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देश की आजादी में टिकारी राज परिवार का महती योगदान

आलोक रंजन टिकारी। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में गया जिले के टिकारी का योगदान भुलाया नहीं जा सका।

By JagranEdited By: Published: Wed, 12 Aug 2020 06:44 AM (IST)Updated: Wed, 12 Aug 2020 06:44 AM (IST)
देश की आजादी में टिकारी राज परिवार का महती योगदान
देश की आजादी में टिकारी राज परिवार का महती योगदान

आलोक रंजन, टिकारी। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में गया जिले के टिकारी का योगदान भुलाया नहीं जा सकता है। 1857 की क्रांति से लेकर आजादी के आदोलन में टिकारी राज परिवार सहित दर्जनों लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल थे। टिकारी के 16-17 ऐसे प्रमुख योद्धा थे, जिन्हें आजादी के बाद स्वतंत्रता सेनानी का सम्मान मिला।

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1857-58 के सिपाही विद्रोह के दौरान टिकारी राज की महारानी इंद्रजीत कुंवर पर विद्रोहियों को शरण देने का आरोप लगा अंग्रेजों ने किले की तलाशी ली थी। यह सच है कि आदोलनकारियों को अप्रत्यक्ष सहायता दी जा रही थी और 10 हजार रुपये प्रदान किया गया था। 1908 में बिहार काग्रेस का प्रथम प्रातीय सम्मेलन पटना और दूसरा 1909 में भागलपुर में हुआ था। दोनों सम्मेलनों में टिकारी महाराजा गोपाल नारायण सिंह ने बतौर डेलीगेट शामिल हुए थे। 1933 में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध एक आंदोलन में लाठीचार्ज व गिरफ्तारिया भी हुई थी, जिसमें टिकारी के 8 आंदोलनकारी बंदी बनाए गए थे। इसके बाद गाव-गाव में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत शुरू हो गई थी। स्वतंत्रता सेनानियों की गुप्त बैठकें राजेंद्र प्रसाद, विष्णुदेव नारायण सिंह व लाव के महावीर प्रसाद सिंह के नेतृत्व में आंदोलन को और तेज कर दिया गया था। अंग्रेजों को इसकी भनक लगते ही दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन जनता के भारी विरोध व आक्रोश के कारण उन्हें छोड़ना पड़ा।

1942 की अगस्त क्राति के दौरान अंग्रेजों के विरुद्ध विरोध का स्वर और तेज हो गया। कहीं सड़कें तो कहीं पुल तोड़ दिए गए थे। 17 अगस्त 1942 को टिकारी थाने में कैद कई क्रातिकारियों को अंग्रेजी सेना के चंगुल से छुड़ा लिया गया। स्थिति को देखते हुए विशेष फौजी दस्ता टिकारी में तैनात कर दिया। टिकारी राज स्कूल भी आदोलन में कूद पड़ा। 11 अगस्त 1942 को महात्मा गाधी के अंग्रेजों भारत छोड़ो के आह्वान पर विद्यालय के छात्र सड़क पर उतर आए और इंकलाब जिंदाबाद का नारा बुलंद करते हुए टिकारी थाने को घेर लिया था। इंकलाबी छात्रों को विद्यालय के प्रधानाध्यापक राजेंद्र प्रसाद सिंह की हिमायत प्राप्त थी। उनके इस कदम के कारण तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट मिस्टर वा‌र्ल्ज ने राजेंद्र बाबू के विरुद्ध सख्त कदम उठाते हुए विद्यालय के नौ छात्रों को गिरफ्तार कर लिया था। 1939 में महज 14 वर्ष की उम्र में आजादी की लड़ाई में कूदने वाले चितोखर के विष्णुदेव नारायण सिंह और महावीर सिंह के नेतृत्व में 36 क्रातिकारियों का दल टिकारी थाने में लगे अंग्रेजी हुकूमत के झंडे को जला दिया था।

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टिकारी के कुछ प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी :

1. राममचंद्र मिश्र, 2 महावीर प्रसाद सिंह, 3 अवधेश चरण सिंह, 4 गुरू देहल दास, 5 कुलदीप सिंह, 6 बैद्यनाथ शर्मा, 7 मोहन प्रसाद सिंह, 8 नन्द किशोर मिश्र, 9 कर्ण सिंह, 10 मुंद्रिका सिंह, 11 रामाश्रय सिंह, 12 रामचरण सिंह, 13 फागु साव, 14 केदारनाथ सिंह, 15 जवाहर साव, 16 दलू सिंह, 17 परशुराम सिंह, 18 राम अवतार शर्मा और 19 विष्णुदेव नारायण सिंह है। टिकारी प्रखंड कार्यालय परिसर में लगे शिलापट में मात्र 14 स्वतंत्रता सेनानियों के नाम अंकित हैं।

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सम्मानित सेनानी :

चितौखर के विष्णुदेव नारायण हीं एक मात्र स्वतंत्रता सेनानी हैं, जिन्हें नौ अगस्त 2019 को महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की ओर से सम्मानित किया गया है।


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