व्रतियों ने किया खरना, भगवान सूर्य को पहला अर्घ्य आज
लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा के दूसरे दिन रविवार को सूर्योदय के साथ ही छठव्रतियों का निर्जला उपवास शुरू हो गया। शाम में छठव्रतियों ने विधि पूर्वक खरना किया। तीसरे दिन सोमवार को व्रती भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य देंगे।
दरभंगा। लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा के दूसरे दिन रविवार को सूर्योदय के साथ ही छठव्रतियों का निर्जला उपवास शुरू हो गया। शाम में छठव्रतियों ने विधि पूर्वक खरना किया। तीसरे दिन सोमवार को व्रती भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य देंगे। मंगलवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य के साथ ही इस चार दिवसीय महाअनुष्ठान का समापन होगा। इस बार छठ व्रतियों में अन्य वर्षों की तरह उत्साह की कमी है। कारण, यह कि इस बार छठ पर्व घर के अंदर ही सिमटा रहेगा। कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए सरकार की ओर से जारी लॉकडाउन ने पर्व के उत्साह को फीका कर दिया है। छठ पर्व के अर्घ्य के समय तालाबों व नदी घाटों पर आस्था का जनसैलाब इस बार नहीं दिखेगा। लोग अपने घरों में कृत्रिम जलाशय का निर्माण कर ही भगवान भास्कर को अर्घ्य देंगे। प्रशासन की ओर से भी लोगों को घर के भीतर ही अनुष्ठान पूरा करने का निर्देश जारी किया जा चुका है।
-----------
आस्था व श्रद्धा के बीच हुआ खरना :
चार दिनी अनुष्ठान के दूसरे दिन रविवार को आस्था व श्रद्धा के बीच व्रतियों ने खरना किया। सुबह सूर्योदय के साथ ही व्रती महिला-पुरुषों का निर्जला उपवास शुरू हो गया। मिट्टी के नए चूल्हे पर व्रतियों ने खरना का महाप्रसाद तैयार किया। शाम में व्रती महिला-पुरुष ने स्नान कर नवीन वस्त्र पहन कर खरना पूजा किया, जिसके बाद घर के सभी लोगों ने खरना का महाप्रसाद ग्रहण किया।
---------
ऋग्वेद में है सूर्य उपासना की चर्चा :
प्राचीन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस महापर्व को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। पंडित बैद्यनाथ मिश्र बताते हैं कि सूर्य की उपासना की चर्चा ऋग्वेद में भी मिली है। ऋग्वेद में देवता के रूप में सूर्यवंदना का उल्लेख मिलता है।
-------
कहती हैं व्रती : कहीं भी हो पूजा होनी चाहिए भगवानदास मोहल्ला की शबनम सिंह कहती हैं कि छठ लोक आस्था का पर्व है। यह इसलिए, क्योंकि मन में जो कामना रख कर हम यह पूजा करते हैं, वह जरूर पूरी होती है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि पूजा कहां की गई, बस हमारे मन में श्रद्धाभाव होना चाहिए। इस बार परिस्थिति विषम है। छठ मैया से यही प्रार्थना है कि सभी को इस विकट परिस्थिति से जल्द छुटकारा दिलाएं। शुभंकरपुर की मधु श्रीवास्तव कहती हैं कि छठ में घाट पर जाने का उत्साह ही कुछ और होता है। लेकिन, इस बार पूजा घर में ही होगी। घर के आंगन में गड्ढा कर जलाशय बनाया गया है। उसी में खड़े होकर अर्घ्य देंगे। इस बार सामान जुटाने में भी काफी परेशानी हुई। लेकिन, पूरा विश्वास है कि रन्ना माई हम सब का कल्याण करेंगी और इस विपदा से हमें जल्द निजात मिलेगी। सिनुआर गांव की अनोखा देवी कहती हैं कि छठ पूजा की महिमा ऐसी है कि जो कोई भी सच्चे मन से यह पूजा करते हैं या इसमें अपना सहयोग देते हैं, उनकी मनोकामना रन्ना माई जरूर पूरी करती हैं। पूजा की सामग्री तैयार करने से लेकर रन्ना माई का डाला सजाने तक हर काम में शुद्धता का विशेष ख्याल रखना होता है। इस बार विषम परिस्थितियों में भी पूजा की सभी तैयारी हो गई। यह रन्ना माई की कृपा ही तो है। वे सबका कल्याण करने वाली हैं। इस बार उनसे विश्व कल्याण की कामना करूंगी।