उपेक्षा का शिकार है ऐतिहासिक बाढ़ पोखर
केवटी प्रखंड क्षेत्र के ऐतिहासिक व राजा शिव सिंह के समय का बाढ़ पोखर उपेक्षा का शिकार है।
दरभंगा । केवटी प्रखंड क्षेत्र के ऐतिहासिक व राजा शिव सिंह के समय का बाढ़ पोखर उपेक्षा का शिकार है। धरोहरों के संरक्षण की दिशा में चल रहे प्रयासों की किरण यहां तक नहीं पहुंची हैं। इस तालाब का इतिहास जितना स्वर्णिम रहा है, वर्तमान उतना ही उपेक्षित है। कभी अकाल से मुक्ति दिलाने वाला यह तालाब आज सौंदर्यीकरण के प्रयास का अकाल झेल रहा है। वर्ष 2009 में तत्कालीन प्रमंडलीय आयुक्त संजीव कुमार सिन्हा ने इसके सौंदर्यीकरण का निर्देश दिया था । आठ वर्ष बीतने के बाद भी स्थिति यथावत है। निरीक्षण के दौरान उन्होंने तालाब के चारों ओर सड़क निर्माण के साथ ही पौधरोपण करने के साथ पेयजल व रौशनी की व्यवस्था करने का निर्देश दिया था। तालाब को पर्यटक स्थल के रूप में हाइटेक करने को कहा था। योजना में तालाब के मध्य झरनायुक्त प्लेटफार्म और पहुंच पथ के निर्माण के साथ पिकनिक केंद्र बनने का उल्लेख था। लेकिन, यह सपना साकार नहीं हो सका। स्थानीय निवासी धर्मेन्द्र कुमार चौरसिया, लालो यादव, रामनारायण यादव उर्फ चंदन, रामू यादव ने बताया कि यह तालाब सांस्कृतिक रूप से काफी महत्व रखता है। पहले के लोग इस तालाब के पानी को पीने के उपयोग में लाते थे। धीरे-धीरे भौतिक सुख सुविधा बढ़ने इसका महत्व पूजा-पाठ एवं भोज-भात में होने लगा। लेकिन, आज वह भी नहीं हो रहा है।
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14वीं शताब्दी का है यह तालाब :
इतिहास के जानकार बताते हैं कि 14 वीं शताब्दी में तुगलक वंश के शासन काल में यहां भीषण अकाल पड़ा था। लोग पानी को लेकर त्राहि-त्राहि कर रहे थे। पानी की व्यवस्था के लिए राजा शिवसिंह ने जनता के लिए तालाब की खुदाई करवाई। काफी गहराई तक खुदाई के बाद भी जब पानी नहीं निकला तो राजा शिवसिंह ने धार्मिक अनुष्ठान कराया। इसके बाद तालाब से पानी निकला। उसी समय से यह तालाब लोगों की धार्मिक आस्था से जुड़ गया। करीब दो दर्जन से अधिक गांवों में धार्मिक व सामाजिक आयोजनों में इस तालाब के पानी का उपयोग होने लगा। इस तालाब की लंबाई 1825 फीट और चौड़ाई 1125 फीट है।