कहीं चुनावी लाभ के लिए नक्सलियों का तो नहीं लिया जा रहा सहारा
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के मुद्दे पर भले केंद्र की मोदी सरकार और उसके मंत्रियों और भाजपा नेताओं ने सारी आशंकाओं को निर्मूल कर दिया हो लेकिन इसके खिलाफ माहौल बनाने की भरसक कोशिश हो रही।
लवलेश कुमार मिश्र, गया
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के मुद्दे पर भले केंद्र की मोदी सरकार और उसके मंत्रियों और भाजपा नेताओं ने सारी आशंकाओं को निर्मूल कर दिया हो, लेकिन इसके खिलाफ माहौल बनाने की भरसक कोशिश हो रही। इसके लिए अपरोक्ष रूप से नक्सलियों का भी सहारा लिया जा रहा है। गया में रविवार को सीएए के खिलाफ निकले प्रतिरोध मार्च से एक नक्सली महिला की गिरफ्तारी होने से इस बात की तस्दीक हो गई कि केंद्र व भाजपा विरोधी पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए नक्सलियों को मोहरा बनाया जा रहा है! हालांकि अभी यह नहीं उजागर हुआ कि मार्च में नक्सलियों की संलिप्तता के असल मायने क्या थे? क्या यह किसी विपक्षी दल की सुनियोजित रणनीति का हिस्सा है? या फिर नक्सल संगठनों ने अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए ऐसा किया। विधानसभा चुनाव नजदीक देख पार्टियों द्वारा चुनावी फायदे के लिए नक्सलियों का सहारा लेने को सिरे से नकारा भी नहीं जा सकता।
बता दें कि रविवार को शहर में दस अलग-अलग संगठनों ने सीएए के खिलाफ प्रतिरोध मार्च निकाला था। उसमें नक्सली कलावती उर्फ फुलवा देवी भी शामिल रही। पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। उसके संबंध बड़े नक्सली नेताओं से हैं और वह नक्सलियों के शीर्ष नेता संदीप यादव की खास सिपहसालार है। महत्वपूर्ण तो यह कि कलावती पिछले साल लुटुवा थाना क्षेत्र में सीआरपीएफ व नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ में भी शामिल थी। तब वह फरार हो गई थी। पूछताछ में उसने स्वीकारा भी कि वह मुठभेड़ में शामिल थी। उसने यह भी जानकारी दी है कि उसे नक्सल नेता संदीप यादव ने 40-50 व्यक्तियों के साथ शामिल होने को कहा था। इसे बड़ी स्वीकारोक्ति माना जा रहा है। इससे सवाल यह उठ रहा कि सीएए के खिलाफ नक्सल संगठन क्यों सक्रिय हैं? प्रतिरोध मार्च निकालने का आखिर उनका मकसद क्या था? सीएए के विरोध से प्रत्यक्ष तौर पर नक्सलियों को तो कुछ हासिल नहीं होने वाला। लिहाजा, इसे खारिज नहीं किया जा सकता कि मार्च में नक्सलियों की संलिप्तता का असली उद्देश्य अभी से चुनावी माहौल तैयार करना है। केंद्र व भाजपा विरोधी माहौल से नक्सलियों को कोई फायदा होगा नहीं, ऐसे में साफ है कि इसके पीछे किसी न किसी राजनीतिक दल का हाथ जरूर है। 51 दिन से शांतिबाग में चल रहा धरना भी रहस्यमयी बना :
अब जबकि सीएए के खिलाफ निकले मार्च से महिला नक्सली की गिरफ्तारी हो गई और उसमें शामिल रहे लोगों का शांतिबाग में ही भव्य स्वागत हुआ, तो इससे उक्त स्थल पर चल रहा धरना भी सवालों के घेरे में है। पुलिस धरने से नक्सलियों का कनेक्शन तलाशने में जुटी है। बता दें कि शहर के शांतिबाग इलाके में पिछले 51 दिन से सीएए के खिलाफ अनवरत धरना-प्रदर्शन किया जा रहा है। इसी जगह पर रविवार को निकले मार्च में शामिल लोगों का भव्य स्वागत हुआ था।