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Bihar Special: आठवीं सदी कैसी थी; ये जानना चाहते हैं तो जरूर जाएं Kaimur, भौंचक रह जाएंगे इसे देखकर

Bihar सिद्ध मातृका लिपि को कुटिला लिपि भी कहते हैं। यह विकटाक्षर के नाम से भी मशहूर है। जाहिर तौर पर इसके अक्षर लिखने-पढ़ने में कठिन होंगे। सातवीं सदी के उत्तरा‌र्द्ध से बारहवीं सदी तक यह लिपि प्रचलित रही।

By Prashant KumarEdited By: Published: Sat, 19 Jun 2021 12:55 PM (IST)Updated: Sat, 19 Jun 2021 02:17 PM (IST)
Bihar Special: आठवीं सदी कैसी थी; ये जानना चाहते हैं तो जरूर जाएं Kaimur, भौंचक रह जाएंगे इसे देखकर
आठवीं सदी के शिलालेख पर लिखे अक्षर। जागरण।

संवाद सहयोगी, भभुआ। कैमूर जिला में भी सभ्यता और संस्कृति का एक इतिहास है। उसके कुछ अंश किताबों में दर्ज और कुछ शिलापट्ट पर उकेरे हुए हैं। ऐसा ही एक शिलालेख रामपुर की बड़वा पहाड़ी पर मिला है, जिसे सिद्ध मातृका लिपि का एक दस्तावेज कह सकते हैं। लेकिन वर्तमान स्थिति में लिखावट अब धीरे धीरे मिटने के कगार पर पहुंचने लगी है।

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पुरातत्वविदों के मुताबिक आठवीं सदी के दौरान इस लिपि का खूब प्रयोग हुआ था। अंदाजा लगाया जा रहा है कि इस दौरान कैमूर की कुलीन संस्कृति रही होगी। बड़वा पहाड़ी रामपुर प्रखंड के बेलांव से थोड़ी दूर पर उचीनर गांव के समीप अवस्थित है। उस पहाड़ी पर छह सौ फीट ऊपर यह शिलालेख उपेक्षित पड़ा हुआ है। बहरहाल शिलापट्ट की लिखावट बेहद धुंधली हो चुकी है।

मिट जाने के कगार तक पहुंच चुकी। आसपास के ग्रामीण इससे अनहोनी की आशंका जोड़े बैठे हैं और पुरातत्व विभाग खामोश। कई बुजुर्गों ने बताया कि उन्होंने भी अपने बुजुर्गों से इस शिलालेख के बाबत थोड़ा-बहुत सुना है। विशेष जानकारी नहीं। सरकार भी तो इसके बारे में जानने की कोई कोशिश नहीं करती।

शिलालेख तक जाने की राह कठिन

पहाड़ी के ऊपर पांच सौ फीट तक तो जाने में कोई खास दिक्कत नहीं, लेकिन उसके आगे सौ फीट का रास्ता दुरुह है। इसी कारण लोग वहां तक पहुंच नहीं पाते। पैर फिसलते ही गहरी खाई में गिरने का अंदेशा रहता है। शायद इसी कारण पुरातत्व विभाग भी जहमत नहीं उठा रहा हो, जबकि यह साधन-संसाधन का दौर है।

संस्कृत के विद्वानों की यह लिपि

सिद्ध मातृका मात्रिका लिपि भारत में आठवीं सदी में प्रचलित थी। संस्कृत के विद्वान ही इसे लिखते-पढ़ते थे। जाहिर तौर पर यह लिपि संस्कृत भाषा की लिपि से मिलती-जुलती है। पुरातत्वविद डॉ. श्याम सुंदर तिवारी शिलालेख के कुछ शब्द पढ़ पाए हैं। वे बताते हैं कि उस पर सुवन, हन, व्यहृत आदि दर्ज हैं। इसका मतलब है कि किसी व्यक्ति द्वारा किसी को स्वर्ण (सोना) और दूसरी बहुमूल्य चीजें दी गई हैं।

सिद्ध मातृका लिपि यानी कुटिला लिपि

इतिहासकार व पुरातत्वविद डॉ. श्याम सुंदर तिवारी ने कहा कि सिद्ध मातृका लिपि को कुटिला लिपि भी कहते हैं। यह 'विकटाक्षर' के नाम से भी मशहूर है। जाहिर तौर पर इसके अक्षर लिखने-पढ़ने में कठिन होंगे। सातवीं सदी के उत्तरा‌र्द्ध से बारहवीं सदी तक यह लिपि प्रचलित रही। नेपाल लिपि, देवनागरी लिपि और तिब्बती लिपि के विकास के साथ ही कुटिला लिपि का लोप हो गया। शिलालेख को पूर्णतया पढ़ने के लिए काफी मशक्कत करनी होगी। पुरातत्व विभाग की टीम जल्द ही यहां आएगी। उसके बाद इस शिलालेख के इतिहास और वृतांत की पूर्णतया जानकारी मिलेगी। 


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