 03:21 AM (IST)Updated: Tue, 13 Nov 2018 03:21 AM (IST)
स्टेट के ध्यानार्थ..ब्राह्माणीघाट सूर्यमंदिर में विरंची रूप 
में विराजमान हैं भगवान भुवन भास्कर
स्टेट के ध्यानार्थ..ब्राह्माणीघाट सूर्यमंदिर में विरंची रूप में विराजमान हैं भगवान भुवन भास्कर

विनय कुमार मिश्र, बोधगया

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उदीच्य वेशधारी भगवान भुवन भास्कर विरंची रूप में गया के ब्राह्माणीघाट सूर्यमंदिर में विराजकर शदियों से अपने भक्तों का कल्याण कर रहे हैं। मंदिर में विराजमान प्रतिमा को 'गयादित्य' के नाम से भी जाना जाता है। कुष्ठ निवारण एवं संतान प्राप्ति के लिए इस स्थान का विशेष महत्व रखता है। पत्नी संज्ञा एवं अपने पुत्रों यथा शनि व यम तथा सारथी अरुण के साथ सप्ताश्व जुते एक चक्रीय रथ पर सवार भगवान भुवन भास्कर की सात फीट काले पत्थर की प्रतिमा दर्शनीय और साधनीय है। असाध्य कुष्ट रोग में तो भगवान विरंची के विशेष अनुष्ठान से अनगिनत भक्तों ने कंचन काया को प्राप्त किया है।

पुराणों के अनुसार, गयादित्य की उपासना से असंख्य पुत्रहीन माताओं की सूनी गोद भरे हैं। कार्तिक व चैत्र छठ पर्व तथा माधशुक्ल सप्तमी के अवसर पर मंदिर की विशेष साज-सज्जा के साथ यज्ञादि का आयोजन किया जाता है। उदीच्य वेशधारी रथारुढ सूर्य की प्रतिमा का विधान मत्स्यपुराण में देखने को मिलता है।

ब्राह्माणीघाट में सूर्यमंदिर होने के कारण इस घाट को शहर का सबसे स्वच्छ और सुंदर घाट कहा जाता है। इस वर्ष छठ पूजा के मद्देनजर श्रद्धालुओं के सहयोग से घाट की विशेष साज-सज्जा कराई गई है। घाट के सामने फल्गु नदी में कुंड खोदा गया है। जहां छठव्रती अस्ताचल और उदयाचल सूर्य को अ‌र्घ्य अर्पित करेंगे। मंदिर के प्रधान आचार्य प्रो. मनोज कुमार मिश्र बताते हैं कि मंदिर का जीर्णोद्धार 1862 में भूनादाई चौधराईन द्वारा कराया गया था। श्रीमद्भागवत कथा श्रवण के उपरांत उन्होंने लिखित रूप में मंदिर को पं. राम मिश्र को दान स्वरूप दिया था। तब से आज तक पं. रमापति मिश्र, पं. बासुदेव मिश्र, पं. पूर्णचंद्र मिश्र, पं. बच्चा मिश्र पं. जगत किशोर मिश्र आदि के वंशजों के द्वारा जनसहयोग से मंदिर की व्यवस्था की जाती है। वर्तमान में पं. पूर्णचन्द्र मिश्र एवं पं. जगत किशोर मिश्र के नावल्द रहने के कारण पं. बच्चा मिश्र के दौहित्रों आचार्य मनोज कुमार मिश्र एवं पं. संतोष कुमार मिश्र द्वारा अपने पूर्वजों की परंपरागत धरोहर की देखरेख की जा रही है। उन्होंने कहा कि सूर्यमंदिर में कोई भी आयोजन होने पर मोहल्ले के नवयुवक बढ़चढ़ कर हिस्सा लेकर सफल बनाते हैं।


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