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एक चौकीदार के भरोसे होता था बूथ, कहीं कोई डर-भय नहीं

(फोटो राजेंद्र सिंह) -------------------- --आजादी के बाद पहले आम चुनाव से अब तक के दौर को देखा है स्वतंत्रता सेनानी ने

By JagranEdited By: Published: Thu, 04 Apr 2019 10:22 PM (IST)Updated: Fri, 05 Apr 2019 06:28 AM (IST)
एक चौकीदार के भरोसे होता था बूथ, कहीं कोई डर-भय नहीं
एक चौकीदार के भरोसे होता था बूथ, कहीं कोई डर-भय नहीं

अरविंद कुमार, फतेहपुर

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एक दौर वह था कि गाव-समाज के लोग प्रत्याशियों के भोजन-भात की व्यवस्था करते थे। दौर वह भी आया, जब चुनाव के समय प्रत्याशी ही यह सब करने लगे। बदलते परिवेश को चुनाव दर चुनाव काफी नजदीक से देखते आए करीब 98 वर्षीय राजेंद्र सिंह कहते हैं कि अब लोकतंत्र की मजबूती की जवाबदेही आज की पीढ़ी पर है। वह लोभ-लालच देने वाले उम्मीदवारों का विरोध करे। फतेहपुर के वभनटोली मोहल्ले के रहने वाले राजेंद्र सिंह ने आजादी की लड़ाई लड़ी थी। मुखिया भी रहे। वे बताते हैं, आजादी के बाद पहली बार आम चुनाव हुआ तो लोगों का उत्साह देखते बनता था। इस चुनाव को लेकर भी वे उतने ही उत्साहित हैं, जितना पहले चुनाव को लेकर थे, क्योंकि मतदान हमारे लोकतंत्र का दिया हुआ सबसे बड़ा अधिकार है।

वे अतीत में झाकते हुए बताते हैं-पहले मतदान केंद्रों पर सुरक्षा के नाम पर सिर्फ इलाके के चौकीदार और ग्राम रक्षा दल के सदस्य होते थे। कहीं कोई डर-भय नहीं। उम्मीदवार प्रचार के लिए आते थे तो रात होने पर उसी गाव में रुक जाते थे। उनके खान-पान की व्यवस्था गाव वाले ही करते थे। मतदान का उत्साह ऐसा कि क्या जंगल, क्या पहाड़, लोग कई-कई किलोमीटर पैदल ही चलकर वोट डालने जाते थे। प्रत्याशियों के लिए जरूरी था कि वे मतदाताओं से मिलें। वे दरवाजे तक आते थे। अपनी बात रखते थे। गाव वाले सबकी सुनते थे, फिर विचार करते थे। समय के साथ प्रचार का स्वरूप भी बदला है। नेता भी बदले हैं, मतदाता भी। वे बताते हैं, 1980 के चुनाव में क्षेत्र में पहली बार चारपहिया वाहन से प्रचार शुरू हुआ। उनके इलाके में पार्टियों के राष्ट्रीय नेताओं का आवागमन 1990 से शुरू हुआ। पहले चुनाव में धनबल की कोई चर्चा नहीं होती थी। आज तो इसके बिना बात तक नहीं होती है। 1980 में बूथ कब्जा जैसी बातें होनी लगीं। जिसके पक्ष में जितने लोग, बूथ उनका। लेकिन उस समय तक हरवे-हथियार का इस्तेमाल नहीं होता था। फिर हथियार भी आने लगे। लेकिन अब ेऐसा नहीं है। चुनाव आयोग सख्त हुआ है। इसका असर दिखता है। मतदाता भी जागरूक हुए हैं। वे कहते हैं, यह जरूरी है कि हम चुनाव में सोच-समझकर अपने विवेक से मताधिकार का प्रयोग जरूर करें।


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