नाला निर्माण में अनियमितता, घटिया सामग्री का उपयोग
मोतिहारी। रक्सौल शहर के स्टेशन रोड में रेलवे द्वारा पानी निकासी के लिए नाला निर्माण में क
मोतिहारी। रक्सौल शहर के स्टेशन रोड में रेलवे द्वारा पानी निकासी के लिए नाला निर्माण में काफी अनियमितता बरती जा रही है। दिल्ली-काठमांडू को जोड़ने वाली मुख्यपथ से स्टेशन रोड जाने वाली सड़क के पानी टंकी और रेलवे हाईस्कूल फुटबॉल ग्राउंड के समीप मानक को ताक पर रख कर अधिकारी और संवेदक अपने हिसाब से नाले का निर्माण कार्य करा रहे है।
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अच्छी क्वालिटी की सामग्री नहीं कूड़े-कचरे और गीले कीचड़ में जैसे तैसे नाले का निर्माण कार्य किया जा रहा है। कार्यों में सही सामग्री नहीं लगाने से नाला निर्माण के साथ ही ध्वस्त होने लगते है । करीब तीन साल में दूसरी बार नाले का निर्माण कार्य चल रहा है। देखने से प्रतीत होता है कि कुछ स्थलों पर नाला था ही नहीं, कुछ स्थलों पर नाला का अवशेष दिख रहा है। जिसके ईंट से निर्माण कार्य चल रहा है यानी पुराने ईंटों का उपयोग किया जा रहा है। मानक को ताख पर रख स्टेशन रोड में कार्य किया जा रहा है। गुणवत्ता का ख्याल नहीं रखा जा रहा है। केवल कागजी खानापूर्ती कर काम को किसी तरह से निपटा दिया जा रहा है। कार्यों में लगने वाले ईंट, बालू की बात ही अलग है। इसमें सबसे निम्न क्वालिटी का सामान लगाया जाता है, जो टिकाऊ नहीं होता है।
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कहते हैं स्थानीय लोग
समाजसेवी पूर्व वार्ड पार्षद अशोक अग्रवाल, सुरेश चन्द्रवंसी, शंभु प्रसाद, लायंस शंभु चौरसिया ने बताया कि नाला मानक के अनरूप नही हो रहा है। नाले की चौड़ाई और गहराई को देख ऐसा प्रतीत होता है कि नाले से पानी का निकासी संभव नहीं है। इसके अलावे निर्माण के साथ ध्वस्त हो जाएगा। करीब दस साल पूर्व तक रेलवे के निर्माण कार्य प्लानिग अन्य विभागों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत होता था। क्षेत्र के लोग केंद्र और राज्य के निर्माण कार्यो को देख विभाग को कोसते थे। रक्सौल रेलवे स्टेशन पर हुए निर्माण कार्यो का उच्चस्तरिये जांच की आवश्यकता है। अनियमितता की शिकायत की जाती हैं तो जांच का केवल दिखावा किया जाता है। कार्रवाई जीरो रहती है। अभियंता जब जांच को जाते हैं तो लोगों मे एक आस जगती हैं कि अब काम फिर से सही तरीके से कराया जाएगा। लेकिन जब अधिकारी जांच कर चले जाते हैं तो काम फिर उसी तरीके से होता हैं। मतलब ऐसा लगता है सब आधुनिक रूप से प्रभावित है।
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बोले रेलवे के आईओडब्लू (अधिकारी)
रेलवे के आईओडब्लू तपस राय ने बताया कि बालू तो दीघा का है। अभिकर्ता मेरे सामने बालू गिराया है। करीब ढाई तीन लाख के लागत से नाला का निर्माण कार्य हो रहा है। जिसमें कही भी ईंट का उपयोग नहीं करना है। आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि कल इसे देखते है। अब सवाल ये उठता है कि नाले में ईंट का प्रयोग क्यों किया जा रहा है।