इस बार विकास की जमीनी हकीकत और 'सपनों' के बीच जंग
चंपारण की जनता देश को लेकर बेहद संजीदा रही है। अपने अधिकारों को पाने का माद्दा रखती है।
मोतिहारी। चंपारण की जनता देश को लेकर बेहद संजीदा रही है। अपने अधिकारों को पाने का माद्दा रखती है। यही कारण है कि चुनाव में जनता विकास की जमीनी हकीकत देख रही है। इसके पूरे होने के 'सपनों' के बीच जातीय समीकरण भी बन रहे। शहरी और ग्रामीण मतदाता सपनों के टूटने का दर्द समझ रहे। पूर्वी चंपारण में इस बार राजनीति की समझ वाले पुराने और पहली बार चुनावी समर में कूदे नए सूरमा के बीच जंग है। जनता चाहती है कि चेहरा और सपना नहीं, विकास करने वाला जनप्रतिनिधि हो। मोतिहारी से संजय कुमार उपाध्याय की रपट। चेहरा और सपना नहीं विकास करने वाला चाहिए
पूर्वी चंपारण संसदीय सीट शुरू से ही राजनीतिक तौर पर समृद्ध रही है। यहा का प्रतिनिधित्व देश की स्वतंत्रता में शामिल सेनानियों से लेकर छात्र राजनीति से आए नेताओं ने खूब किया। बदलाव इस माटी की प्रकृति है। लेकिन, वह भी तब, जब बेहद जरूरी हुआ। वरना यहा का आदमी चेहरा कम, विकास की जमीनी हकीकत परखने का आदी रहा है। मोतिहारी शहर में निकलिए तो विकास वाली तस्वीर दिखती है। महात्मा गाधी रोड, चरखा पार्क और बापूधाम मोतिहारी स्टेशन की नई सूरत यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करती है। यह नई तस्वीर चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष में बुलंद हुई। स्थानीय स्टेशन पर चाय के साथ राजनीति पर चर्चा कर रहे लोगों की बात-हर बार चुनाव में नेता सपने दिखाते हैं। एक-दूसरे पर कटाक्ष करते हैं। लेकिन, मौका देखते ही दल बदल लेते हैं। आम आदमी ठगा महसूस करता है। विकास की जमीनी हकीकत की बात चली तो एक वृद्ध ने इशारा किया सामने स्टेशन देखिए और समझिए। कब, क्या हुआ? थोड़ा अंदर जाइए। यह जिले का चेहरा है। इसे देखिए और बताइए कि चेहरा कब बदला। ऐसी कई बातें..! सभी बातों के बीच एक ही बात, चेहरा और सपना नहीं विकास करने वाला चाहिए।
खंडहर नहीं विकास की नई इमारत चाहिए
हम शहर के जानपुल की ओर चले। जानपुल चौराहे पर सब्जी की दुकान लगाने की कवायद में दुकानदार और धीरे-धीरे दिनचर्या की ओर बढ़ चला शहर। गाजा गदी चौक। एक चाय दुकानदार की सुनिए- वोट का आधार विकास..। हमें राजनीति नहीं करनी। मजबूत राष्ट्र चाहिए। यहीं पर खड़े थे बेलबनवा के युवक अंकित अनुराग। बोले- हमें विकास की नई जमीन की जरूरत है। खंडहर हो चुके उद्योग-धंधों की बात का क्या फायदा? विकास की नई इमारत खड़ी कर सके, ऐसा नेतृत्व चाहिए। वोट गोपनीयता की चीज है। पर, इतना समझ लीजिए विकास ही मुद्दा है।
ग्रामीण मन बहुत कुछ कहता
सभी चुवानों में शहरी से ज्यादा ग्रामीण मन निर्णायक होता है। इस बार के चुनाव में ग्रामीण मन भी बहुत कुछ कह रहा। गाव की बात-सिंचाई का इंतजाम हो। सड़क ठीक हो रही है तो, इसे और ठीक होना चाहिए। अपराध थमने लगा है तो रामराज्य जैसा माहौल आना चाहिए। घिउढार के विजय पासवान कहते हैं, पूरा गाव के नियम बा। जे अच्छा काम करता ओकरा के साथ देवे के बा। देश के दुश्मन के जवाब मिले। विकास के काम होखे। अहिसन सरकार चाहि। यहा से आगे कनछेदवा चौक पर मिले यहीं के दीपक ने कहा- शिक्षा का साधन हो। गरीबों का विकास हो, ऐसी सरकार चाहिए। न कि वायदों की बरसात चाहिए।
महिला का सम्मान और सुरक्षा बेहद जरूरी
चुनावी बयार अभी पूरे रो में नहीं है। लेकिन, टिकट बंटवारे से लेकर प्रत्याशियों के फंडों की जानकारी सभी को है। गाव- घर में रहने वाली महिलाएं भी इस चुनाव में अपनी भागेदारी सुनिश्चित करने की तैयारी में हैं। महिलाएं कहती हैं- हमें सम्मान चाहिए। जिसने हमें सम्मान देने का काम किया और आगे जो करेगा। जिससे हमारी उम्मीद पूरी होती है, उसे वोट करेंगे। मठलोहिया की मुखिया वंदना गिरि कहती हैं- महिलाओं को सुरक्षा और सम्मान मिला है। नशामुक्ति से पारिवारिक कलह का अंत हुआ है। पंचायत के आधा दर्जन गावों में आजादी के बाद 2016 से लोगों को बिजली मिली है। लेकिन, चुनाव के कई मुद्दे सामने आने बाकी हैं। रही बात वोट की तो इस बार विकास।
राधामोहन के सामने हैं रालोसपा के आकाश
इस बार के चुनाव में देश की राजनीति में सक्रिय भाजपा के कद्दावर नेता राधामोहन सिंह के सामने महागठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर रालोसपा के टिकट पर खड़े हैं यहा के पूर्व सासद डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह के पुत्र आकाश कुमार सिंह। डॉ. अखिलेश ने 2004 में राधामोहन को हराया था। लेकिन, 2009 के चुनाव में वे राधामोहन से हार गए थे। इस बार की जंग इस मायने में खास है कि मतदाता नए प्लेयर आकाश को देख रहा। उनके पिता के कृषि राज्य मंत्री के कार्यकाल और राधामोहन के ताजा कार्यो का मूल्याकन जनता कर रही है।
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