संकल्प से मानवाधिकार की रक्षा संभव
दरभंगा। मनुष्य को मनुष्य समझना ही मानवाधिकार है। मानवाधिकार के नाम पर अलग-अलग कानून बना दिए गए हैं।
दरभंगा। मनुष्य को मनुष्य समझना ही मानवाधिकार है। मानवाधिकार के नाम पर अलग-अलग कानून बना दिए गए हैं। जिसके चलते मनुष्य के जिंदा रहने का अधिकार भी खतरे में पड़ता दिख रहा है। मानवाधिकार के नाम पर अलग-अलग संगठनों का निर्माण हो गया है। इसलिए शायद जब जघन्य अपराधियों-आतंकियों को मारा जाता है तो ऐसे संगठन मानवाधिकार के नाम पर हल्ला मचाते हैं। जिससे कानून-व्यवस्था की उलझनें खड़ी होती हैं। मानवाधिकार मानवों के लिए है, ना कि आतंकी-अपराधी जैसे दानवों के लिए। ये बातें पीजी संस्कृत विभाग के सभागार में शुक्रवार को डॉ. प्रभात दास फाउंडेशन एवं पीजी राजनीति शास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ''मानवाधिकार : अवधारणा एवं चुनौतियां'' विषयक सेमिनार में बीज भाषण देते हुए प्रख्यात राजनीतिक ¨चतक प्रो. जितेंद्र नारायण ने कही। कहा कि भारत में मानवों के अधिकार को लेकर हमारे पूर्वज प्रारंभ से ही सतर्क रहे हैं। मानवाधिकार की चर्चा ऋग्वेद में भी की गई है। मानव का जो मूल्य है, सोच है, गुण है उसे विकसित होने में किसी भी प्रकार की रुकावट न हो, इसकी परिकल्पना वेद में है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो मानवाधिकार का पाठ विश्व बिरादरी को सबसे पहले भारत ने पढ़ाया। हमारे देश में सिर्फ मानवों के ही नहीं बल्कि सभी जीव जंतुओं को अधिकार दिया गया है। इसलिए हम आज भी वृक्षों, जीव- जंतुओं की भी पूजा करते हैं। सोने की चिड़ियां हमारे देश को यूं ही नहीं कहा जाता था। यहां कभी भी वर्ग संघर्ष नहीं हुआ। क्योंकि मानवाधिकार यहां सभ्यता की शुरुआत में ही लागू था। वर्ण और आश्रम की व्यवस्था के सहारे लोगों को मानवाधिकार दिया गया था। यहीं नहीं हवा-पानी आदि की उपलब्धता का भी ख्याल रखा गया था। यहां योग्यता के अनुसार कर्म बंधे थे, ना कि जाति के आधार पर यहां कोई व्यवस्था थी। मानवाधिकार की रक्षा भाषण करने से नहीं होने वाली है। इसके लिए लोगों को संकल्पित होना होगा। तभी इंसानों, वृक्षों, जलाशयों, महिलाओं आदि के अधिकार की रक्षा होगी। मुख्य अतिथि लनामिविवि के प्रतिकुलपति डॉ. जयगोपाल ने कहा कि जब-जब नेचुरल जस्टिस नहीं होता है, तब-तब मानवाधिकार की बातें होती है। हर मानव बराबर नहीं है इसलिए कमजोरों को भी अधिकार मिले, यहीं मानवाधिकार की मूल बात है। हर इंसान अपनी ही तरह सबको समझे तो मानवाधिकार की रक्षा स्वत: हो जाती है। पर इस आधुनिक परिवेश में हर व्यक्ति बदलाव की अपेक्षा दूसरे से करता है, खुद बदलना नहीं चाहता। इसलिए मानवाधिकार की राह में अवरोध उत्पन्न हो जाता है। अध्यक्षता करते हुए राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो. र¨वद्र कुमार चौधरी कहा कि प्रत्येक व्यक्ति सुख-चैन की जिंदगी व्यतीत करना चाहता है। पर जब इसमें खलल पड़ती है, तब मानवाधिकार की जरूरत महसूस होती है। व्यक्ति के ¨जदा रहने और व्यक्तित्व के विकास के लिए मानवाधिकार की सख्त जरूरत है। सबको साथ लेकर चलने की भावना देश के लोगों में विकसित होगी, तभी सही मायने में मानवाधिकार का आधार स्तंभ पुख्ता जान पड़ेगा। संचालन सीसीडीसी डॉ. मुनेश्वर यादव ने किया। जबकि धन्यवाद ज्ञापन फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा ने दिया। छात्र मणिभूषण कुमार, साक्षी झा, रामनाथ कुमार, एसके चौधरी, श्रीराम साह, सुशील कुमार सुमन आदि ने भी विचार रखे। मौके पर समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. विनोद कुमार चौधरी, संस्कृत विभाग के डॉ. रामनाथ ¨सह, डॉ. जयशंकर झा, अनिल कुमार ¨सह, राजकुमार गणेशन, नवीन कुमार, मनीष आनंद आदि मौजूद रहे।