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एक गांव जहां पीढिय़ों से नहीं लिया जाता दहेज, लिया तो समाज देता दंड

बिहार के गया जिले का एक गांव एेसा है जहां दहेज लेने की परंपरा नहीं, यहां दहेज लेने पर दंड देने का भी प्रावधान है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Tue, 05 Dec 2017 12:03 PM (IST)Updated: Tue, 05 Dec 2017 07:52 PM (IST)
एक गांव जहां पीढिय़ों से नहीं लिया जाता दहेज, लिया तो समाज देता दंड
एक गांव जहां पीढिय़ों से नहीं लिया जाता दहेज, लिया तो समाज देता दंड

गया [विश्वनाथ प्रसाद]। गया का गौराडावर जैसा गांव एक उदाहरण है, जहां सामाजिक कुरीतियों को लोग न सिर्फ महसूस करते हैं, बल्कि उसे खत्म करने पर अमल भी करते हैं। यह समाज के उनलोगों के लिए एक प्रेरणा है, जिनके बेटे की बरात बगैर पैसा लिए नहीं निकलती।

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ऐसा नहीं कि इस गांव में शिक्षा का स्तर बहुत ऊंचा है। गांव अब भी काफी पिछड़ा है, पर यहां के लोगों की सोच बहुत ऊंची है। यहां तो दहेज लेने पर सामाजिक दंड की व्यवस्था है। ऐसी ही सोच रखने वालों से असली समाज का निर्माण होता है। 

गांव में दहेज पर है प्रतिबंध 

इमामगंज प्रखंड में पिछुलिया पहाड़ की गोद में बसे इस गांव के पत्तल दूरदराज तक जाते हैं। हर कोई इस गांव को जानता है, पर अपने सामाजिक-आर्थिक परिवेश में खुश यहां के ग्रामीणों ने कभी किसी बेटी वाले से दहेज नहीं मांगा और न दिया। यह यहां की खासियत है। यह आजादी के पहले से चला आ रहा है। 

पूर्वजों ने बनाई थी परंपरा  

दहेज जैसी परंपरा जब समाज में हावी थी और बाद में उसका विकराल रूप सामने आता चला गया, उस समय इस गांव के पूर्वजों ने यह तय किया था कि दहेज न लिया जाएगा, न दिया जाएगा। आजादी से पहले इस गांव में भोक्ता जाति के लोग बसे थे।

यहां के करीब 70 वर्षीय बुजुर्ग जगदीश सिंह भोक्ता बताते हैं कि यह परंपरा कई पीढिय़ों से चली आ रही है। रघुनंदन सिंह भोक्ता और विजय सिंह भोक्ता बताते हैं कि दहेज लेने पर सामाजिक दंड का प्रावधान पूर्वजों ने ही बनाया था, पर समाज में आज तक किसी को इसके लिए दंडित करने की नौबत नहीं आई है। 

इस साल भी तीन शादियों में दहेज नहीं 

पंचायत समिति के पूर्व सदस्य उपेंद्र सिंह भोक्ता बताते हैं कि दस साल पूर्व उन्होंने अपनी बहन किरण की शादी मदनपुर में की। कोई दहेज नहीं दिया। इस साल भी गांव के एक लड़के और दो लड़कियों की शादी बगैर दहेज के तय हुई है।

गांव में किसी लड़के की शादी हो या लड़की की, सारी रस्म निभाई जाती है, पर फिजूलखर्ची नहीं करते हैं। कोई तामझाम नहीं होता है। शादी के मौके पर प्रीतिभोज का आयोजन किया जाता है। वह भी बहुत सामान्य तरीके से। 

गांव में आया बदलाव

गौराडावर गांव में दहेज प्रथा के साथ वाल विवाह का भी प्रचलन खत्म हो गया। यहां के अर्जुन सिंह भोक्ता बताते हैं कि शिक्षा के अभाव में पांच साल पूर्व गौराडावर गांव के लोग अपने बेटे-बेटियों की शादीकम उम्र में कर देते थे। आज गांव के लोग शिक्षा के प्रति जागरूक हो चुके हैं।

गौराडावर में सरकार की पहल पर प्राथमिक विद्यालय खुला। गांव के बच्चे और बच्चियां शिक्षा की मुख्यधारा से जुड़ गए। अब माता-पिता अपने बच्चों की शादी उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद 18 और 21 साल के बाद ही करते हैं। 


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