जिले में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल
मोतिहारी । पूर्वी चंपारण जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति काफी खराब है। इस बात की पुष्टि स्वास्थ्य विभाग की रैंकिग से भी हो रही है।
मोतिहारी । पूर्वी चंपारण जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति काफी खराब है। इस बात की पुष्टि स्वास्थ्य विभाग की रैंकिग से भी हो रही है। वित्तीय वर्ष 2018-19 की रैंकिग में जिला प्रदेश स्तर पर अंतिम पायदान पर है। प्रजनन दर, प्रसव पूर्व जांच, संस्थागत प्रसव, सी सेक्शन, ओपीडी सेवाएं, एंबुलेंस सेवा के मामले में जिले की उपलब्धि संतोषजनक नहीं है। चिता की बात यह है कि यह स्थिति उस समय सामने आ रही है जब सूबे में स्वास्थ्य सेवाओं को ठीक करना सरकार की प्राथमिकता है। बीच में स्थिति कुछ ठीक हुई थी। लेकिन, कम समय के साथ सब कुछ बिखर गया। राज्य स्वास्थ्य समिति के कार्यपालक निदेशक ने जिलाधिकारी को समीक्षा बैठक कर जरूरी कदम उठाने को कहा है। डीएम ने कई बैठकें भी कीं। स्थिति को ठीक करने की सख्त निर्देश भी दिया पर, स्थिति में बदलाव नहीं हुआ। कायाकल्प अवॉर्ड मिला फिर चल पड़े बदहाली की ओर जिले के सदर अस्पताल की बात करें तो यह अस्पताल प्रदेश में उत्कृष्टता को लेकर उदाहरण बन गया था। दो-दो बार राष्ट्रीय स्तर के कायाकल्प अवॉर्ड को हासिल किया। लेकिन, वक्त के साथ एक फिर बदहाली की दलदल में फंसा गया। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की भी स्थिति निराशाजनक है। सेवाएं अपेक्षा एवं मानकों के अनुरूप नहीं मिल रही हैं। जिले की 63 लाख आबादी के स्वास्थ्य की देखरेख की जवाबदेही इस सिस्टम पर है। रैंकिग में मिला 38 वां स्थान स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में जिलों की स्थिति को आंकने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने कुल 37 सूचकांक तय किए थे। उन सूचकांकों के आधार पर मूल्यांकन के बाद जो स्थिति सामने आई है वह जिले के लिए बेहद निराशाजनक है। प्रदेश स्मर पर वित्तीय वर्ष 2018-19 के आधार पर की रैंकिग में पूर्वी चंपारण 38वें स्थान पर है। उपलब्धियों का प्रतिशत 48.07 है। जबकि 60.97 प्रतिशत के साथ मधेपुरा पहले स्थान पर है। बिहार का औसत 55.51 प्रतिशत है। संस्थागत प्रसव में 47 प्रतिशत उपलब्धि स्वास्थ्य विभाग ने संस्थागत प्रसव पर खासा जोर दिया है। पूर्व जांच से लेकर सुरक्षित प्रसव की व्यवस्था सरकारी अस्पतालों में की गई है। बावजूद इसके इस जिले में संस्थागत प्रसव का प्रतिशत 47 है। ऐसे में शेष 53 प्रतिशत महिलाएं प्रसव के लिए या तो अस्पताल तक नहीं पहुंच पाती या फिर निजी अस्पतालों का रूख करती हैं। जबकि सरकारी अस्पताल में तमाम सुविधाएं उपलब्ध होने का दावा स्वास्थ्य विभाग का है। अस्पताल तक आने-जाने के लिए उनके लिए निश्शुल्क एंबुलेंस सेवा भी उपलब्ध है। गर्भवती को 14 सौ रुपये की राशि भी दी जाती है। सरकारी अस्पतालों में प्रति प्रसव जेएसएसके के तहत 350 रुपये तक खर्च करने की छूट है। अर्थात प्रसव के दौरान अगर आवश्यक हो तो बाहर से भी इस राशि को खर्च कर दवा मंगाई जा सकती है। बावजूद इसके कई पीएचसी ने निराशाजनक प्रदर्शन किया है। इनमें बंजरिया में 19 प्रतिशत, ढाका में 34, छोड़ादानो में 28, रामगढ़वा में 34 एवं कल्याणपुर को मात्र 26 प्रतिशत लक्ष्य के विरुद्ध उपलब्धि मिली है। 84 प्रतिशत हुई प्रसव पूर्व जांच गर्भवतियों की प्रसव पूर्व जांच की स्थिति कुछ बेहतर कही जा सकती है। इसका प्रतिशत 84 है। हालांकि तीन महीने के अंदर शुरू की गई जांच का प्रतिशत मात्र 48 है। इनमें भी घोड़ासहन, अरेराज, रामगढ़वा, संगामपुर, हरसिद्धि, पीपराकोठी एवं कोटवा को प्रदर्शन निराशाजनक है। जबकि प्रत्येक स्वास्थ्य केंद्रों पर महीने के नौवीं तारीख को जननी बाल सुरक्षा योजना के तहत गर्भवती की जांच की व्यवस्था की गई है। इनके अलावा प्रत्येक टीकाकरण दिवस पर स्वास्थ्य उप केंद्रों एवं आंगनबाड़ी केंद्रों पर भी प्रसव पूर्व जांच की व्यवस्था है। ससमय जांच के साथ ही गर्भवती को होने वाली समस्याओं को चिह्नित कर उसके निदान के लिए प्रयास किए जाते हैं। निर्धारित संख्या में आयरन की गोली भी खाने के लिए दी जाती है। मगर जांच नहीं होने से अथवा आयरन की कमी से प्रसव के दौरान कई तरह की समस्याओं को खतरा बना रहता है। महिला चिकित्सकों की कमी जिले में महिला चिकित्सकों की कमी है। सदर अस्पताल में भी इस कमी के कारण कामकाज प्रभावित हो रहा है। यहां पर मात्र चार महिला चिकित्सक पदस्थापित हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की बात करें तो केवल हरसिद्धि एवं सुगौली में एक-एक महिला चिकित्सक तैनात हैं। दिक्कत यह है कि पीएचसी में पदस्थापित इन चिकित्सकों की प्रतिनियुक्ति कई बार अन्यत्र कर दी जाती है। इसके कारण भी परेशानी होती है। इन दो पीएचसी के अलावा अरेराज अनुमंडलीय अस्पताल में दो, चकिया में दो एवं पकड़ीदयाल में दो महिला चिकित्सक तैनात हैं। मानकों के हिसाब से एक पीएचसी में कम से कम चार एमबीबीएस चिकित्सक की तैनाती होनी चाहिए। मगर ऐसा नहीं हैं। इसी प्रकार फर्स्ट रेफरल यूनिट (अनुमंडलीय अस्पताल) में सभी विशेषज्ञ चिकित्सकों की तैनाती होनी चाहिए मगर चिकित्सकों की कमी के कारण इस तरह की व्यवस्था नहीं हो सकी है। जिले में चिकित्सा कर्मियों की स्थिति - नियमित चिकित्सक एमबीबीएस - 72
- अनुबंधित चिकित्सक एमबीबीएस - 44
- नियमित चिकित्सक आयुष - 10
- अनुबंधित चिकित्सक आयुष : 57
- डेंटल चिकित्सक - 33
- ए ग्रेड नर्स नियमित - 37
- ए ग्रेड नर्स अनुबंधित - 12
- एएनएम नियमित - 223
- एएनएम अनुबंधित - 385 अस्पतालों की संख्या - जिला (सदर) अस्पताल - 01
- पीएचसी - 27
- एपीएचसी - 70
- एचएससी - 400
- एचडब्ल्यूसी - 18