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दिखावा नहीं, दिल से हो राष्ट्रीय त्योहारों से जुड़ाव

देश 26 जनवरी 2020 को गणतंत्र का 71वां समारोह मानने जा रहा है। इन 70 वर्षों के सफर में देश में कई उतार-चढ़ाव आए। समय के साथ राष्ट्रीय त्योहारों के आयोजन में भी बदलाव देखने का मिल रहा है। इन मुद्दों पर चकिया प्रखंड के कुड़िया निवासी 90 वर्षीय सेवानिवृत शिक्षक लक्षणदेव सिंह ने अपने विचारों को साझा किया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 21 Jan 2020 12:19 AM (IST)Updated: Tue, 21 Jan 2020 12:19 AM (IST)
दिखावा नहीं, दिल से हो राष्ट्रीय त्योहारों से जुड़ाव
दिखावा नहीं, दिल से हो राष्ट्रीय त्योहारों से जुड़ाव

मोतिहारी । देश 26 जनवरी 2020 को गणतंत्र का 71वां समारोह मानने जा रहा है। इन 70 वर्षों के सफर में देश में कई उतार-चढ़ाव आए। समय के साथ राष्ट्रीय त्योहारों के आयोजन में भी बदलाव देखने का मिल रहा है। इन मुद्दों पर चकिया प्रखंड के कुड़िया निवासी 90 वर्षीय सेवानिवृत शिक्षक लक्षणदेव सिंह ने अपने विचारों को साझा किया। कहा कि- वर्ष 1950 में मैं कक्षा नौ में पीपरा के महाबीर उच्च विद्यालय का छात्र था। प्रथम गणतंत्र दिवस समारोह का आयोजन किया गया था। देश में गणतंत्र को लेकर काफी उत्साह व उल्लासपूर्ण वातावरण था। छात्रों व नौजवानों में राष्ट्रीयता की भावना स्वत: स्फूर्त दौड़ रही थी। अब तो दिखावा ज्यादा नजर आता है। ऐसे आयोजनों में दिल से जुड़ाव होना चाहिए। सबको इस दिन के महत्व की जानकारी भी होनी चाहिए। आधुनिकता के इस दौर में राष्ट्रीय त्योहारों में सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है। ऐसे कार्यक्रमों में व्याख्यान की जगह गीत-नृत्य की प्रधानता बढ़ी है।

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प्रभात फेरी की सिमट रही परिपाटी

उन्होंने कहा- हमलोगों के समय प्रभातफेरी के साथ 26 जनवरी व 15 अगस्त के कार्यक्रम का शुभारंभ होता था। स्कूली छात्रों व शिक्षकों की टोली गांव-गांव घूम कर बुलंद नारों के साथ सुबह की बेला में प्रभातफेरी निकलती थी। ग्रामीण युवा भी जागरूकता के लिए प्रभातफेरी में शामिल होते थे। अब यह बीते दिनों की बात हो चली है। गणतंत्र की मजबूती व रक्षा के लिए स्वस्थ राजनीति का बीजारोपण होना चाहिए। देश को प्रगति के मार्ग पर बढ़ाने के लिए एक समान शिक्षा नीति को लागू करना होगा। युवाओं के लिए पर्याप्त रोजगार सृजन एवं बढ़ती जनंसख्या को नियंत्रित करने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।


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