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प्राणायाम काबू में आता उच्छृंखल मन

दरभंगा। योगश्चित्तवृत्ति निरोध: यानी चित्तवृत्ति का निरोध ही योग है। इसका तात्पर्य है मानसिक संतुलन

By JagranEdited By: Published: Fri, 15 Jun 2018 01:08 AM (IST)Updated: Fri, 15 Jun 2018 01:08 AM (IST)
प्राणायाम काबू में आता उच्छृंखल मन
प्राणायाम काबू में आता उच्छृंखल मन

दरभंगा। योगश्चित्तवृत्ति निरोध: यानी चित्तवृत्ति का निरोध ही योग है। इसका तात्पर्य है मानसिक संतुलन। जब मन असंतुलित रहता है तब चंचलता, तनाव, विक्षोभ उसको प्रभावित करते रहते हैं। उसमें तरह- तरह की वृत्तियों का जन्म होता है। लेकिन, मन जब संतुलित और संयत रहता है तो उस मानसिक अवस्था को योग कहते हैं। यह कहना है योग प्रशिक्षक राम विनोद ठाकुर का। कहते हैं जिस प्रकार एक तालाब में पत्थर फेंकने से गोल- गोल लहरें बनती है, उसका विस्तार होता है। ठीक उसी प्रकार मन एवं चेतना की सूक्ष्म अवस्था में जब कभी प्रतिक्रिया, विवाद उत्पन्न होता है तो इसकी लहरें भी चारों दिशाओं में फैलती है। इसका निरोध हम अनुशासन के माध्यम से कर सकते हैं। यहां महर्षि पतंजलि ने निरोध शब्द का प्रयोग किया है। उन्होंने कहा है कि इसका विरोध या अवरोध मत करो बल्कि निरोध करो। जीवन में ऐसी स्थिति लाओ कि गोलाकार तरंगे उत्पन्न न हो। हमारी मानसिक स्थिति पूर्ण रूप से संतुलित, संयत और शांति रहे। जब इस प्रकार की परिस्थिति जीवन में उत्पन्न होगा तब जीवन सुखद और आनंदमय होगा। तब हमारे जीवन से दुख समाप्त हो जाऐगा। यही विचारधारा है जिससे योग की उत्पत्ति होती है। योग का लक्ष्य बहुत सूक्ष्म और दूरगामी है। आसनों से शरीर की शुद्धि होती है। हृदय, फेफड़े, गुर्दे पाचन संस्थान, रक्त संचरण प्रणाली आदि अवयवों की शुद्धि होती है। प्राणायाम से शुद्ध रक्त सारे शरीर में पहुंचता है। दिमाग के बंद ताले खुल जाते हैं। आसन और प्राणायाम के अभ्यास से हमारे उच्छृंखल भावनाओ को काबू में लाना संभव है। जिसका हमारे व्यक्तित्व पर साकारात्मक असर होता है। हमारे शरीर में 72 हजार नाड़ियां है जिसमें प्राणों का संचार होता है। प्राणायाम के अभ्यास से इनकी शुद्धि होती है। व्यक्तित्व विकास का पूरा विज्ञान जो मन को संतुलित बनाए रखता है। जब मन असंतुलित रहता तब चंचलता और तनाव उसको प्रभावित करते हैं। यह तरह-तरह की वृत्तियों को जन्म देता है। जब मन संतुलित रहता तो कोई उतार- चढ़ाव नहीं होता तो उसी मानसिक अवस्था को योग कहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के लिए आज के दज्ञेर में योग आवश्यक हो गया है। जिससे कर्म उन्नत हो, मन संतुलित रहे। यह दुख- सुख के प्रभाव से प्रभावित नहीं हो सके। ऐसा व्यक्ति जीवन में योग को सिद्ध करता है। योग आपमें नवीन शक्ति का संचार करेगा। आपका शरीर और मन सतत आज्ञाकारी बना रहेगा।

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