पैरों ने छोड़ दिया साथ, फिर भी भर रहे उड़ान
दुनिया में आए तो बड़ी उम्मीदें थीं, सपने बुन रहे थे तभी वक्त ने ऐसा दर्द दिया कि कमर के नीचे के हिस्से ने स्पाइनल इंज्यूरी के कारण काम करना बंद कर दिया।
मोतिहारी। दुनिया में आए तो बड़ी उम्मीदें थीं, सपने बुन रहे थे तभी वक्त ने ऐसा दर्द दिया कि कमर के नीचे के हिस्से ने स्पाइनल इंज्यूरी के कारण काम करना बंद कर दिया। अचानक से जीवन में उदासी आ गई। लेकिन, वक्त के इस दर्द को सीने से लगाया और निकल पड़े टीम निर्माण करने। ताकि, कभी भी किसी भी स्पाइनल इंज्यूरी वाले को यह न लगे कि उसका जीवन व्यर्थ हो गया। आज यह आलम है कि बिहार के लिए 'व्हील चेयर बास्केट बॉल टीम ऑफ बिहार' बना लिया है। टीम बनी तो आर्थिक तंगी ने परेशान किया। लेकिन, सामान्य व्हील चेयर व जेब खर्च के पैसे से खेलने की ट्रे¨नग ली और निकल पड़े तमिलनाडु के ई-रोड स्थित स्टेडियम में आयोजित 'व्हील चेयर बास्केट बॉल' नेशनल चैंपयिनशिप में हिस्सा लेने। प्रतियोगिता में भाग लेने से पहले बिहार सरकार के खेल विभाग टीम के कैप्टेन गया निवासी शैलेश कुमार सिन्हा ने ट्रे¨नग के लिए मैदान उपलब्ध कराने के लिए पत्र भेजा। लेकिन, जवाब नहीं आया। जब सारे दरवाजे बंद हो गए तो मुजफ्फरपुर के सुतापट्टी स्थित मारवाड़ी व्यायामशाला में चार दिन (11 से 16 सितंबर) तक ट्रे¨नग ली। फिर जब ट्रे¨नग पूरी हो गई तो तमिलनाडु जाने के लिए आर्थिक संकट आड़े आ गया। सोशल मीडिया पर चंपारण के युवा उद्योगपति राकेश पांडेय के सामाजिक कार्यों को देखकर उनके संपर्क में आए और उन्होंने आर्थिक संकट दूर किया। राकेश द्वारा किए गए सहयोग के बूते ड्रेस, बॉल व अन्य उपकरण खरीद तमिलनाडु पहुंचे और वहां रहने का इंतजाम हो सका। वरना यहां तो उम्मीद दम तोड़ रही थी। दो मैच जीते तो जगा आत्मविश्वास टीम के कप्तान बताते हैं कि हमारे लिए यह पहला अवसर था कि मुश्किलें हार रही थीं। हमने तमिलनाडु में जी जान से खेला। पहले दिन 20 सितंबर को गुजरात की टीम को 14-2 से हराया। फिर दूसरे दिन मध्य प्रदेश की टीम को 17-2 से हराया। लेकिन, क्वार्टर फाइनल में प्रवेश के लिए चल रहे मैच में केरला की टीम से 11-7 से हार गए। यह हार हमारे लिए अहम है। इससे हमें सीख मिली है। हम अब यहां से लौटेंगे तो अपने लिए स्पोर्ट्स व्हील चेयर का इंतजाम करेंगे और बेहतर ट्रे¨नग लेंगे। ताकि अगली बार जब खेलें तो अपने राज्य का नाम ऊंचा करके वापस आएं। ऐसे बनी टीम और तय किया लक्ष्य गया के निवासी टीम के कैप्टेन शैलेश कुमार सिन्हा बताते हैं कि फुटबॉल खेल रहा था। इसी दौरान चोट लगी और कमर के नीचे के भाग ने काम करना बंद कर दिया। फिर यह विचार आया कि ऐसी हालत में लोग कुंठा के शिकार हो जाते हैं। फिर सोशल मीडिया पर अभियान चलाया। पूर्वी चंपारण के रक्सौल स्थित डंकन अस्पताल में जाकर कैंप लगाए। यहां मिले रक्सौल के राजू सहनी, रवि कुमार, आदापुर के राजकुमार यादव फिर टीम बनने लगी और इसमें साथ आए बगहा के आशीष श्रीवास्तव, बोकारो में रह रहे रमेश कुमार यादव, उत्तर प्रदेश के मेरठ में रह रहे कर्ण कुमार व सुनील कनौजिया। सभी साथियों ने अपना लक्ष्य तय किया और आज यह आलम है कि बिना किसी माकूल संसाधन के हमने दो मैच जीते हैं। अगली बार खेलेंगे पूरी तैयारी के साथ। चार दिनों की ट्रे¨नग का यह असर है अगला मैच शानदार होगा। ऐसे मिला सहयोग पीयूपी कॉलेज में स्नातक के छात्र आदापुर के कचूरबाड़ी निवासी राजकुमार यादव बताते हैं कि मुजफ्फरपुर स्थित तिरहुत दिव्यांग विद्यालय, बेला, इंडस्ट्रीयल एरिया से सुतापट्टी व्हील चेयर से जाकर ट्रे¨नग ली थी। चार दिनों की ट्रे¨नग में जब बहुत कुछ सीख लिया तो मैच खेलने के वक्त धन की कमी आड़े आ गई। फिर फेसबुक पर राकेश पांडेय से संपर्क किया और उन्होंने वक्त लेकर फोन किया और सहायता दी। जिसके बूते मैच में शामिल होना संभव हो पाया। सरकार को देना चाहिए ध्यान खिलाड़ियों ने बताया कि यदि सरकार ने ध्यान दिया होता और हमारे पास स्पोर्ट्स व्हील चेयर, ट्रे¨नग कोट और बेहतर कोच होते तो हम भी अपने सूबे का नाम ऊंचा करते। लेकिन, यहां तो सरकार का ध्यान ही हमारे उपर नहीं है। टीम के कप्तान शैलेश के अनुसार राकेश से मिली सहायता में से कुछ राशि बची है। तमिलनाडु से लौटने के बाद स्पोर्ट्स व्हील चेयर खरीदेंगे। लेकिन, सरकार अन्य प्रदेशों की तरह बिहार में इस टीम को मजबूती दे तो फिर हम अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाएंगे।