गांव की गलियों से निकल शहरों में कामयाबी का उड़ान भर रहीं बेटियां
मोतिहारी। एक दौर वो भी था जब बेटियां मुश्किल से गांव के स्कूलों में ककहरा पढ़ने जाती थी। आज का दौर जुदा है। अब बेटियों ने भी कामयाबी की उड़ान भरनी शुरू कर दी है।
मोतिहारी। एक दौर वो भी था जब बेटियां मुश्किल से गांव के स्कूलों में ककहरा पढ़ने जाती थी। आज का दौर जुदा है। अब बेटियों ने भी कामयाबी की उड़ान भरनी शुरू कर दी है। आज शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र बचा है जहां बेटियों ने अपनी कामयाबी का झंडा बुलंद न किया हो। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों की बच्चियों में पढ़ाई के प्रति काफी ललक जगी है। यही कारण है कि सिर्फ मोतिहारी शहर में ही हजारों की संख्या में ग्रामीण क्षेत्रों से आई बेटियां शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। शहर स्थित एमएस कॉलेज, एलएनडी कॉलेज, डॉ. श्रीकृष्ण सिन्हा महिला महाविद्यालय सहित तमाम कॉलेजों में ग्रामीण क्षेत्रों की छात्राओं की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों से बेहतर पढ़ाई के लिए शहर की ओर रूख करने वाली छात्राएं यहां के विभिन्न मोहल्लों में किराये पर कमरा लेकर अपने सपनों को परवान चढ़ाने के लिए लगातार मेहनत कर रही हैं। छात्राओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए शहर में कई निजी महिला छात्रावासों का भी संचालन शुरू हो गया है। यहां के चांदमारी, आजादनगर, गायत्रीनगर, बेलीसराय सहित विभिन्न मुहल्लों में छात्राओं ने किराये पर ही सही अपना आशियाना बनाकर अपने सपनों को पूरा करने के जीतोड़ मेहनत कर रही हैं। पेश है कुछ छात्राओं के विचार.।
11वीं गणित संकाय में पढ़ने वाली बैशखवा थाना दरपा निवासी स्वाति के पिता पेशे से किसान हैं। स्वाति कहती हैं कि बचपन से ही उन्हें पढ़ने की बहुत ललक थी। पिता ने भी साथ दिया तो वह अब यहां मोतिहारी अकेले रहकर पढ़ाई कर रही हैं। शुरू के दिनों में कुछ दिक्कत हुई थी। लेकिन अब सब कुछ सामान्य है और वो अपना पूरा फोकस पढाई पर दे रही हैं। उनका सपना बेहतर इंजीनियर बनने का है।
सुखलहिया निवासी रुचि कुमारी के पिता गांव में ट्यूशन पढ़ाते हैं। रुचि बताती हैं कि वह अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए यहां शहर में अकेले रहकर पढ़ाई कर रही हैं। सबसे ज्यादा दिक्कत सब्जी व अन्य किराना समान लाने में होती है। लेकिन, भविष्य को संवारने के लिए वह सब कुछ मैनेज कर लेती हैं।
छौड़ादानो की प्रीति कुमारी शहर के चांदमारी मुहल्ला में रहकर 11वीं की पढ़ाई करती हैं। किसान पिता की बेटी प्रीति का आगे सरकारी नौकरी में जाने का इरादा है। कहती हैं हैं कि घर मे आमदनी कम है, इसलिए पर्याप्त पैसे नही आ पाते। बावजूद इसके वो अपने खर्चो में कटौती करके अपनी पढ़ाई जारी रखेंगी। अगर शहर में रहने के लिए सरकारी स्तर पर सुविधा मिले तो मेरी जैसी कई लड़कियों को काफी सहूलियत हो सकेगी।
ढेकहा की अंजलि का सपना आगे चलकर आईएएस बन देश सेवा करना है। फिलहाल वो शहर में रहकर अपनी पढ़ाई कर रही हैं। अंजलि बताती हैं कि गांव से शहर आने का सफर काफी मुश्किल भरा रहा। शुरू के दिनों में कई झंझावतें आई, परंतु भाई की ओर से लगातार हौसलाआ़फजाई ने मनोबल टूटने नहीं दिया।
प्रो. एस कुमार ने कहा कि बेटियां हैं तो इस संसार में बहार है। बेटियां है तो अंधेरे में भी चमक है। बेटियां है तो हर वक्त हर किसी को सहारा है। बेटियां मान हैं, सम्मान हैं। अंग्रेजी के शिक्षक श्री कुमार की माने तो पिछले कुछ वर्षों में गांव से शहर आकर पढ़ने वाली बच्चियों की तादाद में काफी बढ़ोतरी हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाली बच्चियां विभिन्न क्षेत्रों में अपना नाम रौशन कर रही हैं।
केबीसी विजेता सुशील कुमार ने बता कि इन दिनों पौधारोपण अभियान के लिए उन्हें लगातार ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा करना पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों की बच्चियों में शिक्षा को लेकर काफी जागरूकता आई है। गांव से आने वाली छात्राओं के रहने के लिए अगर सरकारी स्तर पर और भी बेहतर व्यवस्था की जाए तो बच्चियों की संख्या और भी बढ़ेगी।
भाष्कर आइटीआइ के सिक्षक अभिषेक कुमार तिवारी कहा कि समय के साथ अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी बच्चियों की शिक्षा पर अभिभावक ध्यान रखने लगे हैं। पहले आइटीआइ जैसे संस्थानों में इक्का दुक्का ही बच्चियां आती थी, परंतु अब तकनीकी शिक्षा में भी बच्चियां अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा रही हैं।