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नेपाल में सेना के जवानों ने गाजे-बाजे के साथ निकाली डोली यात्रा

मोतिहारी । सीमावर्ती वीरगंज के गहवा माई यानी द्वारदेवी माई शक्तिपीठ विन्दावसनी और गढ़ी माई स्थान पर सप्तमी को पट खुलने से पूर्व परंपरा के मुताबिक सेना के जवानों ने गाजे-बाजे के साथ डोली यात्रा निकाल पूजा-अर्चना की।

By JagranEdited By: Published: Tue, 12 Oct 2021 11:20 PM (IST)Updated: Tue, 12 Oct 2021 11:20 PM (IST)
नेपाल में सेना के जवानों ने गाजे-बाजे के साथ निकाली डोली यात्रा
नेपाल में सेना के जवानों ने गाजे-बाजे के साथ निकाली डोली यात्रा

मोतिहारी । सीमावर्ती वीरगंज के गहवा माई यानी द्वारदेवी माई शक्तिपीठ विन्दावसनी और गढ़ी माई स्थान पर सप्तमी को पट खुलने से पूर्व परंपरा के मुताबिक सेना के जवानों ने गाजे-बाजे के साथ डोली यात्रा निकाल पूजा-अर्चना की। इसके उपरांत वैदिक मंत्रोच्चारण और तांत्रिक विधि से पूजा-अर्चना किया गया। पुजारी ने भथुहा की बलि दी।

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विश्व का प्रथम देश नेपाल है जिसका प्रमुख त्योहार दशहरा है। जिसे नेपाल में बड़ा दशई कहा जाता है। कलश स्थापना के साथ पूजा-अर्चना शक्तिपीठों और घरों में की जाती है। सप्तमी के दिन माता की डोली के साथ श्रद्धालुओं ने नगर भ्रमण किया। भारत-नेपाल सीमा के पर्सा जिला वीरगंज में ऐतिहासिक गहवा माई जिसे द्वारदेवी माई स्थान के नाम से लोग जानते हैं। यहां फुलापाति यानी खष्टी के दिन नेपाल सेना के सैनिक बैंड बाजा के साथ डोली यात्रा निकाली। पर्सा जिला में स्थित विन्ध्यवासिनी माई स्थान हैबारा जिला के बरियारपुर में गढ़ी माई स्थान पर लोगों ने पूजा-अर्चना की। बता दे कि यहां पांच वर्षों में एक बार मेला लगता है। इस मेले में देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं। मन्नतें पूरी होने पर बलि देते हैं। यहां दुनिया की सर्वाधिक पशुओं की बलि होती है। इस स्थल पर भी दशहरा के समय साधक पूजा -अर्चना करने पहुंचते हैं। वीरगंज के द्वार देवी स्थान यानी गहवा माई मंदिर में सीमावर्ती रक्सौल अनुमंडल के विभिन्न प्रखंडों के पंचायतों और बेतिया, मोतिहारी आदि जिलों से इस मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं। सेना के जवान भथुवा की बलि देते हैं। उसके उपरांत पशुओं की बलि भी होती है। तांत्रिक और वैदिक विधि से पूजा-अर्चना किया जाता है। दशहरा में नेपाल के विभिन्न जिलों में शक्तिपीठों में सरकारी खर्च पर प्रथम पूजा की जाती है। इसके उपरांत मंदिर का पट खुल जाता है। बता दें कि सीमावर्ती क्षेत्र के उक्त दोनों मंदिरों में वर्ष में एक बार नेपाल के पूर्व राजा के परिवार के लोग पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं। इधर कोरोना संक्रमण काल में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र और महारानी दो वर्षों से पूजा के लिए नहीं आए हैं। पौराणिक काल से ही नेपाल में 15 दिनों तक दशहरा मनाया जाता है। इस दौरान जयंत्री विसर्जन के उपरांत कुंआरी कन्याओं की पूजा की जाती है। परिवार के बड़े सदस्यों से आशीर्वाद लिया जाता है। घर के सदस्य जयंत्री देकर चंदन लगाकर आशीर्वाद देते हैं। इसके साथ ही भाई टीका शुरू होता है जो पूर्णिमा तक चलता है।


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