गया में 250 विद्यार्थियों ने विभिन्न प्रतियोगिताओं में लिया भाग, दिखाई अपनी प्रतिभा
चिकित्सक डॉ. विजय करण के सहयोग से डॉ. मंजु करण के चौथी पुण्यतिथि के अवसर पर रविवार को वंदे मातरम् युवा मिशन के तत्वावधान में प्रतिभा सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। जिसमें गया के विभिन्न स्कूलों और महाविद्यालयों से 250 विद्यार्थियों ने भाग लिया।
जागरण संवाददाता,गया : चिकित्सक डॉ. विजय करण के सहयोग से डॉ. मंजु करण के चौथी पुण्यतिथि के अवसर पर रविवार को वंदे मातरम् युवा मिशन के तत्वावधान में प्रतिभा सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। जिसमें गया के विभिन्न स्कूलों और महाविद्यालयों से 250 विद्यार्थियों ने भाग लिया। आयोजित समारोह में निबंध, कविता, गीत,लोकगीत तथा राष्ट्रगीत, त्वरित विषयक अविचारित भाषण आदि प्रतियोगिताओं का आयोजन किया था।
प्रत्येक प्रतियोगिता के विजित प्रथम, द्वितीय और तृतीय प्रतिभागियों को प्रोत्साहन राशि, प्रमाणपत्र, पुस्तक, कलम और शील्ड देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में हड्डी रोग विशेषज्ञ प्रकाश ङ्क्षसह, विशिष्ट अतिथि के रूप में अनुग्रह मेमोरियल कॉलेज के प्रधानाचार्य प्रो. डॉ.शमशुल इस्लाम शामिल हुए। इसके अलावा सम्मानित अतिथि के रूप में गीता दादी,आनंद गोयनका, श्वेता सिंह शामिल हुए। उपस्थित अतिथियों ने डॉ. मंजू कारण के चौथे पुण्यतिथि पर दीप प्रज्वलित कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए। इस मौके पर अतिथियों ने वंदे मातरम युवा मिशन के द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों की सराहना की। प्रतियोगिता में सफल हुए बच्चों ने अपनी कविताओं और गीतों के माध्यम से डॉ. मंजू करण को श्रद्धांजलि अर्पित किया। कार्यक्रम का समापन युवा मिशन के संयोजक अभिषेक मिश्रा के द्वारा किया गया। इस अवसर पर प्रियंका, मनीष, सोनू, रंजन, सुधीर, रजनीश, अंकित, डॉली, काजल, पम्मी राहुल, अविनाश, शुभम, आकाश,ममता शर्मा, नवनीत प्रिय भी मौजूद थे।
भारतीय सांस्कृतिक की पहचान है हिन्दी
जागरण संवाददाता, गया : साहित्य महापरिषद् के बैनर तले विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर अटल पुस्तकालय पंचदेवधाम मानपुर के प्रांगण में विचार व कवि गोष्ठी सह मुशायरा का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता डॉ.रामङ्क्षसहासन ङ्क्षसह ने की। उन्होंने कहा कि भारतीय सांस्कृतिक पहचान की भाषा हिन्दी है। हिन्दी भारत में विविध भाषाओं व संस्कृतियों के बीच पुल का काम करती है, जोडऩे का काम करती है। यह भारत एवं भारतीयता के निर्माण की आधारशिला है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इसके प्रचार- प्रसार के कई आयाम खुल गए हैं। यह मजबूती से राष्ट्रीय से अंतरराष्ट्रीय भाषा बनती जा रही है। लेकिन विडम्बना यह है कि अन्य प्रदेशों में हिन्दी आज खिलखिला रही है, लेकिन हिन्दी भाषी क्षेत्रों में ही वह रो रही है। इसके लिए सामाजिक, साहित्यिक एवं सरकारी स्तर पर आत्मवलोकन की जरूरत है ।