Good News: वन विभाग ने जगाई आस, उपेक्षित पड़े रोहतास के मेगालिथ स्थलों का अब होगा विकास
रोहतास जिले के ऐतिहासिक व पुरातात्विक स्थलों के दिन बहुरने की उम्मीद जग गई है। इस वर्ष पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग बिहार सरकार द्वारा रोहतास वन प्रमंडल के संयुक्त तत्त्वावधान में दीवाल और डेस्क कैलेंडर जारी किए गए हैं।
जागरण संवाददाता, सासाराम। रोहतास जिले के ऐतिहासिक व पुरातात्विक स्थलों के दिन बहुरने की उम्मीद जग गई है। इस वर्ष पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, बिहार सरकार द्वारा रोहतास वन प्रमंडल के संयुक्त तत्त्वावधान में दीवाल और डेस्क कैलेंडर जारी किए गए हैं। इस कैलेंडर में जिले के महापाषाणिक समाधियों को भी स्थान दिया गया है।
इनका थीम है- कैमूर वन्य जीव अभ्यारण्य की धरोहरें। इन कैलेंडरों में चौदह-चौदह पृष्ठ हैं। वर्ष के बारहो मास वाले अलग-अलग पृष्ठों पर कैमूर वन्य जीव आश्रयणी की 12 धरोहरों के दर्शन होते हैं। इन धरोहरों में मेगालिथ को भी स्थान दिया जाना वास्तव में एक अच्छी पहल है। नवपाषाण काल से लौह काल तक बनाई गई इन मेगालिथ या समाधियों को रोहतासगढ़ किले के आसपास पाया गया है। इन समाधियों को दक्षिण भारत से आए उरांव राजाओं के समय काल का माना जाता है, जिन का आधिपत्य कभी रोहतासगढ़ किले पर रहा है। वन प्रमंडल पदाधिकारी प्रद्युम्न गौरव के प्रयास से कैमूर पहाड़ी की धरोहरों को विकसित करने का खाका तैयार किया जा रहा है।
बताते चलें कि कैमूर पहाड़ी में पहली बार मिले महापाषाणिक सांस्कृतिक स्थलों का अस्तित्व मिटने की कगार पर है। ऐतिहासिक मेगालिथ उचित रख-रखाव के अभाव में नष्ट हो रहे हैं। उक्त मेगालिथ पिछले पांच हजार वर्षों का इतिहास छुपाए हुए हैं। इस पहाड़ी में पाषाण काल से ही विविध संस्कृतियों के साक्ष्य मिलते हैं। यहां मध्यपाषाणकाल से लेकर बाद तक के शैलाश्रयों की भरमार है। अब तक यहां आदिमानवों द्वारा बनाए गए 125 से अधिक शैलचित्रों से युक्त शैलाश्रयों की खोज हो चुकी है। लेकिन देखरेख व जानकारी के अभाव में इन ऐतिहासिक स्थलों के अस्तित्व पर बन आई है।
जिले में हैं दो महापाषाणिक स्थल
कैमूर पहाड़ी से जिन बृहत्पाषाणिक स्थलों की खोज हुई है, उनमें से एक रोहतास पहाड़ी पर रोहतासगढ़ की सीमा में है। जबकि दूसरा नौहट्टा प्रखंड के हुरमेटा गांव में अवस्थित है। इनमें हुरमेटा का मेगालिथ अपना वजूद बचाने को संघर्ष कर रहा है। यह कैमूर पहाड़ी के दक्षिणी छोर पर स्थित प्रसिद्ध गांव रेहल से लगभग डेढ़ किलोमीटर उत्तर दिशा में अवस्थित है। यहां अकबरपुर-रेहल या अधौरा-रेहल मार्ग से होकर पहुंचा जा सकता है। हुरमेटा गांव के दो टोले हैं। उत्तर में खरवार टोला और दक्षिण में है उरांव टोला। उरांव टोला से पश्चिम लगभग 150 मीटर की दूरी पर यह पुरातात्विक स्थल अवस्थित है। इस स्थल पर पथरीली चट्टानें उभरी हुई हैं। पाषाण स्तंभों के कारण इस पुरातात्विक स्थल को गांव वाले ‘ठाढ़ पखल’ यानि खड़े पत्थरों की संज्ञा देते हैं।
मेगालिथ को तोड़ ग्रामीण बना रहे गिट्टी
ग्रामीण बताते हैं कि पहले यहां 30 से अधिक पाषाण स्तंभ खड़े थे। कालांतर में इन्हें उखाड़कर कुछ लोगों ने अपने उपयोग में ले लिया। अभी भी कुछ स्तंभ किसी-किसी ग्रामीण के घर में लगे हुए हैं। गांव के कुएं पर भी एक पाषाण स्तंभ का उपयोग धरन के रूप में किया जा रहा है। कुछ स्तंभों को खेतों की मेढ़ में भी लगाया गया है। जबकि अन्य स्तंभों को पत्थर तोड़ने वालों ने तोड़कर गिट्टी बना दिया है। ग्रामीणों ने यह भी बताया कि इन स्तंभों के नीचे से हांडी में रखा हुआ कुछ-कुछ सामान निकलता है।
क्या है मेगालिथ या महापाषाणिक संस्कृति
जिले में रोहतासगढ़ व हुरमेटा महापाषाणिक स्थलों की खोज करने वाले पुरातात्विक शोध अन्वेषक डॉ. श्याम सुंदर तिवारी कहते हैं कि मेगालिथ जमीन पर गाड़े गए विशाल पत्थर हैं जो कहीं घेरा में तो कहीं कतार में देखने को मिलते हैं। आदिम जनजातियों में एक परंपरा थी कि जब भी उनके परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती थी तो वे उसकी अस्थि कलश को जमीन में दफन कर देते थे और उसके ऊपर लंबे विशाल पत्थर को खड़ा कर देते थे। यह वही प्राचीन मेगालिथ है। कई जगह आज भी आदिवासी समुदाय के लोगों द्वारा मेगालिथ की पूजा-अर्चना की जाती है। उनका मानना है कि उनके पूर्वज आज भी मेगालिथ में विराजमान हैं। डॉ. तिवारी के अनुसार डीएफओ प्रद्युम्न गौरव द्वारा जिले के ऐतिहासिक स्थलों के प्रति झुकाव से यह उम्मीद जग गई है की इनके भी दिन बहुरने वाले हैं।