स्वतंत्रता आंदोलन में टिकारी राज की महारानी इंद्रजीत कुंवर ने संभाली थी बागडोर
आलोक रंजन टिकारी। टिकारी राज नौ आना के प्रथम राजा महाराजा हितनारायण सिंह की पत्नी महारानी इंद
आलोक रंजन, टिकारी। टिकारी राज नौ आना के प्रथम राजा महाराजा हितनारायण सिंह की पत्नी महारानी इंद्रजीत कुंवर धर्मपरायण के साथ एक देशभक्त महिला थीं। उनमें राष्ट्र भावना का विचार कूट-कूटकर भरा था। स्वाधीनता की चिंगारी टिकारी शहर में भी सुलग रही थी। इसकी आच टिकारी राज परिवार में भी घर कर चुकी थी, जिसकी शुरुआत वर्ष 1857 के स्वत्रतता आंदोलन से हो गई थी। मगध में स्वतंत्रता आंदोलन की ध्वजवाहक बनीं महारानी के पास उन्नत तोपखाना था, इसलिए अंग्रेज अफसर की बिहार के किसी राजा पर नजर थी तो वह टिकारी राज की महारानी पर। पटना के तत्कालीन आयुक्त विलियम टेलर को टिकारी राज परिवार की भूमिका पर शक हो गया था। विलियम टेलर ने अपने जासूस टिकारी राज के आस-पास लगा दिए थे। चूंकि टिकारी राज उस समय बहुत बड़ा स्टेट था, इसलिए इसके क्रियाकलाप पर पैनी नजर रखी जा रही थी।
गया के कलेक्टर एलंजो मनी के स्वभाव में दिखावा, रंग बदलना व उतावलापन था। उसका दिमाग शीघ्र विचार करने में असमर्थ था और उनके निर्णय शक्ति प्राय: डगमगाती रहती थी। कलेक्टर एलंजो मनी लिखते हैं, वे शेरघाटी में विद्रोहियों को कुचलने के कार्रवाई में लगे थे। उसी समय पटना प्रमंडल आयुक्त विलियम टेलर का पत्र आया। उसमें उन्होंने लिखा था 'आप तुरंत टिकारी राज कूच कर जाइये, वहा सात आना के राजा मोद नारायण सिंह ने किले के चारों ओर करीब 200 तोपों लगा रखी हैं।' एलंजो मनी तुरंत एक जासूस को पता लगाने के लिए टिकारी राज भेजा। जासूस के आने की खबर मिलते ही राजा ने सभी तोपों को वापस अपने किला परिसर में मंगा ली थी। उस समय टिकारी व गया में पकडे़ गए विद्रोहियों के अस्त्र-शस्त्र टिकारी राज के शस्त्रागार में रखे हथियारों से मेल खाता था। अंग्रेज अधिकारियों ने टिकारी राज के हथियार व किले में रखी गई 200 तोपों को जब्त कर लिया।
कहा जाता है कि अंग्रेजों से लोहा लेने और आदोलनकारियों को अस्त्र-शस्त्र उपलब्ध कराने के लिए उस समय टिकारी राज के अंतर्गत दाउदनगर में टिकारी राज के लिए पीतल की तोप बनाने के लिए कारखाना लगाया था। वहा उन्नत और आधुनिक रूप से पीतल की तोप ढाली जाती थी। इसके लिए टिकारी राज ने उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर से कई कारीगरों को दाउदनगर बुलाया था। इस बीच भागलपुर में स्वतंत्रता आंदोलन के लिए सफल विद्रोह करने के बाद वापस लौटते हुए विद्रोहियों को महारानी इंद्रजीत कुंवर ने उनको वित्तीय सहायता प्रदान की थी।