सुषमा स्वराज की मौत से सदमे में है यमन से लौटी दो सगी बहनों का परिवार
सुषमा स्वराज की मौत से पूरे देश में शोक की लहर है। हर आंखें नम हैं। दरभंगा के एक परिवार को गहरा धक्का लगा है। मौत की सूचना मिलने से पूरे परिवार गहरे सदमे में है।
दरभंगा । सुषमा स्वराज की मौत से पूरे देश में शोक की लहर है। हर आंखें नम हैं। दरभंगा के एक परिवार को गहरा धक्का लगा है। मौत की सूचना मिलने से पूरे परिवार गहरे सदमे में है। शहर के पीटीसी कॉलोनी निवासी उमेश प्रसाद लगातार टीवी से चिपके रहे। मौत की खबर टीवी पर चलने के बाद भी उन्हें यकीन नहीं हो रहा था। बार-बार यही कह रहे थे कि सुषमा स्वराज अब इस दुनिया में नहीं रही, ऐसा नहीं हो सकता। नेक दिल वाले को भगवान यूं अपने पास नहीं बुला सकते। दरअसल सुषमा स्वराज की पहल पर उनकी दोनों बेटियों की जान ही नहीं बची बल्कि, नई जिदगी भी मिली। इस बात को पूरे परिवार के लोग आज भी नहीं भूले हैं। उमेश प्रसाद की दो पुत्रियां लूसी और मनीषा यमन में रहकर मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी। तभी वर्ष 2015 में यमन की हालत अचानक खराब हो गई। अलकायदा और आइएसआइएस जैसे आतंकियों का यमन के ज्यादातर जगहों पर कब्जा हो गया। गोलीबारी के बीच लूसी और मनीषा इस तरह फंस गई कि परिवार वालों से बात भी नहीं कर पा रही थी।
हर पल सामने में मौत नजर आता था। जिदगी का हर क्षण डर के साए में बीतने लगा। दोनों बहनों के सामने मौत के
के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था। ऐसी परिस्थिति में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज देवदूत बन वहां फंसे सभी भारतीयों के साथ उन दोनों बहनों को भी बचाने की पहल शुरू की और यमन से दोनों को सकुशल निकाल कर घर तक पहुंचाने का काम किया। पीड़ित परिवार उस दौरान सुषमा स्वराज के हर पल संपर्क में थे। यमन से लौटने के दौरान सुषमा स्वराज पीड़ित परिवार से कई बार फोन पर बात भी की। इससे उमेश प्रसाद का हौसला बढ़ा। दिल्ली में पूरे परिवार के साथ सुषमा स्वराज से उनकी मुलाकात हुई। प्रसाद ने कहा कि अब बस उनकी यादें बची हैं। यह बात कहते हुए वे अपने पौत्र के साथ टीवी देखने लगे और भावुक होते हुए कहा कि सुषमा स्वराज का जीवन भर का ऋणी हूं। अगर सुषमा नहीं होती तो उनकी दोनों पुत्रियों का जान नहीं बच पाती। कहा कि ऊंचे पद पर रहते हुए वह हमेशा साधारण दिखती थी। मानवीय और संवेदनशीलता उनमें कूट-कूट कर भरी थी। अगर वह विदेश मंत्री नहीं होती तो शायद उनकी पुत्रियों को बचाना मुश्किल था। दोनों पुत्रियों के यमन से लौटने के बाद सुषमा स्वराज से उनकी कई बार मुलाकात हुई। जिसमें सुषमा स्वराज ने लूसी और मनीषा के एमबीबीएस की फाइनल ईयर की पढ़ाई पूरी नहीं होने से काफी चितित थी। आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्होंने काफी प्रयास किया। लेकिन, तकनीकी कारणों से प्रयास सफल नहीं हो पाया। अब दोनों बहनें अलग-अलग जॉब में घर से बाहर हैं।
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