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बाढ़ का नाम सुनकर कांप जाते हैं लोग

बाढ़ का समय आते ही क्षेत्र के लोग डर से सहम गए हैं। हो भी क्यों नहीं, दरअसल वर्ष 2017 की त्रासदी को लोग अभी तक भूल नहीं पाए है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 27 May 2018 12:44 AM (IST)Updated: Sun, 27 May 2018 12:44 AM (IST)
बाढ़ का नाम सुनकर कांप जाते हैं लोग
बाढ़ का नाम सुनकर कांप जाते हैं लोग

दरभंगा। बाढ़ का समय आते ही क्षेत्र के लोग डर से सहम गए हैं। हो भी क्यों नहीं, दरअसल वर्ष 2017 की त्रासदी को लोग अभी तक भूल नहीं पाए है। अचानक बाउर कमला बांध के टूटने से सैकड़ों लोगों झुगी-झोपड़ी सहित खाने पीने के समान पानी में बह गया। खौफनाक मंजर देख बांध की मरम्मत में जुटे कर्मी भी भागने पर मजबूर हो गए। उस रात लोग भूलने को तैयार नहीं है। क्षेत्र के लोग बाढ़ का नाम सुनते ही कांप जाते हैं। बांध की स्थिति को लोगों को लगता है वह रात फिर से आने वाली है। हालांकि, प्रशासन इस बार कोई कसर छोड़ने को तैयार नहीं है। पूर्व से तैयारी चल रही है। कमला बलान तटबंध मरम्मत कार्यो पर डीएम डॉ. चंद्रशेखर ¨सह की पैनी नजर है। वे बार-बार इसका जायजा ले रहे हैं। बिरौल अनुमंडल क्षेत्र के घनश्यामपुर और किरतपुर प्रखंड के बाउर, राशियारी, कंसी मुसहरी, चौपाल टोल, राशियारी कुमरौल, नवटोलिया, नीमा सहित आधा दर्जन गांव कमला बलान नदी के पूर्वी व पश्चमी तटबंध के गोद में बसा है। गौराबौराम प्रखंड के जमालपुर, बौराम, रौता, बरगांव, कहुआ मनसारा गांव सहित के आधी आबादी नदी के गोद में झुग्गी-झोपड़ी बनाकर रहने को मजबूर हैं। बाढ़ के समय ये लोग विस्थापित हो जाते हैं। अलर्ट घोषित किये जाने के बाद भी बांध पर लोग प्लास्टिक का घर बनाकर दिन-रात गुजारते हैं। आपदा में इन लोगों को सरकार की ओर से भोजन के अलावा कुछ नहीं मिलता है। मुआवजा के लिए भटकते हैं लोग

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क्षेत्र के लोगों के लिए बाढ़ कोई नई आपदा नहीं है। हर वर्ष लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। लेकिन, मुआवजा के लिए लोगों को भटकना पड़ता है। बाढ़ में लोग बेघर रहते हैं। लेकिन, घोषणाओं के अनुपात में कुछ नहीं मिलता है। बाढ़ दौरान इलाज के लिए लोगों को भटकना होता है। नाव पर ही लोगों को इलाज कराना पड़ता है। प्रभावित गांवों से अस्पताल की दूरी लगभग पंद्रह किलोमीटर है। जमालपुर और किरतपुर पीएचसी 5 से 6 किलोमीटर की दूरी पर है। गंभीर बीमार होने पर अथवा गर्भवती महिलाओं को अस्पताल ले जाने के लिए एक मात्र नाव ही साधन रहता है। बाढ़ में बच्चों की पढ़ाई बाधित रहती है। स्कूल पानी डूबा रहता है। पेय जल की घोर संकट रहती है। अभी तक घोषित चापाकल को नहीं लगाया है।

ग्रामीणों में दिखा आक्रोश

क्षेत्र में हर वर्ष बाढ़ आती है। लेकिन, प्रशासन की नींद मई से जून माह में ही खुलती है। समय कम रहने के कारण बांध मरम्मत के नाम पर लूट मची है। यही कारण है कि बांध की मरम्मत गुणवत्तापूर्ण नहीं हो पाता है और बांध टूट जाती है।

-गब्बर पासवान, ग्रामीण बाढ़ में इलाज के लिए समुचित व्यवस्था नहीं होता है। कमला बांध के नजदीक अस्पताल होना चाहिए । इसकी मांग की जा रही है। लेकिन, इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। 8 से 10 किलोमीटर दूरी तय कर लोग इलाज कराने के लिए मजबूर रहते हैं। देव कुमार पासवान, ग्रामीण बाढ़ के समय मवेशी को पालना मुश्किल हो जाता है। चारा नहीं मिलने के कारण लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। सरकार की ओर से चारा मुहैया नहीं कराया जाता है। बाढ़ को देखते हुए पशु चिकित्सक की तैनाती पूर्व होनी चाहिए । जय किशुन चौपाल, ग्रामीण कोट :

कमला तटबंध की मरम्मत की जा रही है। मजदूर दिन-रात काम कर रहे हैं। किए गए कार्यों का रोजाना समीक्षा की जा रही है। लोगों को डरने की बात नहीं है । जिला प्रशासन, अनुमंडल प्रशासन सहित इंजीनिय¨रग विभाग काम कर रहे हैं। ब्रज किशोर लाल, एसडीओ, बिरौल


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