परिवार से मिलने की उम्मीद में साइकिल से निकल पड़े लखीसराय
फोटो-29 ----------- -झारखंड के गढ़वा से लखीसराय के लिए साइकिल से निकले दो श्रमिक पहुंचे गया शहर -कहा-लॉकडाउन के कारण घुट-घुटकर जी रहे थे जान की परवाह न कर निकले घर के लिए -दोनों गढ़वा में करते थे टाइल्स व मार्बल्स लगाने का काम साथ रहे सारे श्रमिक भी गए अपने घर -------------
सुभाष कुमार, गया
कोरोना संकट के कारण देश में हुए लॉकडाउन से अलग-अलग राज्यों में काम करने वाले श्रमिकों के सामने रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई है। असहाय हो चुके लोगों को कुछ समझ में नहीं आ रहा। इस कारण जिसे जो साधन मिल रहा, वह उसी से अपने घर तक बच्चों के पास पहुंचने की उम्मीद में चल पड़ा है। कोई पैदल निकल पड़ा है तो कोई साइकिल से, रिक्शे से तो कोई ट्रकों व अन्य मालवाहक वाहनों से। उनमें घर पहुंचने की उम्मीद है तो कुछ भी कर जाने का जज्बा।
मंगलवार की दोपहर गया रेलवे जंक्शन के पीछे खरखुरा पानी टंकी के पास दो मजदूर साइकिल से जाते दिखे। रोककर उनसे पूछा गया तो दोनों काफी डरे-सहमे और थके दिखे। बहुत कुरेदने पर दोनों साइकिल सवारों ने बताया कि वे झारखंड के गढ़वा से आ रहे हैं। उन्हें करीब साढ़े तीन सौ किमी दूर लखीसराय जिला जाना है। दोनों ने कहा, उनका घर लखीसराय जिले के पिपरिया दियारा गांव में है। उन्होंने अपना नाम सुबोध तांती व नागेश्वर तांती बताया। दोनों मजदूरों ने कहा, जबसे देश में लॉकडाउन की घोषणा हुई, हर दिन घुट-घुटकर जी रहे थे। खाने के लिए राशन कम पड़ गया। काम बंद हो जाने से दिहाड़ी मिलनी मुश्किल हो गई तो सोचा कि अब किसी भी तरह घर पहुंचेंगे। चाहे कोरोना के कारण प्राण ही क्यों न निकल जाएं!
सुबोध तांती ने बताया, वे लोग खुद का और अपने परिवार का पेट भरने के साथ कर्ज चुकाने के लिए झारखंड के गढ़वा जिले में काम करने गए थे। वहां मार्बल्स व टाइल्स लगाते थे। सबकुछ जैसे-तैसे चल रहा था, इसी बीच लॉकडाउन हो गया। लोगों ने कहा, अब कई महीने तक कर्फ्यू जैसे हालात रहेंगे। खाने-पीने को कुछ नहीं मिलेगा। इस कारण खुद के साथ परिवार की भी चिंता सताने लगी। फिर एक दिन रात में दोनों (सुबोध व नागेश्वर) ने तय किया कि अब किसी भी तरह घर निकलेंगे। कुछ लोगों से पता किया तो उन्होंने कहा कि अब कोई गाड़ी नहीं मिलेगी। फिर दोनों ने एक साइकिल का इंतजाम किया और उसी से अपने घर (लखीसराय) की ओर निकल पड़े।
नागेश्वर ने बताया, परिवार से मिलने की तमन्ना लेकर जब वहां से चले तो कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा। झारखंड सीमा को पार करने लगे तो जांच की गई। प्रशासन ने कहा, जब तक लॉकडाउन है, यहीं रहना होगा। यहीं खाने-पीने को भी मिलेगा। कुछ घंटों तक वहीं सीमा पर ही रहे। फिर अधिकारियों से बड़ी विनती की तो जाने दिया गया। इसके बाद मंगलवार को गया पहुंचे हैं। अब एक-दो दिनों में अपने घर पहुंच जाएंगे।