नगर परिषद क्षेत्र के चापाकलों के पानी की होगी जांच
नगर परिषद क्षेत्र के चापाकलों से निकलनेवाले दूषित पानी की जांच होगी। शनिवार को रक्सौल पहुंची पीएचईडी विभाग की टीम ने वार्ड नंबर 1 2 4 5 7 9 12 22 24 और 25 में अवस्थित चापाकलों से पानी का सैंपल लिया।
रक्सौल । नगर परिषद क्षेत्र के चापाकलों से निकलनेवाले दूषित पानी की जांच होगी। शनिवार को रक्सौल पहुंची पीएचईडी विभाग की टीम ने वार्ड नंबर 1, 2, 4, 5 ,7, 9, 12, 22, 24 और 25 में अवस्थित चापाकलों से पानी का सैंपल लिया। छठिया घाट मंदिर, भकुआ ब्रह्मास्थान, सुंदरपुर अस्पताल और भारत-नेपाल मैत्री पुल के समीप से सरिसवा नदी के पानी का नमूना भी संग्रहित किया। कुल 15 सैंपल लिए गए। पीएचइडी के सुपरिटेंडिग इंजीनियर (डिजाइन एंड प्लानिग) मो. शाहदुल्ला जावेद ने बताया कि उन इलाकों से भी पानी के नमूने लिए गए जहां बीते वर्ष नवंबर- दिसंबर में कई बच्चों की मौत हो गई थी। पानी के सैंपल की जांच जिला स्तरीय जल जांच प्रयोगशाला, मोतिहारी तथा राज्य स्तरीय जल जांच प्रयोगशाला, पटना में कराई जाएगी। मौके पर डॉ. शलभ के साथ ईं. जितेंद्र कुमार, रंजीत सिंह, कमलेश कुमार, पूर्णिमा भारती, कुंदन कुमार, मोतीलाल, सतीश चंद्र राजन, रमेश कुमार, बलिराम पांडेय सहित कई लोग मौजूद थे। कई वर्षो से जहरीला बन गया है सरिसवा नदी का पानी डॉ. शलभ ने बताया कि पीएचइडी के कार्यकारी अभियंता एसपी सिंह ने रक्सौल नगर क्षेत्र के पेयजल की नियमित जांच कराए जाने का आश्वासन दिया था। कहा है कि पीएचइडी इस मामले में हर प्रकार से सहयोग करेगी। भारी प्रदूषण के कारण सरिसवा नदी का प्रवाह अवरूद्ध हो गया है। इसकी अविरलता बनी रहनी चाहिए और किसी भी नाले को नदी में नहीं गिरना चाहिए। सरिसवा नदी के पानी और रक्सौल नगर क्षेत्र और आसपास के पेयजल की जांच की मांग राज्य सरकार से की थी जिसपर संज्ञान लेते हुए मुख्यमंत्री कार्यालय ने इस मामले को पीएचइडी, जल संसाधन विभाग और पंचायती राज विभाग को भेजा था। सरिसवा नदी लगभग मृतप्राय हो चुकी है। इस नदी के काले पानी में लगभग दो दशकों से जहरीला रसायन बह रहा है। पानी के अंदर वनस्पति और जीव जंतु पूर्णतया समाप्त हो चुके हैं। इस प्रदूषण के कारण आसपास का पूरा पर्यावरण प्रभावित है। इस नदी के प्रदूषण के कारण ही अंडरग्राउंड वाटर के दूषित होने की आशंका बनी रहती है। इस अपील में इस बात पर विशेष जोर थी कि नदी के प्रदूषण के मद्देनजर एक निश्चित अंतराल पर पेयजल की जांच कराई जाए।