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लड़कियों में संस्कृत की अलख जगा रहीं रानी

प्राच्य विद्या अपने अस्तित्व के लिए लगातार संघर्ष कर रही है। इससे संबंधित शिक्षण संस्थानों में लगातार छात्रों की संख्या में कमी हो रही है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 12 Apr 2019 01:35 AM (IST)Updated: Fri, 12 Apr 2019 01:35 AM (IST)
लड़कियों में संस्कृत की अलख जगा रहीं रानी
लड़कियों में संस्कृत की अलख जगा रहीं रानी

दरभंगा। प्राच्य विद्या अपने अस्तित्व के लिए लगातार संघर्ष कर रही है। इससे संबंधित शिक्षण संस्थानों में लगातार छात्रों की संख्या में कमी हो रही है। ऐसे में संस्कृति से जुड़ी प्राच्य विद्या के संवर्धन के लिए अब नारी शक्ति आगे आने लगी है। इसकी मिसाल पेश कर रही हैं डॉ. रानी कुमारी। संस्कृत साहित्य-व्याकरण में पीएचडी की उपाधि लेने वाली रानी ने संस्कृत शिक्षा को ही अपने जीवन का आधार बना लिया और अब वे बच्चों को संस्कृत शिक्षा देने में जुट चुकी हैं। मूल रूप से समस्तीपुर जिला के करियन गांव की रहने वाली डॉ. रानी पिछले आठ सालों से लड़कियों के बीच संस्कृत शिक्षा का अलख जगा रही हैं। सामान्य विषयों से अध्ययन करने वाली रानी को जब संस्कृत शिक्षा के क्षेत्र में काम करने की प्रेरणा मिली तो उन्होंने अथक मेहनत कर शिक्षक की नौकरी हासिल की। नौकरी मिली तो पोस्टिग घर से काफी दूर अररिया जिला के फारबिसगंज में मिला। घरवालों ने दूर जाने से रोका, लेकिन रानी के हौसले ने उनके कदम रुकने नहीं दिए। आज वह फारबिसगंज में ना केवल लड़कियों को संस्कृत की शिक्षा दे रही हैं, बल्कि अपने दो बच्चों को भी साथ रखकर उन्हें संस्कृत शिक्षा देते हुए अपने मातृधर्म का निर्वहन कर रही हैं। प्राच्य विद्या में पीएचडी हासिल करने के साथ ही रानी इस क्षेत्र में लेखन से भी जुड़ चुकी हैं। हाल ही में उनकी भासकालीन भारतम नाम की पुस्तक प्रकाशित हुई जिसमें उन्होंने भास के नाटकों में भारतीय सामाजिक जीवन पर धर्मशास्त्र का प्रभाव, आर्थिक जीवन, वर्तमान आर्थिक विचारों की शास्त्रीयता, राजनीतिक विचारों की शास्त्रीयता, कवि भास के विचारों की वर्तमान भारतीय जीवन में प्रासंगिकता आदि पहलुओं को प्रस्तुत किया है। रानी कहती हैं कि प्राचीन साहित्यों में अकूत ज्ञान भंडार भरा है। लेकिन, आज इस विद्या के प्रति लोगों की उदासीनता के कारण यह ज्ञान प्रसारित नहीं हो पा रहा। आगे और भी किताबें लिखने की योजना है ताकि इस ज्ञान का प्रचार-प्रसार हो सके। रानी के पिता गोपीकांत पाठक संस्कृत शिक्षक रह चुके हैं। प्राच्य विद्या की बदौलत उन्होंने काफी सम्मान पाया। इधर, रानी अन्य लड़कियों की तरह सामान्य विषयों की पढ़ाई में लीन रही। लेकिन, पिता के सान्निध्य में उन्हें लगा कि उनके साथ ही उनके ज्ञान पुंज का भी लोप हो जाएगा। बस, यहीं से रानी की दिशा मुड़ गई और उन्होंने इंटर के बाद संस्कृत शिक्षा को अपना लिया। संस्कृत में बीए, फिर एमए के बाद उन्होंने पीएचडी की। इन सबमें उनके पति, पेशे से शिक्षक गोपाल कृष्ण चौधरी का उन्हें भरपूर सहयोग मिला। फिर तो रानी के हौसलों को मानो पंख मिल गए। वे लगातार अपने मिशन में आगे बढ़ती चली गई और आज वह कई लड़कियों के लिए प्राच्य विद्या की बदौलत आत्मनिर्भर बनने की मिसाल बन चुकी हैं। उनको देखकर कई मुस्लिम लड़कियां भी संस्कृत शिक्षा को ग्रहण कर रही हैं। काजल खातून, सलमा परवीन, राफिया जैसी कई छात्राएं हैं जो आज संस्कृत को बड़े चाव से पढ़ रही हैं।

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