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ग्लोबल वार्मिग के दौर में बेहद उपयोगी हो सकती यह सवारी

सीमावर्ती पर्सा जिला के मुसहरवा विश्रामपुर निवासी खुर्शीद आलम ने पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखकर मोटरसाइकिल बनाई है। यह मोटरसाइकिल बैट्री से चलती है। जिसकी रफ्तार 70 किलोमीटर प्रति घंटा है। लैपटॉप बैटरी से संचालित यह मोटरसाइकिल एकबार चार्ज करने के बाद तीन घंटे तक चलती है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 29 Feb 2020 12:43 AM (IST)Updated: Sat, 29 Feb 2020 12:43 AM (IST)
ग्लोबल वार्मिग के दौर में बेहद उपयोगी हो सकती यह सवारी
ग्लोबल वार्मिग के दौर में बेहद उपयोगी हो सकती यह सवारी

रक्सौल । सीमावर्ती पर्सा जिला के मुसहरवा विश्रामपुर निवासी खुर्शीद आलम ने पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखकर मोटरसाइकिल बनाई है। यह मोटरसाइकिल बैट्री से चलती है। जिसकी रफ्तार 70 किलोमीटर प्रति घंटा है। लैपटॉप बैटरी से संचालित यह मोटरसाइकिल एकबार चार्ज करने के बाद तीन घंटे तक चलती है। ग्लोबल वार्मिग के इस दौर में यह मोटरसाइकिल आम लोगों के लिए बेहद उपयोगी हो सकती है। वैसे जुगाड़ सिस्टम से निर्मित मोटरसाइकिल की लागत फिलहाल एक लाख बीस हजार आ रही है। लेकिन, खुर्शीद का दावा है कि संसाधन उपलब्ध हो तो इसकी लागत और कम हो सकती है। इस साइकिल के निर्माण में 156 पीस लैपटॉप बैटरी साइकिल की सीट के अंदर लगी है। जिसमें लाइट और सेल्फ स्टार्ट है। पहाड़ों और समतल क्षेत्रों में भी यह साइकिल आसानी से चलाई जा सकती है। खुर्शीद के पिता शमसुल होदा गेट ग्रिल का काम करते हैं। पिता का सपना था कि बेटा इंजीनियर बने और खुद कोई वाहन तैयार करें। जिसे बेहतर पठन-पाठन के लिए शहर में रखा। खुर्शीद आलम ने बीएससी आइटी सिक्कम मणिपाल नेपाल यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त की । इस बीच घर मे पड़ी एक पुराने बाइक पर ध्यान गया। उक्त बाइक काफी तेज आवाज करती थी। काफी धुआं भी निकलता था। ध्वनि और वायु प्रदूषण को देख कुछ अलग करने की ठान ली। इसके बाद खुर्शीद ने रात-दिन मेहनत कर करीब एक माह के अंदर प्रदूषण मुक्त मोटरसाइकिल तैयार कर दी। इन दिनों उक्त साइकिल का स्वयं उपयोग कर रहे हैं। रक्सौल बाजार जब साइकिल से पहुंचे, तो लोग कौतूहल से देखने लगे। इसके निर्माण के संबंध में जानकारी लेने के लिए लोग उत्सुक रहे। साइकिल में लगे पा‌र्ट्स-पुर्जे, 156 पीस लैपटॉप की बैटरी, डिजिटल मीटर, हार्न, साइड लाइट, स्लेटर, शौकर, टायर, दो लोगों के बैठने की सीट आदि का उपयोग किया गया है। एक बार चार्ज करने से तीन घंटे तक चलती है। इसके निर्माण से पर्यावरण की रक्षा होगी।

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कहते हैं शिक्षाविद्

इस तरह के प्रतिभाशाली युवकों को सरकार द्वारा प्रोत्साहन व सुविधा देनी चाहिए। जिससे बेहतर कर सकें। बैटरी संचालित साइकिल के उपकरणों के संबंध में खुर्शीद ने बताया कि घर में पड़े लोहे के मोटे पाइप और पुराने बाइक के पार्ट से साइकिल बनाने में कामयाबी मिली है। अगर यह साइकिल प्रचलन में आती है, तो ध्वनि और वायु प्रदूषण से राहत मिल सकती है। डॉ. चंद्रमा सिंह, व्याख्याता , केसीटीसी कॉलेज, रक्सौल


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