बिहार एक गांव बना नजीर: आजादी के बाद से नहीं दर्ज हुआ एक भी केस, नशे पर है पाबंदी, साफ-सफाई में भी अव्वल
सर्किल पुलिस इंस्पेक्टर की मानें तो आजादी के बाद से गांव का कोई मुकदमा थाने के रिकार्ड में नहीं है। पंचायत का निर्णय ही अंतिम होता है। एक और खास बात यह कि गांव में सार्वजनिक स्थलों की सफाई ग्रामीण स्वयं करते हैं। यहां नशापान पर भी प्रतिबंध है।
कौशलेंद्र कुमार, शेरघाटी (गया): बात-बात पर थाना व न्यायालय के चक्कर लगाने वाले लोगों के लिए गया जिले का यह गांव नजीर है। हम बात कर रहे हैं जिला मुख्यालय से 90 किमी दूर आमस प्रखंड की चिलमी कला पंचायत के ‘बनकट’ गांव की। ऐसा नहीं कि यहां विवाद नहीं होते, लेकिन लोग अपनी फरियाद लेकर बाहर नहीं जाते।
सर्किल पुलिस इंस्पेक्टर की मानें तो आजादी के बाद से गांव का कोई मुकदमा थाने के रिकार्ड में नहीं है। पंचायत का निर्णय ही अंतिम होता है। एक और खास बात यह कि गांव में सार्वजनिक स्थलों की सफाई ग्रामीण स्वयं करते हैं। यहां नशापान पर भी प्रतिबंध है।
कैसे पड़ा गांव का नाम बनकट?
गांव के 73 वर्षीय बुजुर्ग रामदेव यादव बताते हैं कि साल 1914 के सर्वे में बाहर से आकर बसे तुलसी यादव, मुंगेशर यादव, नथुनी यादव एवं सजीवन यादव के तीन घरों का अस्तित्व था। उस समय चारों और जंगल था, जिसे काटकर खेती योग्य भूमि बनाई गई। इसी कारण गांव का नाम बनकट पड़ गया।
समरसता, भाईचारे व संस्कार पर लोगों को गर्व
वर्तमान में 250 लोगों की आबादी वाले इस गांव की सामाजिक समरसता, भाईचारे और संस्कार पर यहां के लोगों को गर्व है। रामदेव यादव कहते हैं, 'भाई-भाई व पति-पत्नी के बीच मनमुटाव कहां नहीं होते? यहां अगर ऐसे मामले सामने आ भी गए तो उसे गांव से आगे बढ़ने नहीं दिया जाता है। कोई बड़ा झगड़ा तो होता ही नहीं।''
आमस के थानाध्यक्ष मृत्युंजय कुमार ने बताया कि उनके कार्यकाल में गांव का कोई मामला दर्ज नहीं हुआ है। पहले के भी किसी मुकदमे की भी जानकारी नहीं है। सर्किल पुलिस इंस्पेक्टर अजीत कुमार सिंह बनकट गांव को एक मिसाल मानते हैं। कहते हैं, ‘आजादी के बाद से हुए छोटे-मोटे विवादों को ग्रामीणों के खुद सुलझा लेने की बात सुनकर आश्चर्य हुआ, लेकिन थाने का रिकॉर्ड खंगाला तो बात सच निकली। थाने के रिकॉर्ड में गांव की एक भी प्राथमिकी नहीं मिली है।’
सभी ग्रामीणों के लिए मान्य पंचायत का फैसला
ग्रामीण धनंजय कुमार बताते हैं कि किसी विवाद के निपटारे के लिए गांव के सामुदायिक भवन में पंचायत बैठती है। एक व्यक्ति को मध्यस्थता की जिम्मेदारी दी जाती है। दोनों पक्ष बारी-बारी से अपनी बात रखते हैं। फिर, पंचायत के पांच सदस्य अलग होकर विचार-विमर्श करते हैं। इसके बाद लिया गया उनका मौखिक फैसला सर्वमान्य होता है। उन्होंने कहा कि गांव के लोग अपने विवाद पंचायत के स्तर से सुलझा लेते हैं। चिलमी कला पंचायत के मुखिया महेंद्र पासवान कहते हैं, ‘गांव में भाईचारा इतना अच्छा है कि कोई मामला पंचायत से बाहर नहीं जाता है।’
अर्थदंड की राशि से होते समाज हित के कार्य
ग्रामीण ओम प्रकाश यादव कहते हैं कि किसी बड़ी गलती के लिए आर्थिक दंड का प्रावधान है। फैसले का उल्लंघन करने वाले पर भी फिर पंचायत बैठा कर आर्थिक दंड लगाया जाता है। दंड से प्राप्त राशि गांव के गरीबों के घर विवाह, उनके इलाज व सार्वजनिक हित के कार्यों में लगाई जाती है। पंचायत के फैसले के उल्लंघन पर सामाजिक बहिष्कार का भी नियम है, लेकिन कोई ऐसा नहीं करता।
राजनीति को ले सजगता, एकजुट हो देते वोट
ओम प्रकाश कहते हैं कि यहां के युवा नशा पान नहीं करते हैं। स्थानीय दुकानों में सिगरेट, बीड़ी, गांजा, भांग, तिरंगा जैसी मादक पदार्थों की बिक्री नहीं होती है। हां, बुजुर्ग खैनी का सेवन कर सकते हैं। कुछ युवाओं ने बताया कि वे गली, नाली व सार्वजनिक स्थलों की नियमित सफाई स्वयं करते हैं। शादी-विवाह या उत्सव को पूरा समाज एक साथ मनाता है।
राजनीतिक रूप से भी सजग यह गांव चुनावों के पहले एकजुट होकर वोटिंग का फैसला करता है। गांव में कार्तिक छठ उत्सव के रूप में मनाया जाता है। मदार नदी के तट पर बने दोमुहान छठ घाट पर औरंगाबाद एवं गया जिले के व्रती अर्घ्य अर्पित करते हैं। गांव के दो छोर उत्तर एवं पश्चिम औरंगाबाद जिला की सीमा को स्पर्श करते हैं।
20 सालों में आए हैं बड़े बदलाव
शिक्षक की नौकरी कर रहे युवा अरुण कुमार बताते हैं कि पिछले 20 सालों में यहां बड़ा परिवर्तन आया है। गांव के तीन युवा सरकारी सेवा में हैं। दो दर्जन लड़कियां स्नातक हैं। एक प्राथमिक विद्यालय है, जहां प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद बच्चे औरंगाबाद जिला अंतर्गत मदनपुर में आगे की स्कूली शिक्षा ग्रहण करते हैं। वे स्नातक की शिक्षा औरंगाबाद जिला मुख्यालय में प्राप्त करते हैं। गांव में दोनों ओर से पक्की सड़कें रहने के कारण आवागमन आसान है। यहां नल-जल योजना भी कार्यान्वित है। हर घर में बिजली और सिंचाई के लिए दर्जनों नलकूप हैं।