पैगम्बरपुर का लाल डॉ. संतोष बायो डिग्रेडेबल फूड पैके¨जग पर शोघ के लिए जाएंगे स्वीडन
केवटी प्रखंड के पैगम्बरपुर गांव निवासी डॉ. संतोष कुमार को भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की ओर से एक वर्ष के लिए स्वीडन के स्टॉकहोम स्थित केटीएच रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी भेजा जा रहा है।
दरभंगा । केवटी प्रखंड के पैगम्बरपुर गांव निवासी डॉ. संतोष कुमार को भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की ओर से एक वर्ष के लिए स्वीडन के स्टॉकहोम स्थित केटीएच रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी भेजा जा रहा है। वे वहां बायो डिग्रेडेबल फूड पैके¨जग विषय पर शोध करेंगे। वर्तमान में डॉ. संतोष असम स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कोकराझाड़ बीटीएडी में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। वे इसी माह स्वीडन के लिए रवाना होंगे। डॉ. संतोष पिछले सात वर्षों से बायो डिग्रेडेबल फूड पैके¨जग विषय पर शोध कर रहे हैं। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की ओर से डीबीटी ओवरसीज एसोसिएटशिप अवार्ड के लिए डॉ. संतोष को नार्थ इस्टर्न रीजन से चयनित किया गया। इसी अवार्ड के तहत उन्हें शोध के लिए स्वीडन के स्टॉकहोम भेजा जा रहा है। डॉ. संतोष ने दैनिक जागरण को बताया कि उनका उद्देश्य कभी नष्ट न होने वाले कृत्रिम प्लास्टिक के थैले और हानिकारक रसायन जैसे कि वेक्स जो कि फूड पैके¨जग और को¨टग के उपयोग में आता है, का विकल्प ढ़ूंढ़ना है। कृत्रिम प्लास्टिक कभी सड़ता नहीं है और यह हमारे पर्यावरण को दूषित करता है। उन्होंने बताया कि हम बायो डिग्रेडेबल पोलिमर के माध्यम से खाद्य पदार्थ को ज्यादा दिन तक सुरक्षित रखने के लिए आसानी से सड़ने वाला थीन फिल्म और को¨टग्स बनाना चाहते हैं, जिससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होगा और हमारा दैनिक जीवन भी इससे प्रभावित नहीं होगा। डॉ. संतोष के पिता जमादार साह पेशे से व्यवसायी हैं जबकि मां घनमा देवी एक कुशल गृहिणी है। संतोष ने जादवपुर विश्वविद्यालय कोलकता के फूड टेक्नालॉजी एण्ड बायोकेमिकल इंजीनिय¨रग विभाग से एमटेक एवं पीएचडी की है। इसके बाद वर्ष 2009 में पश्चिम बंगाल के हल्दिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यभार संभाला। उसके बाद वर्ष 2011 से वे सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी में विभागाध्यक्ष के रूप में अपनी सेवा दे रहे हैं।