टप्पा गायकी के अनमोल बोल हो गए बंद
गया । भारतीय संगीत के सुर-ताल में ठुमरी और ठप्पा के बोल अब गोंवर्धन मिश्र से सुनने को नहीं मिलेंगे।
गया । भारतीय संगीत के सुर-ताल में ठुमरी और ठप्पा के बोल अब गोंवर्धन मिश्र से सुनने को नहीं मिलेंगे। बाल्यकाल से ही अपने पिता पं. राम प्रसाद मिश्र उर्फ रामू जी के सानिध्य में तुतला कर शुरु हुए ये बोल 78 वर्ष की आयु में बंद हो गए। शुक्रवार शाम गया में उनका निधन हो गया। देर शाम विष्णुपद के श्मशान घाट पर बड़े पुत्र ऋषि कुमार मिश्र ने मुखाग्नि दी।
वाराणसी घराने के पं. रामप्रसाद मिश्र व माता अन्नपूर्णा देवी के एकमात्र संतान पं. गोवर्धन मिश्र का जन्म 10 मई 1941 को कोलकाता के लिलुआ में हुआ था। घर में ही अपने पिता से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा-दीक्षा पाई।
गया में शास्त्रीय संगीत के एक से बढ़कर एक शौक रखने वाले गयापाल पंडा समाज के लोग हुआ करते थे। पं. मिश्र के पिता रामू जी भी इसी गयापाल पंडा के बीच कोलकाता से आकर बस गए। यहां पं. गोवर्धन मिश्र का बचपन गुजरा। कॉमर्स के विद्यार्थी होते हुए भी इन्होंने संगीत शिक्षा का ज्ञान अर्जन किया। फिर मध्य प्रदेश के खैरागढ़ स्थित इंदिरा कला संगीत महाविद्यालय में पांच वर्षो तक संगीत के विजीटिंग प्रोफेसर के रूप में कार्यरत रहे। इस दौरान उन्होंने मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली के कई बड़े मंचों से अपने गायन की प्रस्तुति से लोगों की वाहवाही लूटी।
गयाजी की तंग गली नादरागंज के अपने मकान में प्रतिदिन सुर और ताल के बीच ठुमरी की गायकी की शिक्षा उन्होंने अपने कई शिष्यों को दिया। तंग गली से निकली यह आवाज दूर-दूर तक सुनाई देने लगी। वर्ष 2007 में पं. गोवर्धन मिश्र को देश के प्रतिष्ठित पुरस्कारों में संगीत नाट्य अकादमी का पुरस्कार तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल द्वारा प्रदान किया गया। विदेशों में कई मंचों पर भी इनके गायन सुने गए। अमेरिका के फोर्ड फाउंडेशन पं. मिश्र के कैसेट पर शोध कर रहा है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जब बिहार के गर्वनर थे तो उन्होंने पं. गोवर्धन मिश्र को धु्रपद गायक रामचतुर मलिक अवार्ड से सम्मानित किया था। अपनी गायकी की दुनिया में लंबी तान के साथ टप-टप्पा-टप के बोल को जीवंत रखने वाले पं. गोवर्धन मिश्र को एक नहीं कई अवार्ड से नवाजा गया। आज भी उनके घर की दीवार गवाह है।
पं. मिश्र अपने पीछे पत्नी गायत्री देवी, पुत्री अर्पणा और अर्चना मिश्र एवं पुत्र ऋषि मिश्र और हरिकुमार मिश्र को छोड़ गए हैं। उनके चले जाने से पूरा परिवार भी मर्माहत है।
बेटी अर्चना कहती हैं, वे कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। गुरुवार को रात भर उन्होंने हमसे व दीदी से भगवान श्रीकृष्ण की नई बंदिशें सुनाने को कहा और हम दोनों बहनें सुनाती रहीं।
शास्त्रीय संगीत के मर्मज्ञ गया के पंडा समाज को शुक्रवार सुबह पं. गोवर्धन मिश्र के चीर निद्रा में जाने की खबर मिली तो सभी दुखी हो गए। सुर सलिला के अध्यक्ष व तीर्थपुरोहित महेश लाल गुप्त कहते हैं, पं. गोवर्धन मिश्र को कोच्ची जी के नाम से गयापाल समाज में जाना जाता था। वे सभी के बीच प्रिय थे। सुर सलिला द्वारा आयोजित तीन दिवसीय शास्त्रीय कार्यक्रम उनकी अंतिम प्रस्तुति के रूप में याद की जाएगी। ठुमरी के युवा गायक राजन सिजुआर कहते हैं, यह शास्त्रीय संगीत के लिए अपूर्णीय क्षति है। पंजाब का टप्पा गाने वाले बनारसी घराने के पं. मिश्र गया ही नहीं सभी प्रमुख शहरों में अपनी बोल से एक अलग पहचान बनाई थी। अब सुनने को नहीं मिलेगा।
संगीतप्रेमी रवि आचार्य और पड़ोस में रहने वाले मनोज मिश्र ने उनके निधन पर गहरा दुख प्रकट किया है। कहा है कि उनकी आवाज मरी नहीं है हर संगीतप्रेमी के जहन में जिंदा है।