Move to Jagran APP

Coronavirus: शव ढोने से लेकर अंत्‍येष्टि तक के लिए यहां तय है पैकेज, तार-तार होती है संवेदना

कोरोना महामारी एक ऐसी विपदा के रूप में सामने आई है जिसने मानवीय संवेदना को भी तार-तार कर दिया है। कोरोना से मौत के बाद इंसानियत इस रूप में सामने आती है जो पत्‍थर दिल को भी झकझोड़ कर रख दे।

By Vyas ChandraEdited By: Published: Fri, 30 Apr 2021 07:40 AM (IST)Updated: Fri, 30 Apr 2021 07:40 AM (IST)
Coronavirus:  शव ढोने से लेकर अंत्‍येष्टि तक के लिए यहां तय है पैकेज, तार-तार होती है संवेदना
गया के मोक्षधाम में हो रही अंत्‍येष्टि। जागरण

गया, जागरण संवाददाता। कोरोनावायरस (Coronavirus) ऐसा काल बनकर आया है जिसने मानवीय जीवन के साथ संवेदना (Human Compassion) को भी झकझोड़ दिया है। कुछ लोगों ने इस आपदा को अपने लिए अवसर बना लिया है। कोरोना संक्रमित होने के बाद इलाज से लेकर अंत्‍येष्टि तक हर जगह इंसानियत तार-तार हो रह है। हम बात कर रहे हैं गया शहर की। यहां हर रोज कोरोना की वजह से लोग असमय काल के गाल में समा रहे हैं।  मौत की गिनती के सही आंकड़े नहीं मिल पाते। कौन कहां कैसे मर रहा है। यह पता नहीं चलता। मौत का प्रशासनिक आंकड़ा दूसरी लहर में 100 पार कर चुका है। गया श्मशान घाट पर कोरोना से मरने वालों की कितनी लाशें जलती हैं इसका सही आंकड़ा तो पता नहीं चलता लेकिन अनुमान के अनुसार हर दिन दो दर्जन से अधिक लाशें जलती  हैं। 

loksabha election banner

कोरोना होने के बाद शुरू हो जाती है जंग

कोरोना होने पर मरीज से लेकर उनके स्‍वजनों तक को कई स्‍तर पर जंग लड़नी पड़ती है। पहले तो मरीज को भर्ती कराने और उसे समुचित इलाज की जंग, फिर उसकी जान बचाने की जंग और यदि नहीं बच पाए तो अंत्‍येष्टि की जंग। जिला प्रशासन ने गया के अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कालेज सह अस्पताल को कोविड हास्पीटल का दर्जा जरूर दिया है। लेकिन वहां मिलने वाली सुविधा में सिर्फ अस्पताल में भर्ती होने का संतोष मात्र है। मौत हो जाती है तो स्वजन रो-पीटकर कोरोना को कोसते हैं। यही नियति है। लेकिन स्वजनों का दर्द यहीं खत्म नहीं होता।

शव ढोने के लिए अलग-अलग रेट

कोरोना से मरने वालो के शव को ढोने के लिए शव वाहन के अलग-अलग रेट हैं। जैसा आदमी वैसी बोली। एएनएमसीएच से गया के श्मशान घाट की दूरी बहुत ज्यादा नहीं है फिर भी हजार और पांच हजार तक की बात होती है। अब शव जब श्मशान घाट पर किट के साथ पहुंच जाता है तो वहां के स्वयंभू राजा डोम होते हैं। स्वजन दूर-दूर ही रहते हैं। वहां अलग परेशानी शुरू होती है। 

अंतिम संस्कार का भी है पैकेज

प्रशासन ने कोरोना मृतकों के लिए सामान्य श्मशान घाट से थोड़ी दूर पर पिछले साल ही स्थान निर्धारित कर दिया था। वहीं इस साल भी लोग जलाए जा रहे हैं। अंतिम संस्कार की इस प्रक्रिया को पूरी करने के पहले वहां के राजा एक पैकेज तय करते हैं। यह 15 हजार से 30 हजार तक का  होता है। स्वजनों के साथ वहां मजबूरी होती है। इसलिए अनुनय-विनय के बाद एक राशि तय हो जाती है। जबकि सामान्य दिनों में पांच से लेकर सात हजार के बीच अंतिम संस्कार का कार्य पूरा हो जाता था। तोल-मोल की इस प्रक्रिया में घंटों समय लगता है। परेशान स्वजन करें तो क्या। उनके साथ मजबूरी है। अगर बात नहीं बनती तो फिर संस्कार कैसे होगा। 

प्रशासन करे हस्तक्षेप

शहर के कुछ बुद्धिजीवियों ने श्मशान घाट के स्वयंभू राजा के इस व्यवहार पर काफी दुख जताया है। शायद मानवता खत्म हो गई है। बुद्धिजीवियों ने जिला प्रशासन से इस व्यवस्था में हस्तक्षेप करने की मांग की है। जबकि स्वयंभू राजा का कहना यह है कि जब मृतक के स्वजन उनसे सटते नहीं हैं तो वैसी स्थिति में हम तो दाह-संस्कार करेंगे। अगर उससे कुछ रुपया मांग ही लिया तो कोई गलत नहीं किया। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.