मोतिहारी के प्रकाश ने छतीसगढ़ में दिया था सर्वोच्च बलिदान
मोतिहारी। शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा
मोतिहारी। शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा. 2010 में छत्तीसगढ़ के ताडमेटला में नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में मोतिहारी के लाल प्रकाश कुमार ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर इसे चरितार्थ किया था। वीर प्रकाश भले ही दुनिया से चले गए लेकिन आज भी शहरवासियों ने उन्हें अपनी याद में जिन्दा रखा है। गत 6 अप्रैल को उनकी पुण्यतिथि पर तमाम लोगों ने उन्हें अपनी भावभीनी श्रद्वांजलि दी, मगर नई पीढ़ी को उनके बलिदान से प्रेरणा लेने के लिए घोषित वादों पर अबतक कोई कारगर पहल नहीं की जा रही है, जिससे लोगों में क्षोभ भी है। आज तक उनका एक अदद स्मारक तक नहीं बन सका। इसके लिए चिन्हित जमीन पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा है। सीआरपीएफ इंस्पेक्टर शहीद प्रकाश कुमार का जन्म 7 दिसंबर 1977 को हुआ था। बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के प्रकाश ने वर्ष 2004 में दारोगा का पीटी परीक्षा पास की था। आरपीएफ की परीक्षा भी उन्होंने कम्पलीट की थी, लेकिन वर्ष 2005 में सीआरपीएफ का ज्वाइनिग लेटर पहले आने पर उन्होंने उसकी 62वीं बटालियन में इंस्पेक्टर के पद पर ज्वाइन किया। वर्ष 2007 में प्रकाश कुमार की शादी ऋतु कुमारी के साथ हुई थी। पत्नी संग जीवनभर का साथ निभाने का उनका वादा नक्सलियों के कायराना हमले के कारण पूरा न हो सका।
सीआरपीएफ के 76 जवान हुए थे शहीद
शहीद प्रकाश के पिता ईश्वर राय बताते हैं कि 11 साल पहले 6 अप्रैल 2010 को छत्तीसगढ सुकमा के ताड़मेटला में नक्सलियों ने सीआरपीएफ जवानों पर अचानक हमला बोल दिया था। तब उनके पुत्र भी वहीं पर प्रतिनियुक्त थे। नक्सलियों के साथ हुए मुठभेड में उनके पूत्र सहित सीआरपीएफ के 76 जवानों ने अपनी शहादत दी थी। बेटियों को आज भी पिता का इंतजार घटना के 11 साल बीत जाने के बाद भी उनकी दोनों बेटियों को अपने पिता के आने का आज भी इंतजार है। प्रकाश की शहादत के समय उनकी बड़ी बेटी अनुष्का मात्र डेढ़ वर्ष की थी और छोटी बेटी आस्था अपनी मां के गर्भ में पल रही थी। दोनों बेटियों ने केवल तस्वीरों में ही अपने पिता को देखा है।। पिता का जिक्र होते ही दोनों भावुक हो जाती हैं। रुंधे गले से पढ़-लिखकर देश और समाज की सेवा करने की बात करती हैं। बड़ी बेटी अनुष्का सातवीं क्लास में पढ़ती हैं, जबकि छोटी बेटी आस्था छठी क्लास में पढ़ती हैं। शहीद प्रकाश की पत्नी ऋतु कुमारी की आंखें अपने पति को याद करके नम हो जाती है। वे बताती हैं कि सरकार अपनी घोषणा के अनुसार सबकुछ दे रही है, लेकिन बच्चों की पढ़ाई का खर्च नहीं मिल रहा है।। उन्होंने बताया कि उनकी दोनों बेटियां पिता के बारे में हमेशा पूछती हैं, जिन्हें समझाना बहुत मुश्किल होता है। कागजों में धूल फांक रही स्मारक बनाने की घोषणा पांच भाई-बहनों में सबसे बड़े शहीद प्रकाश के पिता ईश्वर राय स्वास्थ्य विभाग के सेवानिवृत्त कर्मी हैं। वे बताते हैं कि बेटे की शहादत के बाद स्थानीय प्रशासन द्वारा मिस्कॉट कदम घाट के समीप स्मारक बनाने के लिए जगह चिन्हित किया गया था। लेकिन आज तक स्मारक का निर्माण नही हो सका है। चिन्हित जमीन पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा है। वहीं गुदरी बाजार में स्थापित शहीद प्रकाश शौर्य भी जीर्णशीर्ण हो गया है। श्री राय को अपने शहीद बेटे पर गर्व है, लेकिन उन्हें समाज के लोगों से शिकायत है।। उनका कहना है कि समाज के लोगों ने प्रकाश को भुला दिया है। वे कहते हैं कि लोग प्रकाश कुमार की शहादत की अपने ढंग से व्याख्या करते हैं, जिसका उन्हें दु:ख होता है।