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पर्यावरण संरक्षण आज का नहीं आदि का विषय है : डॉ. भोलानाथ मिश्र

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान, बॉयोटेक विज्ञान एवं समाजकार्य विभाग के संयुक्त तत्वावधान में मंगलवार को 'पर्यावरण प्रबंधन प्रणाली सतत विकास के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण' विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया।

By JagranEdited By: Published: Wed, 20 Feb 2019 06:04 AM (IST)Updated: Wed, 20 Feb 2019 06:04 AM (IST)
पर्यावरण संरक्षण आज का नहीं आदि का विषय है :  डॉ. भोलानाथ मिश्र
पर्यावरण संरक्षण आज का नहीं आदि का विषय है : डॉ. भोलानाथ मिश्र

मोतिहारी। महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान, बॉयोटेक विज्ञान एवं समाजकार्य विभाग के संयुक्त तत्वावधान में मंगलवार को 'पर्यावरण प्रबंधन प्रणाली सतत विकास के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण' विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. अनिल कुमार राय ने मुख्य वक्ता डॉ. भोला नाथ मिश्र का स्वागत करते हुए पर्यावरण संरक्षण को महत्वपूर्ण और ज्वलंत मुद्दा बताया। कहा कि इसे संवेदनशीलता से ही समझा जा सकता है। यूं तो पर्यावरण संरक्षण को 21वीं सदी की ¨चता के तौर पर प्रस्तुत किया जा रहा है, लेकिन इस विषय का संबंध भारतीय संस्कृति और भारतीय परंपरा में बहुत पुराना है।भारतीय परिवेश में शांति के मंत्र और उच्चारण सहित पाठ की जो परंपरा है उसमें वनस्पतियों तक की शांति को महत्व दिया गया है। हम सूर्य को देव, नदी को माता मानते हैं। वनस्पतियों में भी संचार प्रणाली होती है। उदाहरण देते हुए बताया कि छुई-मुई का पौधा छुते ही सकुचाकर सिकुड़ जाता है। हम आज के समय में देखें तो खेतों में फसल को संगीत सुनाकर पैदावार बढ़ाई जा रही है। पश्चिम के देश जिस भारत को सांप और छुछुंदर का देश कहते हैं उस भारत में सांप और छुछुंदर भी पर्यावरण के अनिवार्य हिस्सा माने जाते हैं। पर्यावरण संरक्षण में उनका अहम योगदान है। आज के समय में हमारे वैज्ञानिक और शिक्षाविद जिस पर्यावरण की ¨चता जता रहे हैं उसके बारे में हमारे वेदों में सैकड़ों वर्षो पहले लिखा जा चुका है।

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कार्यक्रम के मुख्य वक्ता पर्यावरण प्रबंधन विभाग, आईटीआई लिमिटेड, मनकापुर के प्रमुख डॉ. भोलानाथ मिश्र ने अपने संबोधन में कहा कि पर्यारवण संरक्षण आज का नहीं आदि का विषय है, जिसका महत्व जब ये समस्याएं नहीं थीं, तब नहीं थीं तब भी हमारा ¨चतन इतना दूरदर्शी था। इस प्रकृति में जितने भी घटक बताए गए हैं, यदि इसमें से कोई भी चीज संकट में पड़ती है तो मानव जीवन •ारुर संकट में पड़ेगा। सवाल उठाते हुए कहा कि यदि धरती से वनस्पति गायब हो जाएं, पेड़-पौधे गायब हो जाएं, तो क्या जीवन रह पाएगा? जीव विज्ञान के विद्वान ये सोचें कि अगर जानवर गायब हो गए, तो क्या यह जीवन रह पाएगा। पानी का महत्व बताते हुए कहा कि इस विषय में कहावत है कि जल नहीं तो कल नहीं। सवाल उठाया कि वायु गायब हो जाए तो क्या हम रह पाएंगे। जिसको हम बिल्कुल भी महत्व न देते हों जीवन में उसके बारे में ¨चतन कीजिए कि यदि वह प्रकृति से समाप्त हो गई तो क्या जीवन आगे बढ़ पाएगा। हमारे पास जो प्राकृतिक संसाधन हैं जो घटते जा रहे हैं। धरती का क्षेत्रफल नियत है, लेकिन आबादी बढ़ रही है। धरती पर रहने के लिए आवास भी चाहिए, भोजन भी चाहिए। यह दोनों भी धरती से ही मिलता है। हमें भोजन भी चाहिए, आवास भी चाहिए, जल भी चाहिए, हवा भी चाहिए, सब-कुछ चाहिए। विडंबना ये है कि जंगल हम काटते जा रहे हैं, आवास बनाने के लिए, सड़कें बनाने के लिए, जहां खेती थी वहां रहने के लिए घर बना रहे हैं, शिक्षण संस्थान बना रहे हैं, उद्योग स्थापित कर रहे हैं। भोजन का स्त्रोत कम हो रहा है। उपलब्ध वायु भी कम हो रही है। उपलब्ध जल बहुत तेजी से घट रहा है। लेकिन जनसंख्या सतत बढ़ती जा रही है। यह बहुत ¨चता का विषय है, इसको समझने के लिए किसी विज्ञान की आवश्यकता नहीं है, किसी ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। व्याख्यान का संचालन ¨हदी विभाग के विद्यार्थी राहुल कुमार दुबे और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. श्रीधर सत्यकाम ने किया। मौके पर कोटवा निवासी, सामाजिक कार्यकर्ता शिव प्रसाद शाहू, समाजकार्य विभाग के डॉ. दिग्विजय फूकन, डॉ. अभिजीत कुमार, डॉ. अनिल कुमार समेत बड़ी संख्या में विद्यार्थी मौजूद रहे।


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