कायाकल्प के इंतजार में अटकी है मेहसी बटन उद्योग की सांसें
कभी बटन उद्योग के क्षेत्र में मेहसी अपनी अलग पहचान रखता था। देश का प्राचीन सीप बटन उद्योग वर्तमान समय में संकट के दौर से गुजर रहा है।
मोतिहारी। कभी बटन उद्योग के क्षेत्र में मेहसी अपनी अलग पहचान रखता था। देश का प्राचीन सीप बटन उद्योग वर्तमान समय में संकट के दौर से गुजर रहा है। इसका मुख्य कारण कच्चे माल की कमी मानी जा रही है। इस कारण एकलौता कुटीर उद्योग बंदी के कगार पर पहुंच चुका है। कभी यह उद्योग क्षेत्र के लगभग 20 हजार परिवारों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मुहैया कराता था, जो आज महज गिनती भर के रह गए हैं। इसके उत्थान के लिए सरकार व जनप्रतिनिधियों ने सही दिशा में पहल नहीं की और देखते-देखते कई घरों के चूल्हे पर आफत आ गई। पूर्वी चंपारण के मेहसी में सीप बटन उद्योग की स्थापना मदारीचक निवासी राय साहब भुलावन लाल ने 1906 में की थी। वे उस समय अंग्रेजी हुकूमत में सब इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल के पद पर कार्यरत थे। उन्होंने इस उद्योग की शुरुआत के लिए जापान से मशीन मंगाई। उस समय लगभग दो सौ रुपये की राशि पर यह मशीन मेहसी पहुंची थी। मशीन के पहुंचने के बाद इसे शुरू करने के लिए ढाका से श्रीयुत सेन को बुलाया गया और देखते ही देखते मेहसी में सीप निर्मित बटन का उत्पादन शुरू हो सका। पूर्वी चंपारण के मेहसी से शशिभूषण कुमार की रपट।
=================== हम खड़े हैं पूर्वी चंपारण जिले के मेहसी प्रखंड स्थित चौक बाजार पर। जिसे कभी मदर ऑफ पर्ल अर्थात मोतियों की मां के रूप में पहचान मिली थी। भ्रमण के दौरान यहां स्थापित सीप बटन उद्योग जीर्णशीर्ण अवस्था में मिले। पता चला की यह उद्योग प्रखंड के मोतीझील, बथना, नयन मेहसी, चौक बाजार, बहादुरपुर सहित अन्य गांवों में फैसला हुआ है। सभी जगह कमोवेश यही स्थिति है। कुछ दूर चलने पर सीप बटन उद्योग के धंधे से जुड़े मो. आबिद व मो. सलीम मिले। पूछने पर बताया कि कभी सीप बटन उद्योग के छह सौ से अधिक कारखाने मेहसी के विभिन्न क्षेत्रों में संचालित होते थे। उस वक्त करीब 20 हजार से अधिक परिवारों को यह उद्योग प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मुहैया कराता था। कच्चे माल की कमी व सरकारी उपेक्षा के साथ-साथ बाजार में उत्पन्न प्रतिस्पर्धा व चुनौतियों के कारण देश के एकलौते कुटीर उद्योग को बंदी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। वहीं गौरीशंकर जायसवाल, मो. नूर आलम, मो. महबूब आदि ने एक स्वर में कहा कि ऐसी बात नहीं है कि सरकार ने इस दिशा में पहल नहीं की। सरकार की पहल का अनुपालन नहीं हो सका। इस कारण यह भी रहा कि निजी स्वार्थ के कारण उद्यमियों तक नहीं पहुंच सका। भुलावन लाल ने की थी सीप बटन उद्योग की स्थापना
मेहसी में सीप बटन उद्योग की स्थापना 1869 में जन्मे मेहसी के मदारीचक निवासी राय साहब भुलावन लाल ने 1906 में की थी। वे अंग्रेजी हुकूमत में सब इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल के पद पर पदस्थापित थे। उन्होंने इस उद्योग की शुरुआत के लिए जापान में खान इंजीनियर का अध्ययन कर रहे अंबिका चरण की मदद से मशीनरी मंगाई। तब इसकी खरीदारी व इसे मेहसी तक लाने में दो सौ रुपये खर्च हुए थे। मशीन पहुंचने के बाद ढाका के श्रीयुत सेन को बुलाया गया। इनकी देखरेख में मशीन को चालू कराया गया, जिसके बाद बटन का उत्पादन शुरू हो सका। आर्थर बटलर ने बनाई थी पहली देसी मशीन सीप बटन उद्योग को स्थापित करने के लिए बड़े पैमाने पर मशीनों की आवश्यकता महसूस होने पर इसके निर्माण की जिम्मेदारी मुजफ्फरपुर के आर्थर बटलर को सौंपी गई। बटलर ने अपनी तकनीक से पहली देसी मशीन बनाई। इसके बाद श्रीराम हरिराम इंडस्ट्रीज मुजफ्फरपुर में सीप बटन उद्योग से जुड़ी मशीनें बनने लगीं। उस समय बनी अधिकांश मशीनें पैर चालित थीं। सामान्य सेवा संगठन सीप बटन उद्योग
आजादी के बाद भारत में प्रथम व जापान के बाद विश्व में दूसरा स्थान प्राप्त इस सीप बटन उद्योग पर देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का ध्यान इसके विकास की दिशा में आकर्षित कराया गया। इसके परिणाम वर्ष 1953-54 में आए और इसके उत्तरोत्तर विकास के लिए सामान्य सेवा संगठन सीप बटन उद्योग नामक सरकारी संस्था की स्थापना हुई। इस संगठन के बनने के बाद सीप बटन उद्योग को पर्याप्त बल मिला। मेहसी के लोगों ने ईजाद की नई मशीन
जापान से आई मशीन में उत्पादन को लेकर अधिक श्रम करना पड़ता था और मेहनत के हिसाब से उत्पादन नहीं होता था, क्योंकि उस मशीन पर एक बार में एक ही व्यक्ति कार्य कर पाता था। इस समस्या के स्थाई समाधान को लेकर गहन आत्मचितन के बाद पुरानी मेहसी निवासी स्व. रमाशंकर ठाकुर व मरहूम महमूद अंसारी साहब के संयुक्त प्रयास के बाद पंपिग सेट से चलने वाली मशीन का ईजाद किया गया। इस मशीन के ईजाद होने के बाद सीप बटन उद्योग को एक नई दिशा मिली। इस पर एक साथ सैकड़ों मजदूर कार्य करने लगे। सीप ने बटन के साथ-साथ नया आकर लेना आरंभ कर दिया। बनने लगे आभूषण व सजावटी सामान
स्वनिर्मित मशीन ईजाद होने के बाद सीप ने आभूषण व सजावटी सामान का आकार लेना शुरू कर दिया। बटन के अलावा मेहसी में नाक, कान गला, हाथ, पैर आदि के आभूषण के साथ-साथ शीशा, घड़ी के चैन से लेकर सजावटी सामान भी बनने लगे। इसके साथ ही ऐतिहासिक धरोहरों पर आधारित तस्वीरें भी मेहसी में बनने लगी। इसको मूर्त रूप देने का काम दो भाइयों की जुगल जोड़ी मोतीझील निवासी मरहूम महमूद अंसारी व अलाउद्दीन अंसारी ने किया। इतना ही नहीं इसके अनुपयोगी टुकड़े घरों के फर्श में सजावट के रूप में लगने लगे तो डस्ट व महीन टुकड़े मुर्गीदाना के रूप में उपयोग होने लगा। उस समय सीप के धूल तक उद्योग से जुड़े लोगों के लिए उपयोगी साबित होने लगा। इस बीच नायलॉन के बटन आने के बाद सीप बटन उद्योग के गिरती साख को बचाने में आभूषणों व सजावटी समान ने अहम भूमिका निभाई व इसकी मांग दिन व दिन बढ़ रही थी। वर्ष 2000 के बाद इसमे व्यापक पैमाने पर गिरावट आई और देखते-देखते इसके कई यूनिट बंद होते चले गए। उद्योग को जीवंत करने को की गई है पहल कभी इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के गाउन की शोभा बनी मेहसी के सीप बटन उद्योग पर 2012 में सेवा यात्रा के दौरान मेहसी पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नजर पड़ी। उन्होंने स्वयं भ्रमण कर इस उद्योग के इतिहास का जायजा लिया। वहीं इसे जीवंत करने हेतु ऑन द स्पॉट कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। यहां मुख्यमंत्री ने नई तकनीक की मशीनें लगाने की घोषणा की। इसके लिए मैनमेहसी व बथना में सामान्य सेवा संगठन के तहत सीप बटन उद्योग समिति की स्थापना की व उन्हें करोड़ों की राशि आवंटित करते हुए मशीन स्थापित करने की जिम्मेदारी सौंपी। घोषणा के करीब सात वर्ष बीत चुके हैं। जानकारी के अनुसार उद्योग विभाग, सप्लायर व जिला प्रशासन के प्रशानिक पेच में मेहसी के इस ऐतिहासिक उद्योग की प्रगति अधर में लटकी हुई है। हालांकि इसके भवन का ढांचा तैयार कर लिया गया है।