स्वरोजगार से समाज में बनाएं अपनी पहचान
मोतिहारी। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के मशरूम वैज्ञानिक डॉ. दयाराम ने कहा
मोतिहारी। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के मशरूम वैज्ञानिक डॉ. दयाराम ने कहा कि मौजूदा दौर में सभी को नौकरी मिलना संभव नहीं है। ऐसे में दूसरा विकल्प स्वरोजगार हो सकता है। स्वरोजगार के जरिए न सिर्फ धन कमाया जा सकता है। बल्कि समाज में अपनी एक अलग पहचान भी बनाई जा सकती है। ऐसे कई रास्ते हैं, जो सेल्फ इंप्लॉयमेंट द्वारा आपको सफलता तक ले जा सकते हैं। इन्हीं में से एक है मशरूम उत्पादन। मशरूम यानी खुंबी। इसे गांवों में छतरी व कुकरमत्ता आदि नामों से जाना जाता है। दरअसल, मशरूम को मृत कार्बनिक पदार्थों पर उगने वाला एक मृतजीवी कवक भी कहते हैं। यह खुंबी उत्पादन ग्रामीण पुरुष महिलाओं, युवाओ के लिए एक बेहतर व्यवसाय साबित हो रहा है। वे केंद्रीय कृषि सह किसान कल्याण मंत्री राधामोहन ¨सह के निर्देशानुसार मेहसी के दामोदरपुर स्थित लालेश्वर मशरूम उत्पादन केंद्र पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा आयोजित अनुसूचित जाति उपयोजना के तहत मशरूम उत्पादन कार्यक्रम पर प्रशिक्षण दे रहे थे। उन्होंने बताया कि इस उपयोजना के तहत प्रखंड के चार अनुसूचित जाति बाहुल्य गांव परतापुर, रामपुरवा, दामोदरपुर व रंगरेज छपरा का चयन प्रायोगिक रूप से किया गया है। प्रत्येक गांवो के 30-30 अनुसूचित जाति परिवारों को मशरूम उत्पादन कर आय एवम रोजगार विकसित करने हेतु दक्ष बनाना है। अगर यह प्रयोग सफल रहा तो इसे आगे भी फैलाया जाएगा। मशरूम के दो प्रकार प्रमुख भारत में 12 प्रकार के मशरूम का उत्पादन किया जाता है। इनमें दो प्रमुख है एक बटन मशरूम और दूसरा ऑयस्टर मशरूम। उत्तर भारत की प्राकृतिक परिस्थितियों में बटन मशरूम का उत्पादन किया जाता है। भारत वर्ष में कुल मशरूम का उत्पादन 120 हजार टन है, जिसमें बटन मशरूम के उत्पादन का योगदान 85 प्रतिशत है। ऑयस्टर मशरूम को भारत में ढींगरी मशरूम के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल ऑयस्टर मशरूम काफी सुगंधित तथा जायकेदार होता है। इसमें प्रोटीन, विटामिन, रेशे तथा खनिज लवण प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इस कारण इसका उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है। इसके उत्पादन को लेकर स्वरोजगार के तहत केंद्र व राज्य सरकार ने ऋण की भी व्यवस्था की है। कैसे करें खेती
मशरूम की खेती कृत्रिम रूप से तैयार किए गए कंपोस्ट पर की जाती है। मशरूम-कंपोस्ट बनाना एक जटिल जैव रसायन प्रक्रिया है। इसमें सेल्यूलोज, हेमी सेल्यूलोज और लिग्निन आंशिक रूप से सड़ जाते हैं और अकार्बनिक नाइट्रोजन से सूक्ष्मजीवी प्रोटीन का संश्लेषण होता है। नाइट्रोजन-स्त्रेतों को कम्पोस्ट में मिलने के कारण कार्बन/नाइट्रोजन अनुपात भी कम हो जाता है। कम्पोस्ट बनाने के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला भूसा एक साल से अधिक पुराना अथवा बारिश में भींगा नहीं होना चाहिए। 250 किलो गेहूं के भूसे के स्थान पर 400 किलो धान के पुराल का भी प्रयोग कर सकते हैं। यदि धान का भूसा प्रयोग कर रहे हैं तो साथ में 6 किलो बिनौले (कपास का बीज) के आटे का भी प्रयोग करें। ये थे उपस्थित विकास मिश्रा, भोला राम, परमहंस राम, विनोद राम, खुशबु कुमारी, मिकिता देवी, कविता देवी, निर्मला देवी, गीता देवी, ललिता देवी, ¨पकी देवी, पानो देवी आदि।