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कोरोना के कारण हुए लाॅकडाउन की चुनौतियों को मात दे फिर से लालिमा बिखेरने को तैयार मगही पान

गया के वजीरगंज प्रखंड अंतर्गत पीपरा एवं जमुआवां में हो रहे मगही पान की खेती पर कोरोना वायरस को लेकर हुए लॉकडाउन के कारण बहुत ही बुरा असर पड़ा। देश विदेश में तो इसकी बिक्री के लिए जाना मुश्किल हो गया।

By Prashant KumarEdited By: Published: Fri, 05 Mar 2021 07:56 AM (IST)Updated: Fri, 05 Mar 2021 07:56 AM (IST)
कोरोना के कारण हुए लाॅकडाउन की चुनौतियों को मात दे फिर से लालिमा बिखेरने को तैयार मगही पान
गया में हो रही मगही पान की खेती। जागरण।

संवाद सूत्र वजीरगंज (गया)। गया के वजीरगंज प्रखंड अंतर्गत पीपरा एवं जमुआवां में हो रहे मगही पान की खेती पर कोरोना वायरस को लेकर हुए लॉकडाउन के कारण बहुत ही बुरा असर पड़ा। देश विदेश में तो इसकी बिक्री के लिए जाना मुश्किल हो गया, स्थानीय स्तर पर भी पान की दुकानें बंद रहने के कारण पान के पत्ते पूरे तीन महीने खेत से किसानों के घर तक ही दब कर रह गया। लेकिन, यहां के किसान हार नहीं मानी और एक बार फिर अपने जिले से लेकर देश के महानगरों तक जाकर मगही पान की लाली बिखेरने को तत्पर हैं।

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लॉक डाउन की अवधि में जब पान के पत्ते देखना पूरी तरह बंद हो गए, तब भी कई किसान नया कोठी बना कर खेतों में लगे रहे। भले ही कुछ नहीं ने इनके पत्ते चढ़कर खेतों को भेंट चढ़ते रहे, लेकिन किसान डटे रहे। कई ने तो भुखमरी का भी सामना किया, जिनका पान की खेती के अलावा और कोई दूसरा व्यवसाय नहीं था। कुछ की हालत आज भी दयनीय है, लेकिन सभी ने सोचा कि अपने मगध की धरती से उठकर देश के कोने-कोने से होते हुए विदेशों खासकर खाड़ी देशों में बनारसी मगही पान बनकर लालिमा बिखेरने वाले इस मगही पान के इतिहास को मिटने नहीं देंगे और जब भी मौका मिलेगा एक बार फिर से हर किसी के मुखड़े पर मगही पान की लालिमा दिखेगी। हां, अभी तो इन किसानों की हालत दयनीय जरूर हो गई है। इन्हें सरकार द्वारा आर्थिक मदद की सख्त जरूरत महसूस की जा रही है। कुछ किसान बताते हैं कि पत्तों की बिक्री नहीं हो रही है। फिलहाल पूरे दिन मेहनत करने के बाद जब ओने-पौने दामों पर पत्ते बिकते हैं तो प्रति व्यक्ति पचास रुपये से अधिक की आय नहीं होती है। ऐसे में कई लोग को खाने के लाले पड़े हुए हैं, फिर भी यहां के किसान जिस बुलंदी से इसे बचाने में लगे हैं यदि सरकार द्वारा इन्हें आंशिक सहयोग मिल जाए तो सोने पर सुहागा हो जाए।

मगही पान की खेती एवं इससे जुड़ी अन्य जानकारियां

पिपरा और जमुआवां गांव गया-राजगीर एनएच 82 पर जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर नवादा जिले के सीमा पर अवस्थित हैं। यहां बसे दर्जनों चौरसिया परिवारों का यह पुस्तैनी धंधा है। इन परिवारों के जीविकोपार्जन का मुख्य साधन मगही पान की खेती हीं है। दोनों गावों में करीब एक सौ पचास बिगहे में इसकी खेती सालों भर होती है। यहां की सौंधी मिट्टी में उपजे पान के पत्ते बनारस की मंडी से होते हुए दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई आदि महानगरों सहीत खाड़ी देश पाकिस्तान एवं अन्य इस्लामिक देषों में पहुंचाया जाता है।

जानकार बताते हैं कि भारत की केन्द्र सरकार एवं बिहार सरकार इस मगही पान का निर्यात कर राजस्व प्राप्त करती हैं। लेकिन इसकी खेती करने वाले किसानों के मुख की ओर चेहरे की लालिमा उतनी प्रखर नहीं है, घर परिवार का जीविकोपार्जन के साथ शैक्षणिक व्यवस्था तो कर लेते हैं। लेकिन, इनका बुनियादी विकास संतोषजनक नहीं है। पान के खेतिहर राजकुमार चौरसिया, शिवपूजन चौरसिया, बेबी देवी, विश्वनाथ चौरसिया, ब्रह्मदेव चौरसिया, अरूण चौरसिया, अजय चौरसिया एवं अन्य बताते हैं कि काफी कठीनाई से पान के पत्ते तैयार होने के बाद उसकी कटनी कर एक-एक सौ पत्तों की एक-एक ढोली बनाते हैं। इन ढोली की कीमत व्यापारियों द्वारा एक सौ से लेकर पन्द्रह सौ रुपये तक होता है, जो उसके गुणवत्ता पर निर्भर करता है। कम मूल्य के ढोली गया एवं प्रदेश स्तर पर स्थानीय शहरों में बिक जाते हैं। उच्च गुणवत्ता वाले पत्ते 15 सौ रूपये प्रति ढोली के हिसाब से बनारस एवं कोलकता की मंडियों में भेजा जाता है।


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