सिर्फ नाम का आजाद पार्क, यहां व्यायाम के लिए नहीं मिलती 'आजादी'
गया। अत्यधिक प्रदूषण तनाव व काम के दबाव से परेशान लोगों को प्रकृति की संगति सुकून देती है पर आजाद पार्क में जाने के बाद भी सुकून नहीं मिलेगा। कारण यह कि यहां कसरत के लिए कोई उपकरण ही नहीं हैं।
गया। अत्यधिक प्रदूषण, तनाव व काम के दबाव से परेशान लोगों को प्रकृति की संगति सुकून देती है। शहरी क्षेत्र के बाशिंदे इसे दूर करने के लिए पार्को की शरण लेते हैं। जाएं भी क्यों ना? इससे बेहतर विकल्प कोई दूसरा नहीं मिलता है। यह अलग बात है कि गया शहर के पार्को की स्थिति बहुत अच्छी नहंी है। शहर के मध्य भाग में स्थित आजाद पार्क ब्रिटिशकाल का बना है, पर यहां आने वाले लोगों को व्यायाम करने के लिए आजादी नहीं मिलती है। यानी न कोई उपकरण लग सके, न ही कोई सुविधा मयस्सर हो पाई।
ब्रिटिश सरकार द्वारा पिलग्रिम अस्पताल के साथ इस पार्क का भी निर्माण कराया गया था। आजादी के बाद ब्रिटिश पार्क से नाम बदलकर देश के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलाम आजाद के नाम पर रख दिया गया, लेकिन यहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। सुविधा के नाम पर एक शौचालय तक नहीं है, जबकि सुबह-शाम सैर सपाटे को लेकर लोगों की भीड़ लगी रहती है। शहर के बीचोंबीच रहने के कारण यह पार्क हमेशा लोगों से गुलजार दिखता है, लेकिन नगर निगम इसकी अनदेखी कर रहा है। जीबी रोड पर स्थित है पार्क :
आजाद पार्क शहर के गौतम बुद्ध मार्ग पर स्थित है। वहीं जयप्रकाश नारायण अस्पताल के ठीक सामने है। पार्क के पूरब से पश्चिम 400 फीट व उत्तरी से दक्षिण 600 फीट है। पार्क का पाथ-वे पूरी तरह से जर्जर हो गया है, जिस पर चलने में लोगों की परेशानी हो रही है। वहीं पेयजल के लिए पार्क में एक भी प्याऊ नहीं है। पार्क के आगे कई दुकानें खुली हैं, जो पार्क की दीवारों को अतिक्रमण कर रखा है। सभास्थल के रूप में बदल गया पार्क :
पार्क सभा स्थल में बदल कर रहा गया है। बच्चों के खेलने की जगह पर प्रत्येक दिन छोटी एवं बड़ी सभा होती है, जिससे बच्चों को खेलने में काफी परेशानी होती है। पार्क पूरी तरह से सभा स्थल में बदलकर रहा गया है। साथ ही दोपहर से रात तक पार्क में अस्थायी रूप से दुकानें खुल जाती है। क्या बोले लोग ::
पार्क में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। इतने बड़े पार्क में एक शौचालय तक नहीं है, जिससे सबसे अधिक परेशानी महिलाओं की होती है। सुबह में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या अधिक रहती है।
-शत्रुघ्न सिंह पार्क में बच्चों के खेलने के लिए कुछ भी नहीं है। पार्क में एक झूला तक नहीं लगा है। नाम का सिर्फ पार्क है। सुविधा कुछ भी नहीं है। पार्क में काम के नाम सिर्फ पाथवे का निर्माण कराया गया था। वह भी टूटता जा रहा है।
-नरेश प्रसाद पार्क में दस साल से सुबह में सैर-सपाटा कर रहा हूं। जैसे पहले था आज भी पार्क वैसा ही है। विकसित करने के लिए एक भी काम नहीं किया है। वहीं दोपहर से लेकर शाम तक पार्क में जुआ खेलने वाले जुआरियों का अड्डा बना रहता है।
-राजीव कुमार शहर के बीच में रहने के कारण महिलाएं अधिक संख्या में सुबह में टहलने के लिए आते है, लेकिन सुविधा कुछ भी नहीं है। व्यायाम करने के लिए एक भी उपकरण नहीं लगा है। साथ ही बच्चों के मनोरंजन के लिए कुछ भी नहीं है।
रिकी देवी