रमजान में रोजा के अरकान पूरा करने से धुल जाते सब गुनाह
माह-ए-रमजान के आगमन पर रोजेदारों में खुशी का माहौल है। इस्लामिक कैलेंडर के नौवें महीने को रमजान कहा जाता है। मजहबे इस्लाम में इस पाक महीने का काफी महत्व है। अल्लाह ने मुसलमानों पर रमजान महीने का रोजा फर्ज किया गया है।
दरभंगा । माह-ए-रमजान के आगमन पर रोजेदारों में खुशी का माहौल है। इस्लामिक कैलेंडर के नौवें महीने को रमजान कहा जाता है। मजहबे इस्लाम में इस पाक महीने का काफी महत्व है। अल्लाह ने मुसलमानों पर रमजान महीने का रोजा फर्ज किया गया है। पवित्र ग्रंथ कुरान को रमजान में ही नाजील किया गया था।कुरान शरीफ के मुताबिक रमजान के महीने में जन्नत के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। इस माह में की गई इबादतों का शबाब अन्य महीनों की तुलना में सत्तर गुणा ज्यादा मिलता है। रमजान के पाक महीने में रखे जाने वाले रोजा का महत्व अधिक है। ऐसी मान्यता है कि रमजान में रोजा की सभी अरकान पूरा करने से गुनाह धुल जाते हैं। रोजा का मतलब सिर्फ भूखा-प्यासा रहना नहीं होता, बल्कि अल्लाह के साथ खुद की इबादत है। रोजा रखने का मकसद नेकी व पाकीजगी है। रोजा रखने के हालत में मन शुद्धि का महत्व अधिक है। आंख, कान, जुबान, हाथ पैर का भी रोजा होता है जो इंसान को अपने बस में रखने की जरूरत है। यानी रोजा की हालत में न बुरा देखें, न बुरा सुनें, न बुरा कहें। रोजे की हालत में आपके द्वारा बोली गई बातों से किसी की भावनाएं आहत न हो। रोजे के नियम में पांच वक्त नमाज, सहरी और इफ्तार भी शामिल है। सभी रोजेदार को सूर्योदय नमाज फज्र से पहले सेहरी (भोजन) करना सुन्नत है। जबकि सूर्यास्त के बाद खजूर से इफ्तार (रोजा खोलना) करना सुन्नत में शुमार है। रोजा में झूठ बोलना, पीठ-पीछे किसी की बुराई करना सरासर मना है। सोमवार की शाम चांद का दीदार होने के साथ ही मस्जिद व निजी स्थानों पर तराबीह का दौड़ शुरू हो गया। हाट बाजार से लेकर चौक-चौराहे पर फल व मेवे की दुकान सज गई।बस्तवाड़ा, सिमरी, बिरदीपूर, मनिहास, गौड़ा, कंसी, अरई में रमजान को लेकर चहल-पहल अधिक दिख रही है।
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रहमत व बरकतों का महीना है रमजान : हाफीज असलम
बस्तवाड़ा खान मोहल्ला मस्जिद के इमाम हाफीज असलम ने बताया कि रमजान के महीने में हर वक्त रहमत बरसती है। रहमत और बरकत से भरे इस महीने में अल्लाह बंदो को रिज्क बढाने के साथ रोजा रखने की ताकत अधिक देते हैं। मुबारक महीने में नफल नमाज का शबाब फर्ज नमाजों के बराबर है। रमजान में अल्लाह के राह पर गरीबों को मदद करनी चाहिए।
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