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खुद बेसहारा होकर अनाथ बच्ची को सहारा दे रही सुनीता

आज पूरे देश में नारी सशक्तीकरण का नारा चल रहा है। बावजूद इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि आज भी देश में कन्या भ्रूण हत्या एक अभिशाप बना हुआ है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 10 Apr 2019 12:56 AM (IST)Updated: Wed, 10 Apr 2019 12:56 AM (IST)
खुद बेसहारा होकर अनाथ बच्ची को सहारा दे रही सुनीता
खुद बेसहारा होकर अनाथ बच्ची को सहारा दे रही सुनीता

दरभंगा। आज पूरे देश में नारी सशक्तीकरण का नारा चल रहा है। बावजूद, इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि आज भी देश में कन्या भ्रूण हत्या एक अभिशाप बना हुआ है। कई बेटियों को पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है। कई को जन्म लेने के बाद लोग बोझ समझ पर किसी अनजान जगह पर फेंक कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। यह समाज की संवेदनहीनता को ही दर्शाता है। लेकिन, समाज में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अपनी संवेदना से ना केवल समाज के लिए, बल्कि मानव जगत के लिए एक मिसाल बन जाते हैं। ऐसी ही एक मिसाल है शहर में मजदूरी कर अपना पेट पालने वाली सुनीता, जिसके लिए अपना व अपने दो बच्चों का पेट पालना मुश्किल था। खुद जिदगी के झंझावात झेल रही सुनीता ने एक लावारिस बच्ची को गोद लेकर जो मिसाल कायम की वह करने में कई पीछे छूट जाते हैं। पिछले नौ सालों से सुनिता उस अनाथ बच्ची को अपनी ममता की छांव में जीवन दे रही है। आज वह बच्ची नौ साल की हो चुकी है और कक्षा चार में पढ़ती है। उसके लिए सुनीता ही उसकी मां भी है और पिता भी।

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समाज को दी मानवता की सीख :

खुद की जिदगी के जद्दोजहद में उलझी सुनीता ने समाज को मानवता की नजीर पेश की है। लगभग सात वर्ष पहले सुनीता को दरभंगा जंक्शन के पास एक लावारिस बच्ची मिली। जिस बच्ची को देखकर समाज के कई संपन्न लोगों ने अपनी नजरें फेर ली, उसे देखते ही सुनीता ने अपने सीने से लगा लिया। आज के मशीनी युग में जहां मानवीय संवेदना सूखती जा रही है, वहां सुनीता ने ममता का परिचय दिया और उस अबोध बच्ची को अपने गोद में उठा लिया। आज उस बच्ची को सुनीता के रूप में ना केवल नई जिदगी मिल चुकी है, बल्कि उसे शिक्षा भी प्राप्त हो रही है। सुनीता चाहती है कि वह पढ़-लिख कर एक जिम्मेदार नागरिक बनें। आज सुनीता के पास ना अपना घर है ना जमीन ना कोई सहारा, ना कोई राशन कार्ड ना वोटर कार्ड। बड़ी मुश्किल से एक आधार कार्ड बन पाया है उसका। लेकिन, उसके हौसले ने उसे समाज के लिए मिसाल बना दिया है।

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राजमिस्त्री का काम कर तोड़ा पुरुषों का वर्चस्व :

सुनीता का जीवन संघर्षों से भरा रहा है, लेकिन उसने संघर्ष को ही अपने जीवन का आधार बना लिया। मूल रूप से सीतामढ़ी जिला के पकटोला निवासी देवनारायण मुखिया की 35 वर्षीय पुत्री सुनीता की शादी महज 13 वर्ष की उम्र में सीतामढ़ी जिला के कुम्हरा विशनपुर निवासी शिवजी मुखिया के साथ हुई। उससे उसे दो संतानें हुई, एक बेटा व एक बेटी। जब वह 25 की हुई तो उसका पति कमाने के लिए परदेश (दिल्ली) चला गया। वहां से उसका पति वापस नहीं लौटा। इसके बाद तो सबने उससे मुंह फेर लिया। सुनीता ने हिम्मत नहीं हारी और बच्चों के साथ दरभंगा आ गई। यहां उसने मजदूरी शुरू कर दी। दरभंगा-सीतामढ़ी रेलखंड पर मजदूरी करते हुए उसने राजमिस्त्री का काम सीखा और चल पड़ी अपनी नई राह पर।

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