मिथिला विश्वविद्यालय प्रशासन बेखबर, मौज में शोधार्थी, नहीं दर्ज हो रही 75 फीसद उपस्थिति
पीएचडी रेगुलेशन- 2016 के तहत शोध के दौरान सख्त नियमों को लागू किया गया है। नियम के मुताबिक शोधार्थियों को पीएचडी अवधि में संबंधित पीजी विभाग में नियमित रूप से 75 फीसद उपस्थिति दर्ज करानी है। ऐसा नहीं करने वाले शोधार्थियों के विरुद्ध नामांकन रद करने तक की प्रक्रिया भी की जा सकती है।
दरभंगा । पीएचडी रेगुलेशन- 2016 के तहत शोध के दौरान सख्त नियमों को लागू किया गया है। नियम के मुताबिक शोधार्थियों को पीएचडी अवधि में संबंधित पीजी विभाग में नियमित रूप से 75 फीसद उपस्थिति दर्ज करानी है। ऐसा नहीं करने वाले शोधार्थियों के विरुद्ध नामांकन रद करने तक की प्रक्रिया भी की जा सकती है। इसके बाद भी ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में विभिन्न विषयों से पीएचडी करने वाले शोधार्थियों की उपस्थिति 75 फीसद नहीं है। बता दें कि पीएचडी रेगुलेशन-2016 के मुताबिक पीएचडी नियमित कोर्स है। इसके तहत शोध प्रबंध जमा करने के लिए शोधार्थियों का 75 प्रतिशत उपस्थिति अनिवार्य किया गया है। विश्वविद्यालय में पैट-2018 से उक्त रेगुलेशन लागू है। पैट-2018 से नामांकित शोधार्थी का शोध प्रबंध जमा करने की अवधि भी पूर्ण हो चूकी है। लेकिन कोर्स वर्क के बाद अधिकांश शोधार्थियों की नियमित उपस्थिति नहीं है। प्रत्येक छह माह में सभी शोधार्थी को प्रगति रिपोर्ट भी जमा करना होता है, लेकिन इसका भी पालन ठीक ढ़ंग से नहीं हो पा रहा है। प्रगति रिपोर्ट में शोधार्थियों की उपस्थिति एवं अवकाश के संबंध में पूछा गया है। बता दें कि कोर्स वर्क में नामांकन के समय भी कोर्स वर्क में उपस्थिति का शपथ पत्र लिया जाता है।
शोधार्थियों ने कुलपति से नियमित उपस्थित दर्ज करवाने की मांग की
पीएचडी कर रहे शोधार्थियों ने 75 फीसद उपस्थिति अनिवार्य करने को लेकर कुलपति प्रो. सुरेंद्र प्रताप सिंह से गुहार लगाई है। आवेदन समर्पित करते हुए कहा है कि वर्तमान के तीन सत्र के शोधार्थी 75 फीसद उपस्थित नहीं होने से प्रभावित हो रहे हैं। शोधार्थियों ने बताया है कि पैट-2018 और पहले के पीएचडी में केवल नाम का फर्क है, सभी नियम पहले की तरह ही हैं। रेगुलेशन-2016 का कुछ भाग ही लागू किया गया है। ऐसे में गुणवत्तापूर्ण शोधकार्य कैसे संभव हो सकेगा। कोर्स वर्क के अवधि में भी नियमित वर्ग के बजाय खानापूर्ति के लिए दो-तीन वर्ग ही होते हैं। बताया है कि प्रोफेसर के संपर्क में नियमित बने रहने एवं शोधार्थियों के आपसी चर्चा से शोध में गुणात्मक सुधार हो सकेगा।
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