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संस्कृति की रक्षा के लिए भाषा व लिपि को करें संरक्षित : प्रो. सुरेंद्र

किसी भी क्षेत्र की संस्कृति को वहां की भाषा और लिपि की स्थिति से समझा जा सकता है। दोनों में अनोनाश्रय संबंध है। मिथिला की संस्कृति काफी उदार रही है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 14 May 2019 01:17 AM (IST)Updated: Tue, 14 May 2019 06:29 AM (IST)
संस्कृति की रक्षा के लिए भाषा व लिपि को करें संरक्षित : प्रो. सुरेंद्र
संस्कृति की रक्षा के लिए भाषा व लिपि को करें संरक्षित : प्रो. सुरेंद्र

दरभंगा । किसी भी क्षेत्र की संस्कृति को वहां की भाषा और लिपि की स्थिति से समझा जा सकता है। दोनों में अनोनाश्रय संबंध है। मिथिला की संस्कृति काफी उदार रही है। आवश्यकता है कि हम अपनी भाषा और लिपि को संरक्षित करें और इसके विकास की दिशा में आगे कदम बढ़ाएं। यह बात लनामिविवि के कुलपति डॉ. सुरेंद्र कुमार सिंह ने कही। वे सोमवार को स्थानीय एमएमटीएम कॉलेज सभागार में आयोजित श्रीसीता पूजनोत्सव सह मैथिली दिवस समारोह में बोल रहे थे। विद्यापति सेवा संस्थान के तत्वावधान में आयोजित समारोह में कुलपति प्रो. सिंह ने कहा कि मैथिली के विकास के लिए सभी आगे आएं। उन्होंने इस बात पर चिता भी जताई कि मैथिली में छात्रों की संख्या नगण्य हो रही है। इस दिशा में सार्थक पहल करने की जरूरत है। कहा कि मिथिलाक्षर पर केंद्रित संस्थानों की स्थापना विश्वविद्यालय में किया जा रहा है। कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. देवनारायण झा ने विविध शास्त्र-पुराणों से उद्धरण देते हुए कहा कि सीता के अनेक अर्थ हैं। सीता का अर्थ है जो हमारी रक्षा करें। पूर्व कुलपति डॉ. रामचंद्र झा ने कहा कि माता का स्थान सर्वप्रमुख होता है। मां ही आदिगुरु होती हैं। ठीक उसी तरह जीवन में मातृभाषा का भी महत्व है। पूर्व कुलपति डॉ. विद्याधर मिश्र ने भी अपने विचार रखें और सीता को सर्वोपरि बताया। अध्यक्षता करते हुए पूर्व विधान पार्षद डॉ. विनोद कुमार चौधरी ने राज्य सरकार की ओर से जानकी नवमी पर अवकाश दिए जाने व विद्यापति पर्व को राजकीय समारोह का दर्जा दिए जाने पर चर्चा की। इस अवसर पर डॉ. विद्यानाथ झा ने मिथिला में कचरा झाड़ की पूजा की परंपरा को पंचांग में स्थान दिए जाने की आवश्यकता जताई, ताकि इसे वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित होने का अवसर मिले। साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत मैथिली के कवि-साहित्यकार डॉ. अमलेन्दु शेखर पाठक के संचालन में आयोजित कार्यक्रम में कोलकाता से आए साहित्य अकादेमी अनुवाद पुरस्कार से सम्मानित नवीन चौधरी, पूर्व प्रधानाचार्य डॉ. अनिल कुमार झा, डॉ. राममोहन झा, रामदयाल महतो आदि ने भी विचार रखे। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. बुचरू पासवान के आभार से हुआ। कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. उदयकांत मिश्र, हरिकिशोर चौधरी मामा, प्रो. चंद्रशेखर झा बूढ़ाभाइ आदि की सक्रिय सहभागिता रही। समारोह के दौरान पहला सम्मान साहित्य-साधिका लक्ष्मी सिंह ठाकुर को प्रदान किया गया।

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शिवधनुषधारिणी की हुई षोडशोपचार पूजा :

श्रीसीता प्राकट्य दिवस पर शिवधनुषधारिणी भगवती सीता की भव्य प्रतिमा स्थापित कर शास्त्रीय विधि से षोडशोपचार पूजन किया गया। पौरोहित्य किया पं. ललन झा ने और यजमान रहे मैथिली विभाग के डॉ. अमलेन्दु शेखर पाठक। उपस्थित लोगों ने भगवती की स्तुति में शिरकत की। शाम के समय सामूहिक आरती की गई। मंगलवार को पूर्वाह्न में प्रतिमा का विसर्जन होगा।

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संगीत की धारा में गोते लगाते रहे लोग :

मैथिली मंच की चर्चित गायिका डॉ. ममता ठाकुर के द्वारा विद्यापति रचित गोसाउनिक का गीत से आरंभ समारोह में कलाकारों ने गीत-संगीत के माध्यम से भक्ति की धारा प्रवाहित की और मिथिला-मैथिली की खुशबू को बिखेरा। अनुपमा मिश्र ने मिथिला के धिया सिया जगत जननि भेली धरनी बनल सुरधाम हे गाकर माहौल बनाया। कंचन कुमारी ने अपना किशोरीजी के टहल बजेबै के साथ वातावरण को सीता भक्ति के रस में निमग्न कर दिया। ओमप्रकाश सिंह, कन्हैया, कुंज बिहारी मिश्र, दुखी राम रसिया, नीतू कुमारी आदि ने अनेक गीत प्रस्तुत किए।

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