रोजगार उन्मुखीकरण की दिशा में बेहतर विकल्प बत्तख पालन
मोतिहारी। रोजगार उन्मुखीकरण की दिशा में मुर्गीपालन से बेहतर विकल्प है बत्तख पालन। इसमे जोखिम कम और लाभ ज्यादा है। बत्तख के मांस व अंडे रोग प्रतिरोधक होते हैं।
मोतिहारी। रोजगार उन्मुखीकरण की दिशा में मुर्गीपालन से बेहतर विकल्प है बत्तख पालन। इसमे जोखिम कम और लाभ ज्यादा है। बत्तख के मांस व अंडे रोग प्रतिरोधक होते हैं। जिससे इसकी मांग अधिक होती है। बिना तालाब के भी हम दो से तीन फुट गहरी व चौड़ी नाली बनाकर आसानी से इसका पालन कर सकते हैं। उपरोक्त बातें मोहसी में राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के वरीय वैज्ञानिक सह फार्मर फर्स्ट परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ. संजय कुमार सिंह ने कही। वे परियोजना के तहत मेहसी के बखरी नाजीर व उझिलपुर में उन्नत नस्ल के बत्तख के चूजों का वितरण कर रहे हैं। इस क्रम में उन्होंने इंडियन रनर व खाकी कैपेबल नस्ल के करीब 250 चूजों का वितरण किसानों के बीच किया। स्वरोजगार के प्रति किसानों को जागरूक करते हुए कहा कि इंडियन रनर नस्ल की जगह खाकी कैपेबल का अंडा देने की क्षमता अधिक है। यह प्रति वर्ष तीन सौ अंडे दे सकती है। दोनों प्रजाति चार से पांच महीने के अंदर तैयार हो जाते हैं। इसके पालन के लिए प्रति वर्गफुट 1.5 वर्गफुट जमीन की आवश्यकता होती है। हम धान व मक्के की खेत में भी इसका पालन आसानी से कर सकते हैं। भोजन के रूप में इसे भींगा हुआ चावल का दाना भी दे सकते हैं। जिन किसानों को लाभान्वित किया गया उनमें बखरी नाजीर के करण सहनी, रमाकांत कुमार, राजकुमारी देवी, पवन सहनी, बुनैल सहनी, माला देवी, सुनैना देवी, कैलाश बैठा, दीनानाथ सहनी, राधिका देवी, उझिलपुर के शंभू राम, विकास राम, रमावती देवी शामिल थे। मौके पर प्रोजेक्ट वर्कर संजय कुमार चौधरी, मनोज कुमार व शंभू राम मौजूद थे।