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    आखिर कैसे? दरभंगा के मखाना किसान पुरानी पद्धति से ही दे रहे आधुनिकता को मात

    By Mukesh Srivastava Edited By: Dharmendra Singh
    Updated: Sun, 07 Dec 2025 03:45 PM (IST)

    मिथिला के मखाने को जीआई टैग मिलने से कारोबार बढ़ा है, पर दरभंगा के कुछ किसान आज भी पुराने तरीके से मखाने बनाते हैं। हाथ से बने मखाने की मांग अधिक है, ...और पढ़ें

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    मखाना दाना (गुरिया) को लावा बनाने के लिए चूल्हे में भूनते किसान। जागरण

    मुकेश कुमार श्रीवास्तव, दरभंगा । मिथिला के मखाने को जीआइ टैग मिलने से इसके कारोबार में काफी वृद्धि हुई है। मखाना प्रोडक्ट के बड़े-बड़े प्लेटफार्म तैयार हो चुके हैं। इससे युवा कमाई तो कर ही रहे हैं, मखाना के दामों में भी काफी वृद्धि हुई है।

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    लेकिन, कुछ किसान आज भी पुराने पद्धति से मखाने तैयार कर रहे हैं। जिले के मनीगाछी, अलीनगर, सिंहवाड़ा, तारडीह, बहेड़ी, बेनीपुर के किसान आज भी अपने हाथों से लावा तैयार करते हैं। बाजार में इस लावे की डिमांड भी अधिक है।

    मशीन से तैयार मखाने में स्वाद की कमी के साथ-साथ लावा का साइज भी छोटा होता है। हाथ से लावा तैयार करने वाले किसान लोकल स्तर पर ब्रांडिंग भी कर रहे हैं। यही कारण है कि दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे महानगरों के व्यापारी हाथ से तैयार मखाना को अधिक पसंद कर रहे हैं।

    किसानों को माल लेने के लिए एडवांस राशि भी दे रहे हैं। किसान अपने हाथों से लावा को तैयार कर आधुनिकता को टक्कर दे रहे हैं। हालांकि, इसमें मेहनत अधिक है। बावजूद, किसान हार नहीं मान रहे। पूरा परिवार मिलकर इस कारोबार को आगे बढ़ा रहा है।

    बेनीपुर पौड़ी निवासी अजय सहनी, मनीष सहनी, अजित सहनी कहते हैं कि उनका यह धंधा मात्र छह माह का होता है। इसके बाद या तो उन्हें दूसरा कारोबार ढूंढना पड़ता है या खेती पर निर्भर रहना पड़ता है। छह माह में एक परिवार कम से कम सौ क्विंटल लावा तैयार कर बेच देते हैं। पांच से छह लाख का कारोबार होता है। इसमें पूंजी और मजदूरी भी शामिल है।।

    खाद के कारण होता अधिक नुकसान

    मखाना की खेती के लिए कुछ किसान खाद का उपयोग करते हैं। ताकि बेहतर उत्पादन हो। लावा तैयार करने वाले किसानों का इससे काफी नुकसान होता है। सामान्य रूप से एक क्विंटल दाना (गुरिया) से 50 केजी मखाना का लावा तैयार होता है। लेकिन, खाद डालने से इसकी मात्रा 30 केजी हो जाती है।

    बेनीपुर पौड़ी में करीब दो दर्जन परिवार परंपरागत तरीके से मखाना का लावा तैयार करते हैं। जयघट्टा, अंटोर, दांथ गांवों में भी किसान इस काम को बड़े पैमाने पर करते हैं। लेकिन, मेहनत के हिसाब से उन्हें लाभ नहीं मिलता है। सौ रुपये से लेकर साढ़े सात सौ रुपये प्रति किलो की दर से वे लोग मखाना बेचते हैं।

    जिसे बाजार में व्यापारी चार सौ से लेकर 14 सौ रुपये तक में बिक्री करते हैं। किसान से मखाना खरीदकर उसे छह, पांच और चार एमएम के चलना से चालकर अलग-अलग दर तय कर देते हैं। किसानों ने बताया कि सबसे पहले मखाना दाना (गुरिया) को सुखाते हैं। फिर इसे चलाते हैं। इसके बाद फिर इसे धूप में सुखाते हैं।

    इसके बाद चूल्हे पर दाने की भुनाई कर एक दिन के लिए इसे सुरक्षित रखा जाता है। दूसरे दिन इसे फिर से गर्म कर लावा तैयार किया जाता है। इस काम को करने के लिए परिवार के लोग सुबह चार बजे से लगे रहते हैं।